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यहां के कुएं में पानी की जगह निकलता है तेल, जानिए कहां से आता है ड्रिकिंग वाटर
भारत में कई नदी एवं झीलें है और समय-समय पर बारिश होती हैं। इसकी मदद से जल की समस्या कम होती है, लेकिन क्या जानते हैं कि जो रेगिस्तानी धरती है, चाहें राजस्थान हो या सऊदी अरब जहाँ कोई भी नदी या झील नहीं है वो कैसे अपनी पानी की कमी को पूरा करता हैं।
जयपुर: भारत में कई नदी एवं झीलें है और समय-समय पर बारिश होती हैं। इसकी मदद से जल की समस्या कम होती है, लेकिन क्या जानते हैं कि जो रेगिस्तानी धरती है, चाहें राजस्थान हो या सऊदी अरब जहाँ कोई भी नदी या झील नहीं है वो कैसे अपनी पानी की कमी को पूरा करता हैं।सऊदी अरब, जहां की धरती रेतीली है और जलवायु उष्णकटिबंधीय मरुस्थल। यहां तेल तो भारी मात्रा में है, जिसकी वजह से यह देश अमीर भी बना है, लेकिन यहां पानी की भारी कमी है या यूं कहें कि इस देश में पीने लायक पानी है ही नहीं। यहां न एक भी नदी है, न झील। पानी का कुआं है पर उसमें पानी नहीं है। यहां सोना तो है, लेकिन पानी नहीं। तो अब सवाल ये उठता है कि आखिर सऊदी अरब पीने के लिए पानी कहां से लाता है? तो चलिए इसके पीछे की हैरान करने वाली सच्चाई जान लेते ...
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सिर्फ सब्जियां
इन देशों में तो यहां तेल का अपार भंडार हैं जिसकी वजह से यह देश बहुत अमीर हैं लेकिन पीने के लिए भी पानी का इंतजाम करना बहुत मुश्किल हैं। सऊदी अरब के पास अब भूमिगत जल थोड़ा बहुत ही बचा है और वो भी बहुत नीचे है, लेकिन कहा जा रहा है कि आने वाले कुछ सालों में वो भी पूरी तरह खत्म हो जाएगा। इस देश की महज एक फीसदी जमीन ही खेती के लायक है और उसमें भी कुछ-कुछ सब्जियां ही उगाईं जाती हैं, क्योंकि धान और गेहूं जैसी फसलें उगाने के लिए उसे भारी मात्रा में पानी की जरूरत पड़ेगी। हालांकि एक बार यहां गेहूं की खेती शुरू की गई थी, लेकिन पानी की कमी के चलते बाद में उसे ये बंद करनी पड़ी। सऊदी को अपना खाने-पीने का सारा सामान विदेशों से ही खरीदना पड़ता है।
साल में एक या दो दिन बारिश
एक रिपोर्ट के अनुसार, पहले यहां पानी के बहुत सारे कुएं थे, जिनका इस्तेमाल हजारों सालों से होता आ रहा था, लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई, भूमिगत जल का दोहन भी यहां बढ़ता गया। इसके कारण धीरे-धीरे कुंओं की गहराई बढ़ती गई और कुछ ही सालों में कुएं पूरी तरह सूख गए। सबसे जरूरी बात कि यहां बारिश तो साल में एक या दो दिन ही होती है और वो भी तूफान के साथ।
ऐसे में उस पानी को जमा करना संभव है नहीं और न ही उससे भूमिगत जल के दोहन की भरपाई ही होती है। असल में यहां समुद्र के पानी को पीने लायक बनाया जाता है। वैसे तो समुद्र के पानी में नमक की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए डिसालिनेशन यानी विलवणीकरण के द्वारा समुद्र के पानी से नमक को अलग किया जाता है और तब जाकर वह पीने लायक बनता है।
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कमाई का एक हिस्सा पानी पर खर्च
सऊदी अरब तेल से हुई बेशुमार कमाई का एक हिस्सा तो समुद्र के पानी को पीने लायक बनाने में ही खर्च कर देता है। 2009 के एक आंकड़े के मुताबिक, उस समय एक क्यूबिक मीटर पानी से नमक अलग करने में 2.57 सऊदी रियाल यानी करीब 50 रुपये खर्च होते थे। इसके अलावा ट्रांसपोर्टिंग का खर्च भी 1.12 रियाल (20 रुपये से ज्यादा) प्रति क्यूबिक मीटर लग जाता था। अब तो यह खर्च बढ़ भी गया होगा, क्योंकि यहां पानी की मांग हर साल बढ़ती जा रही है। साल 2011 में सऊदी अरब के तत्कालीन पानी और बिजली मंत्री ने कहा था कि देश में पानी की मांग हर साल सात फीसदी की दर से बढ़ रही है। ऐसे में आप सोच सकते हैं कि यहां पानी की समस्या कितनी विकराल है।