ब्रह्मलीन हुए यूपी के संत बाबा प्रकाश दास, सारे ऐशोआराम छोड़कर लिया था सन्यास
स्कूली पढ़ाई की शुरुआत के दिनों में ही उन्होंने पैतृक घर और सम्पत्ति त्याग दिया था। इसलिए उनके पास पढ़ाई की डिग्रियां तो नहीं थीं किन्तु देशाटन, सत्संग, गुरुकृपा और स्वाध्याय से उन्होंने सनातन धर्म के सभी शास्त्रीय ग्रंथों का विधिवत पारायण किया था।
गोंडा। देवी पाटन मंडल में बलरामपुर जनपद में लोगों की श्रद्धा के केन्द्र उदासीन सम्प्रदाय के निराले पंचमुखी हनुमान आश्रम के संत बाबा प्रकाश दास का देहावसान हो गया। अस्वस्थ होने पर चिकित्सा के लिए उनको लखनऊ ले जाया गया लेकिन इलाज़ शुरू होते ही हृदयाघात के कारण उनका निधन हो गया।
सैकड़ों बीघे खेत, सम्पन्न गृहस्थी त्याग ले लिया सन्यास
90 वर्ष की आयु में भी संत बाबा प्रकाश दास आश्रम पर प्रतिदिन सुबह-शाम बैठते थे, जहां उनके प्रेमियों की भीड़ लगी रहती थी। उनके भक्त उन्हें आदर और श्रद्धा से महाराज जी कहा करते थे। फुलवरिया बाई पास पर स्थित पंचमुखी हनुमान आश्रम की पुण्यभूमि में उन्हें समाधि दी गई। उनके ब्रहमलीन होने की खबर लगने के बाद लोगों की भीड़ कोरोना का खौफ भूल गई और लाकडाउन की परवाह किए बगैर आश्रम की ओर उमड़ पड़ी। सदर विधायक पल्टूराम ने भी अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि दी।
संत बाबा प्रकाश दास का ऐसा रहा जीवन
महाराज जी का जन्म तुलसीपुर के निकट स्थित एक गांव में सम्पन्न ब्राह्मण ज़मींदार परिवार में हुआ था। उदासीन सम्प्रदाय में दीक्षित होने से पूर्व उनका नाम परमात्मा शरण पाण्डे था। उनमें साधुता के संस्कार पूर्व जन्मों के थे जो किशोर वय तक पहुंचते ही प्रबल हो गए और उन्होंने अपना पैतृक घर सदा के लिए छोड़ दिया जहां उनकी सैकड़ों बीघे की खेती और सम्पन्न गृहस्थी थी। घर छोड़ने के बाद वे देशाटन पर निकल गए और कुछ ही वर्षों में उदासीन सम्प्रदाय में दीक्षित हो गए। वे भारत की सनातन परंपरा के प्रबल पुजारी किन्तु स्वभाव से बहुत प्रगति शील थे।
पढ़ाई की डिग्रियां नहीं, लेकिन शास्त्रीय ग्रंथों का था ज्ञान
स्कूली पढ़ाई की शुरुआत के दिनों में ही उन्होंने पैतृक घर और सम्पत्ति त्याग दिया था। इसलिए उनके पास पढ़ाई की डिग्रियां तो नहीं थीं किन्तु देशाटन, सत्संग, गुरुकृपा और स्वाध्याय से उन्होंने सनातन धर्म के सभी शास्त्रीय ग्रंथों का विधिवत पारायण किया था। तुलसी कृत सम्पूर्ण रामचरित मानस उन्हें कंठस्थ था। आवश्यकता पड़ने पर खड़ी बोली भी बोल लेते थे लेकिन अवधी से उन्हें अत्यधिक प्रेम था और अपने शिष्यों-भक्तों से अधिकांशतः वे अवधी में ही बात करते थे।
देश भर में करते रहते थे भ्रमण
शुरुआती दिनों में वे परिव्राजक की भांति देश भर में भ्रमण किया करते थे और साल-छह माह में कभी दिखाई पड़ते थे। लौटने पर वे अपने यात्रा वृतांत रोचक ढंग से सुनाया करते थे। कभी जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, दक्षिण भारत और कभी हिमालय के दूरदराज़ इलाक़ों का भ्रमण कर लौटते थे। उस समय वे युवा थे और भारत भर के अनेक तीर्थों व मठ-मंदिरों का दर्शन करते रहते थे। बाद में एक भक्त के प्रेम में वे 80-90 के दशक में बलरामपुर रेलवे स्टेशन पर कुछ वर्ष रहे।
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वहां से फिर कुछ दिनों के लिए ग़ायब हुए और नवें दशक में वापस आने पर अपने भक्तों के अनुरोध पर उन्होंने देवी पाटन में अपना बड़ा आश्रम व स्थायी निवास बनाया। वहां से भी उनका मन ऊबा और उन्होंने बलरामपुर में फुलवरिया बाई पास पर अपना आश्रम बनाया। जहां अंतिम समय तक रहे।
विविधवर्णी उपस्थिति से गुलजार रहता था आश्रम
सामान्य, विशिष्ट, अशिक्षित, शिक्षित, निर्धन, धनी सभी वर्गों के चहेते महराज जी इधर 20-25 वर्षों से जब से वे बलरामपुर में रहने लगे थे तो हम सब उनके भक्त जन अपनी सुविधानुसार प्रायः प्रतिदिन या सप्ताह में या 10-15 दिनों में उनके पास शाम को पहुंच जाते जहां रात 10-11 बजे तक बैठकी होती। उनके पास आने वालों में सुख्यात और कुख्यात हर तरह के लोग होते थे। विगत एक दशक में सभी दलों के पूर्व व वर्तमान विधायक, सांसद और मंत्री गण भी बहुत पहुंचने लगे थे।
