Varanasi News: जल संरक्षण के दावे बेमानी! पीएम के संसदीय क्षेत्र में दम तोड़ रही असि नदी
Varanasi News: लगभग 6 साल से ऊपर हो गया योगी सरकार दोबारा पुनः पूर्ण बहुमत से प्रदेश मे दोबारा आ गई लेकिन आज तक नगर निगम के अभिलेख में असि नाले का नाम काटकर असि नदी दर्ज नहीं किया गया।
Varanasi News: जिस शहर की पहचान उसकी दो नदी असि और वरूणा है। जिसके नाम से ही वाराणसी जाना जाता हैं। उस काशी की पहचान असि नदी को बचाने के लिए नगर निगम महकमा कितना गंभीर है, इसकी मिसाल खुद उसके अभिलेख से मिलती है जिसमें असि नदि को ‘असि नाले’ के रूप दर्शाते हुए दर्ज कराया किया गया है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने पर जब प्रदेश के नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना 15 जून 2017 को प्रथम काशी आगमन पर आए थे, तब नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना को जागृति फाउण्डेशन के सदस्यों ने नगर निगम के अभिलेख में सुधार कर असि नाले की जगह, असि नदि करने की मांग ज्ञापन देकर की थी। जागृति फाउण्डेशन के महासचिव रामयश मिश्र द्वारा दिये गये ज्ञापन पर विचार करते सुरेश खन्ना ने कहा था कि इसके लिए विधि सम्मत कार्यवाही कर असि नदी के रूप में दर्ज कराया जाएगा।
लंबे अर्से से चल रही नाले से नदी में दर्ज करने की मांग
आज लगभग 6 साल से ऊपर हो गया, योगी जी की सरकार दोबारा पुनः पूर्ण बहुमत से प्रदेश मे दोबारा आ गई लेकिन आज तक नगर निगम के अभिलेख में असि नाले का नाम काटकर असि नदी दर्ज नहीं किया गया। जागृति फाउंडेशन के महासचिव रामयश मिश्र ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार असि नदी को लेकर कितनी गंभीर है, इसी से पता चलता है कि आज 6 साल से ऊपर हो गया वह अपने ही नगर विकास मंत्री के आदेश का पालन नहीं करा सकी है।
वाराणसी की पहचान असि नदी लुप्त हो रही
असि नदी को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले जयराम कुमार शरण ने कहा कि वाराणसी की पहचान असि नदी लुप्त हो रही है। नदी की जमीन पर भू-माफियाओं द्वारा कब्जा किया जा रहा है और सबसे बड़े दुख की बात है कि इसमें नगर निगम, वीडीए के अधिकारियों के साथ-साथ कुछ राजनेता भी जो सरकार में है, वो भी लगे हुए हैं। यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि वाराणसी की पहचान को मिटाने का प्रयास सरकार में बैठे लोग ही पूरे जोर-शोर से कर रहे हैं। वही काशी प्रदक्षिणा यात्रा कराने वाले उमाशंकर गुप्ता ने कहा कि असि नदी काशी की पहचान है और इसे हर हाल में बचाना होगा अगर यह मिट गई तो काशी की पहचान भी खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि काशी की पंचकोसी यात्रा और अंतरगृही यात्रा असि और वरुणा नदी के किनारे- किनारे होती है और असि और वरूणा के बीच में ही काफी विद्यमान है।