Gyanvapi Case: एक सप्ताह की मोहलत, केस के आखिरी याचिकाकर्ता हरिहर पांडे का निधन
Ayanvapi Cases: साल 1991 में वाराणसी की सिविल कोर्ट में ज्ञानवापी से जुड़े मूल वाद लॉर्ड विशेश्वरनाथ केस को पंडित सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडे तीनों ने मिलकर दाखिल किया था। पंडित सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा की पहले ही मौत हो चुकी है। आज हरिहर पांडे ने भी दुनिया से अलविदा कह दिया।
Gyanvapi case: ज्ञानवापी केस के मामले में सोमवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) वाराणसी जिला जज अदालत में अपनी सर्वे रिपोर्ट दाखिल करना था। लेकिन सर्वे रिपोर्ट दाखिल करने के लिए ASI एक बार फिर एक सप्ताह का समय मांगा है। कोर्ट ने 30 नवंबर को सर्वे रिपोर्ट दाखिल करने के लिए एएसआई को तीसरी बार अतिरिक्त समय दिया था। अब 18 दिसंबर को रिपोर्ट सबमिट करना होगा। बता दें कि ज्ञानवापी केस में एएसआई ने 24 जुलाई से परिसर पर अपना सर्वे शुरू किया था। उधर, सर्वे रिपोर्ट आज दाखिल होने की संभावना के बीच ज्ञानीवापी केस से जुड़े एक वादी का सुबह निधन हो गया है।
वैज्ञानिक विधि से हुआ परिसर का जांच-सर्वे
एएसआई ने 24 जुलाई को ज्ञानीवापी परिसर पर अपना सर्वे शुरू करते हुए 2 नवंबर को जिला जज कोर्ट को बताया था कि, उसने ज्ञानीवापी परिसर सर्वे का काम पूरा कर लिया है। मगर उसके बाद से एएसआई ने अभी तक कोर्ट अपनी सर्वे रिपोर्ट दाखिल नहीं कर पाई है। इसको दाखिल करने के लिए एएसआई को कोर्ट से तीन बार अतिरिक्त समय दिया जा चुका है। सोमवार को ऐसी उम्मीद लगाई जा रही है, एएसआई कोर्ट में अपनी सर्वे रिपोर्ट दाखिल कर दे। ज्ञानवापी परिसर का ASI ने वैज्ञानिक विधि से जांच-सर्वे किया। इसमें उसका साथ देने के लिए पुरातत्वविद्, रसायनशास्त्री, भाषा विशेषज्ञों, सर्वेयर, फोटोग्राफर समेत तकनीकी विशेषज्ञों की टीम लगी रहीं। परिसर की बाहरी दीवारों (खास तौर पर पश्चिमी दीवार), शीर्ष, मीनार, तहखानों में परंपरागत तरीके से और जीपीएस, जीपीआर समेत अन्य अत्याधुनिक मशीनों के जरिए साक्ष्यों की जांच की गई। एएसआई टीम का नेतृत्व अपर महानिरदेशक आलोक त्रिपाठी ने किया।
2 नवंबर को एएसआई ने पूरी की जांच
एएसआई ने चार अगस्त से लेकर 2 नवंबर तक ज्ञानवारी परिसर का सर्वे किया। इस दौरान जिस वुजूखाना शिवलिंग मिला, उस एरिया को सील कर बाकी पूरे परिसर की वैज्ञानिक विधि से जांच की गई। दरअसल, मंदिर पक्ष की ओर से जिला जज में बीते 16 मई, 2023 को ज्ञानावापी परिसर की जांच कराने के लिए एक प्रार्थना दाखिला किया गया। इस पत्र का स्वीकार करते हुए 21 जुलाई को जिला न्यायालय ने ज्ञानवापी परिसर (सुप्रीम कोर्ट द्वारा सील क्षेत्र को छोड़कर) का सर्वे करके का आदेश दिया था। एएसआई ने परिसर की जांच पूरी कर ली है।
केस से जुड़े तीनों वादियों को हो गई मौत
उधर, सोमवार को ज्ञानवापी मामले में एएसआई की कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल होने से पहले सुबह-सुबह बेहद खराब खबर सामने आई। ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष की तरफ से याचिका दायर करने वाले हरिहर पांडेय निधन हो गया। वह 77 वर्ष के थे और उनका निधन रविवार सुबह बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल हुआ। वे काफी लंबे समय बीमार चल रहे थे। हरिहर पाडें 1991 में काशी ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन शुरू करने वालों में से एक थे। पांडे इकलौते जीवित वादी थे। इससे पहले तीन वादियों में शामिल दो लोगों की मौत पहले हो चुकी है।
हरिहर पांडे थे जीवित आखिरी वादी
साल 1991 में वाराणसी की सिविल कोर्ट में ज्ञानवापी से जुड़े मूल वाद लॉर्ड विशेश्वरनाथ केस को पंडित सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडे तीनों ने मिलकर दाखिल किया था। पंडित सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा की पहले ही मौत हो चुकी है। आज आखिरी जीवित वादी हरिहर पांडे ने भी दुनिया से अलविदा कह दिया है। हरिहर पांडे के निधन पर अय़ोध्या के महंत राजूदास सहित तमाम लोगों पर शोक व्यक्त किया है। वहीं, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एस. ऍम. यासीन और कमेटी के अन्य सदस्यों ने भी उनके निधन पर दुख जताया है।
बेटे ने दी निधन की जानकारी
पांडे के बेटे कर्णशंकर पांडे ने बताया कि करीब 15 दिन पहले संक्रमण के कारण उनके पिता की हालत बिगड़ गई थी। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था और इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।।
हरिहर पांडे सन 1991 में दाखिल किया था वाद
यह मामला स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के 'अगले मित्र' के रूप में वकील विजय शंकर रस्तोगी द्वारा लड़ा जा रहा है और इसका निपटारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है। 15 अक्टूबर 1991 को स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर (भगवान शिव) और हरिहर पांडे सहित तीन अन्य की ओर से वाराणसी सिविल जज के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी। इसमें ज्ञानवापी भूमि को बगल के केवी मंदिर को बहाल करने की मांग की गई। इसमें परिसर से मुसलमानों को हटाने और मस्जिद को ध्वस्त करने की भी मांग की गई।
जानिए कब-कब क्या हुआ?
17 जुलाई, 1997 को सिविल कोर्ट ने कहा कि मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत चलने योग्य नहीं है। मंदिर और मस्जिद दोनों पक्षों ने जिला अदालत के समक्ष कई पुनरीक्षण याचिकाएं दायर कीं। 28 सितंबर, 1998 को जिला न्यायाधीश ने सभी दलीलों को मिला दिया और सिविल कोर्ट को सभी सबूतों पर विचार करने के बाद विवाद को नए सिरे से निपटाने का आदेश दिया। हालाँकि, 13 अक्टूबर 1998 को उच्च न्यायालय ने जिला अदालत के आदेश पर रोक लगा दी और मामला तब तक ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। साल 2019 में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के 'अगले मित्र' के रूप में रस्तोगी द्वारा सिविल कोर्ट में एक नया मामला दायर किया था।