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अधिकारी, अधिवक्ता, अध्यापक, ठेकेदार, पत्रकार, पुलिसकर्मी आदि विविधवर्णी उपस्थिति से महाराज जी का आश्रम सदैव गुलज़ार रहता था। महाराज जी के पास बतरस का अद्भुत और अनूठा सुख मिलता था। बलरामपुर ही नहीं आसपास के कई जिलों तक में उनके भक्त हैं।
आडम्बर और पाखंड के विरोधी रहे
वे आडम्बर और पाखंड वालों को नापसंद करते थे। महाराज जी की अन्तर्दृष्टि तीक्ष्ण थी। वे आगंतुकों का मन मूड भांप लेते थे। मूड में होते तो मानस की चौपाइयां सुनाते और किसी बात पर यदि खिन्न होते तो धाराप्रवाह देशज गालियां भी देते। क़िस्सों और कहानियों का तो उनके पास कभी ख़त्म न होने वाला भंडार था। पुरानी कहावतों और मुहावरों का उनके पास ख़ज़ाना था। रहन-सहन और खानपान का उनका ढंग एक सदी पहले वाला था। वे गैस चूल्हे पर बनी चीज़ें नहीं खाते-पीते थे। उनके बर्तन और भोजन के पात्र फूल या चांदी के होते थे। इधर कुछ वर्षों से अपने इन नियमों को उन्होंने थोड़ा शिथिल किया था और चाय स्टील के गिलास में पीने लगे थे।
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अभ्यागतों और आगंतुकों की सेवा वे ‘अतिथि देवो भव‘ के सनातनी मूल्यों के हिसाब से प्रतिबद्ध होकर करते थे। भोजन के समय पहुंचा कोई भी व्यक्ति बिना खाये उनके यहां से नहीं लौट सकता था। दोनों नवरात्रि में अयोध्या या काशी से कई वेदपाठी पंडितों को बुलाकर नौ दिन का वृहद अनुष्ठान करते थे और सम्पन्न होने पर विशाल भंडारा करते थे, जिसमें हज़ारों लोग सम्मिलित होते थे।
दर्जनों गरीबों की बेटियों के विवाह का पूरा खर्च उठाया
एमएलके पीजी कालेज के प्राध्यापक प्रकाश चन्द्र गिरि बताते हैं कि एक बार आध्यात्मिक चर्चा में भाव विभोर होकर मैंने उनके चरण छूने चाहे तो वे मेरे ऊपर बहुत बिगड़े और भविष्य में कभी ऐसा न करने की सख्त हिदायत दिए। मेरे आश्रम पहुंचने पर महाराज जी सदैव अपने आसन से उठकर खड़े हो जाते और अपने आसन पर बैठाने की कोशिश करते। वे असंख्य लोगों के सहारा थे। मेरी जानकारी में उन्होंने दर्जनों गरीब लोगों की बेटियों के विवाह का पूरा खर्च खुद उठाया। अपने प्रेमियों, शिष्यों और भक्तों की वे नाना प्रकार से सहायता करने के लिए तत्पर रहते थे।
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जब दिखाया चमत्कार
प्रकाश गिरि के अनुसार एक बार उन्होंने कहा कि महाराज जी आप के ऊपर कुछ लिखना चाहता हूं। तो बोले कि जब ई चोला छूट जाई तब लिख्यो। उनका आध्यात्मिक जीवन अनेक रहस्यों, साधनाओं, अनुभवों और उपलब्धियों से भरा हुआ था। महाराज जी कभी चमत्कार नहीं दिखाते थे लेकिन अभी डेढ़-दो माह पूर्व एक दिन रात में हम व उप्र शासन के पूर्व मंत्री डा. शिव प्रताप यादव बैठे हुए थे तो यक्षिणी साधना की चर्चा चलने पर महाराज जी ने ऐसा चमत्कार दिखाया कि हम सब सन्न रह गए। इसके अलावा भी उनकी अनेक चमत्कारिक, विवादित, प्रशंसित और तरह तरह की घटनाएं हैं।
दिया था प्रस्थान का संकेत
लाॅकडाउन शुरू होने से एक दो दिन पूर्व लखनऊ जाने से पहले महाराज जी ने आश्रम में बातचीत के दौरान अपने अनन्य भक्त प्रकाश गिरि से कहा कि ‘देखौ गुरू जी अब संसार केर लीला देखि कै हमार मन कुछ दूसर कहत है‘। मैंने हाथ जोड़ते हुए उनसे कहा कि महाराज जी आप ऐसा न कहें।
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प्रकाश गिरि बताते हैं कि मैंने घर आकर पत्नी से भी इस बात की चर्चा की कि महाराज जी ने अपने प्रस्थान का संकेत दे दिया है। महाराज जी के समर्पित भक्त बलरामपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता गोमती प्रसाद त्रिपाठी ने फोन पर बताया कि कुछ दिन पहले महाराज जी ने उनसे कहा था कि आज हम हनुमान जी से प्रार्थना किहेन है कि हमरे भक्तन पै कौनौ संकट आवै से पहिले हम्मय उठाय लिहौ। ज्येष्ठ के प्रथम मंगलवार को आराधक अपने आराध्य की चिरशांतिमयी शरण में पहुंच गये।
तेज प्रताप सिंह
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