Varanasi: BHU के 11 वैज्ञानिकों पर पांच करोड़ की मानहानि का दावा, विश्वविद्यालय में मचा हड़कंप
Varanasi: बीएचयू के 11 वैज्ञानिकों पर भारत बायोटेक कंपनी ने पांच करोड़ रुपए का मानहानि का दावा ठोंका है। 11 वैज्ञानिकों पर इतनी बड़ी धनराशि का दावा होने के बाद विश्वविद्यालय में हड़कंप मचा हुआ है।
Varanasi News: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के 11 वैज्ञानिकों पर भारत बायोटेक कंपनी ने पांच करोड़ रुपए का मानहानि का दावा ठोंका है। 11 वैज्ञानिकों पर इतनी बड़ी धनराशि का दावा होने के बाद विष्वविद्यालय में हड़कंप मचा हुआ है। दरअसल बीते दिनों कोरोनाकाल के समय लोगों को दी गयी को-वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर बीएचयू ने रिसर्च पेपर जारी किये थे। इस रिसर्च पेपर के जारी होने के बाद से ही विवाद शुरू हो गये थे। रिसर्च के तरीकों पर भी सवाल उठ रहे थे। विवाद बढ़ने के बाद रिसर्च पेपर को समीक्षा करने के बाद पब्लिक डोमेन से हटा दिया गया था।
जानें पूरा मामला
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कोवैक्सीन से संबंधित रिसर्च पेपर को इंटरनेशनल जर्नल ड्रग सेफ्टी ने वापस ले लिया है। साथ ही रिसर्च पेपर की समीक्षा के बाद उसे पब्लिक डोमेन से भी हटा दिया गया है। कोवैक्सीन निर्माता कंपनी भारत बायोटेक ने बीते 13 सितंबर को जर्नल और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शंख शुभ्रा चक्रवर्ती सहित 11 वैज्ञानिकों पर पांच करोड़ की मानहानि का दावा किया है।
बीएचयू के वैज्ञानिकों का यह शोध 1,024 लोगों पर किया गया था। वैज्ञानिकों का यह शोध 635 किशोर और 291 वयस्क पर किया गया। लोगों से फोन पर बातचीत के आधार पर वैज्ञानिकों ने रिसर्च पेपर तैयार किया था। शोध के दौरान वैज्ञानिकों को कई लोगों ने 304 को सांस संबंधी दिक्कत की बात बतायी थी। वहीं कुछ किशोरियों में मासिक धर्म में अनियमितता संबंधित दिक्कत का जिक्र किया था। 11 वैज्ञानिकों का यह रिसर्च पेपर 13 मई को कौवैक्सीन के ’सुरक्षा विश्लेषण’ (बीबीवी152) नाम से जर्नल में प्रकाशित हुआ।
ICMR ने की थी रिसर्च पेपर को बैन करने की मांग
बीएचयू के 11 वैज्ञानिकों का कोवैक्सीन पर किया गया यह शोध बीते लोकसभा चुनाव के दौरान प्रकाशित हुआ था। जिसके बाद देश में इस रिसर्च पेपर को लेकर सियासी घमासान भी तेज हो गया था। विपक्ष ने इस मामले को लेकर सरकार पर खूब हमले किये। वहीं शोध में इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का नाम आने के बाद 28 मई को इसे बैन करने की मांग की थी। आईसीएमआर ने वैज्ञानिकों से शोध पत्र से नाम हटाने की भी बात कही थी।