यूपी : ये पिछड़ी जातियां अब अनुसूचित जाति में, राज्य सरकार ने जारी की अधिसूचना

इस संशोधन के जरिए प्रदेश सरकार की अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में से उपरोक्त 17 जातियों को निकाल दिया गया है। अब यह 17 पिछड़ी जातियां अनुसूचित जाति में गिनी जाएंगी।

Update:2019-06-29 09:47 IST
राज्य सरकार

उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर लिया है। प्रदेश के प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह ने इस बाबत सभी मण्डलायुक्तों और जिलाधिकारियों को जरूरी निर्देश जारी करते हुए कहा है कि इन 17 पिछड़ी जातियों को अब हर जिले में अनुसूचित जाति के प्रमाण-पत्र जारी किए जाएं।

यह जातियां हैं-

कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम,तुरहा, गोड़िया, माझी और मछुआ। प्रदेश सरकार ने यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका पर दिए गए आदेश के बाद किया गया है। प्रदेश सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि यह प्रक्रिया हाईकोर्ट के आदेश के अंतिम फैसले के अधीन होगी। प्रदेश की यह सत्रह पिछड़ी जातियां लंबे अरसे से मांग कर रही थीं, कि उन्हें एससी में शामिल किया जाए।

राज्य सरकार ने जारी की अधिसूचना

राज्यपाल ने प्रदेश सरकार के इस फैसले पर उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम 1994 (उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या -4 सन 1994) की धारा -13 के अधीन शक्ति का प्रयोग करते हुए अधिनियम की अनुसूची एक में जरूरी संशोधन कर दिया गया है।

इस संशोधन के जरिए प्रदेश सरकार की अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में से उपरोक्त 17 जातियों को निकाल दिया गया है। अब यह 17 पिछड़ी जातियां अनुसूचित जाति में गिनी जाएंगी। उधर, समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने कहा है कि हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब प्रदेश सरकार केन्द्र सरकार से भी इस बाबत का अनुरोध करेगी।

जनहित याचिकाएं

इस मामले में डा. बी.आर.अम्बेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण की ओर से 21 व 22 दिसम्बर 2016 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थीं। इन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट इलाहाबाद के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिलीप बी. भोंसले और न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने 29 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 21 व 22 दिसम्बर 2016 को जारी शासनादेशों को अग्रिम आदेशों तक स्थगित कर दिया गया था।

सभी मण्डलायुक्तों और जिलाधिकारियों को भेजे पत्र

प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह ने सभी मण्डलायुक्तों और जिलाधिकारियों को भेजे गये पत्र में कहा है कि 29 मार्च 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के इसी आदेश परीक्षण करने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसला किया है कि सुसंगत दस्तावेजों के आधार पर नियमानुसार 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र जारी किया जाए। सरकार के इस निर्णय का अनुपालन करने के लिये इस पत्र की प्रतिलिपि नियुक्ति एवं कार्मिक, पिछड़ा वर्ग कल्याण और राजस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव / प्रमुख सचिव को भी भेजी गयी है।

पिछले करीब दो दशक से इन 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कोशिशें की जा रही हैं। पिछली सपा और बसपा सरकारों में भी इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल तो किया गया, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया। सपा सरकार के दौरान अदालत ने इस बाबत जारी किए गए राज्य सरकार के आदेश पर स्टे लगा दिया था।

उधर केंद्र सरकार में इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने की कोशिशें जारी रही। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता रहा कि इन सभी जातियों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति निम्न स्तर की हैं और ये जातियां अनुसूचित जाति की सूची में शामिल होने की सभी शर्तें पूरी करती हैं। साथ ही इन जातियों को एससी की सूची में शामिल किए जाने से वर्तमान अनुसूचित जातियों को कोई नुकसान भी नहीं होगा।

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