Varanasi News: अन्तर विवि अध्यापक शिक्षा केन्द्र में मनाया गया शिक्षक दिवस, प्रो. वांग्चुंग दोर्जे नेगी रहे अध्यक्ष

Varanasi News: कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. वांग्चुंग दोर्जे नेगी, कुलपति, केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, वाराणसी ने हर एक व्यक्ति को दूसरे का ऋणी भाव का अनुभव करने को कहा।

Newstrack :  Network
Update:2024-09-05 20:52 IST

कार्यक्रम में सम्मानित हुए मुख्य अतिथि (Pic: Newstrack)

Varanasi News: अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र, बी.एच.यू., वाराणसी में आज 05 सितम्बर को शिक्षक दिवस समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम में "भारत की शैक्षिक आवश्यकताएं’’ विषय पर एक विशिष्ट व्याख्यान का भी आयोजन किया गया। समारोह की शुरुआत मंगलाचरण व माँ सरस्वती, महामना पं0 मदन मोहन मालवीय जी एवं डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।

"देश का भविष्य बनाने के लिए दीर्घकालीन चिंतन की जरूरत"

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात शिक्षाविद्, पदम्श्री प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत, अध्यक्ष शासी मण्डल, अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र, वाराणसी थे। इन्होंने वर्तमान भारत की शैक्षिक आवश्यकताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के दर्शन व चिंतन को वर्तमान समय में शिक्षा, शिक्षण शास्त्र में अपनाने पर बल दिया। उन्होंने डॉ. राधाकृष्णन के दर्शन में निहित मानवता व मूल्यों को शिक्षा व्यवस्था में लागू करने की बात पर जोर देते हुए कहा कि हमारे देश के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए शिक्षा में दीर्घकालीन चिंतन की जरूरत है। जिससे हमारे देश की नीव मजबूत होगी, विकास सुनिश्चित होगा, साथ ही गुणवत्ता भी आयेगी। यदि हमें देश का निर्माण करना है तो हमारी ऐतिहासिक विरासत के समय पालन, समर्पण व कार्य पद्धति में त्याग व बलिदान देने वाले शिक्षकों की जरूरत है क्योंकि हमारी भारतीय ज्ञान परम्परा गुरुत्व की बात करती है, मनुष्य एवं प्रकृति के सम्बन्ध को महत्व देती है।


"प्राचीन दर्शन व चिंतन के सिद्धांत अपनाने की जरूरत"

नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि प्राचीन विश्वविद्यालयों ने इसी विरासत को स्थापित किया था। जिससे विश्वभर के विद्यार्थी आकर्षित होते थे और प्राचीन परम्परा में समर्पण भाव सीखते थे जिसको हमारे पूर्वजों ने सोचा व स्थापित किया था। उन्होंने कहा कि प्राचीन दर्शन व चिंतन में कर्तव्य की प्रधानता थी न कि अधिकार की, इसी सिद्धांत को आज अपनाने की जरूरत है। उन्होंने युवाओं के बारे में कहा कि आज उनको उन्हीं की भाषा में समझाने की जरूरत है क्योंकि भारतीय युवाओं ने अपने सृजनात्मकता एवं लगनशीलता के कारण ही विश्व में भारत का मान बढ़ाया है। नासा, सिलिकान वैली आदि में आज भारतीय युवाओं का परचम लहरा रहा है। युवाओं को कुशल बनाने के लिए हमारे संस्थानों को मजबूत करने की जरूरत है ताकि उनमें शोध, नवाचार व अध्ययन की क्षमता को बढ़ाया जा सके।


शिक्षकों से जुड़ने का आवाह्न

इस क्षेत्र में आई.यू.सी.टी.ई. देश व देश के बाहर की संस्थाओं के साथ समझौते कर रहा है। उन्होंने शिक्षकों से आवाह्न किया कि वे अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र से जुड़ें, इसे जानें व समझें तथा अपने अनुभव को संस्थान के साथ साझा करें ताकि संस्थान में गुणवत्ता बनी रहे। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर व गाँधी जी के विचारों को आत्मसात करने का सुझाव दिया ताकि बच्चों में संकल्पना, चिंतन, सजगता व सृजनात्मकता का विकास हो। बच्चे अपने ज्ञान का सदुपयोग करने में सक्षम बनें। इसी पर चिंतन हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमारा ध्यान आकृष्ट करती है।


प्रो. वांग्चुंग दोर्जे नेगी ने की कार्यक्रम की अध्यक्षता

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. वांग्चुंग दोर्जे नेगी, कुलपति, केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, वाराणसी ने हर एक व्यक्ति को दूसरे का ऋणी भाव का अनुभव करने को कहा, इसी से हम कतार में खड़े अन्तिम व्यक्ति के कल्याण को सोच सकते हैं। हमें ’वसुधैव कुटम्बकम्’ का अनुसरण करना चाहिए तभी हम बच्चों में शिक्षा के द्वारा युक्ति व प्रमाण से युक्त निर्णय लेने की क्षमता का विकास कर सकते है। हमें स्व से ऊपर उठकर सभी के कल्याण की बात सोचनी चाहिए।



"शिक्षा वह कर्ज है जो हमें पिछली पीढ़ी से प्राप्त हुआ"

इस अवसर पर प्रो. प्रेम नारायण सिंह, निदेशक, आई.यू.सी.टी.ई. ने कहा कि यदि आप एक वर्ष की योजना बनाना रहे हैं तो अनाज उगायें, दस वर्ष की योजना हेतु पेड़ लगायें और सौ वर्ष की योजना हेतु मनुष्य बनायें। इसलिए मानव को सार्थक मानव में परिवर्तित करने में शिक्षा की और शिक्षा को व्यवहार में परिवर्तित करने में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम सभी शिक्षकों व शिक्षक वृत्ति से जुड़े लोगों को कर्तव्यों का निर्वहन करने की जरूरत है। शिक्षा वह कर्ज है जो हमें पिछली पीढ़ी से प्राप्त हुआ है। हमें अगली पीढ़ी को चुकाना है। कार्यक्रम के पूर्व पदम्श्री प्रो. राजपूत जी ने अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द में नवनिर्मित दृश्य-श्रव्यांकन कक्ष (आडियो-वीडियो स्टूडियो) का उद्धाटन किया।


ये रहे उपस्थित

कार्यक्रम में प्रो. सत्यजीत प्रधान, प्रो. ए.एन. राय, प्रो. कल्पलता पाण्डेय, प्रो. दीना नाथ सिंह, प्रो. सुनील कुमार सिंह, प्रो. जितेन्द्र कुमार, प्रो. प्रेम शंकर राम, प्रो. उदयभान सिंह, प्रो. बच्चा सिंह, प्रो. अरविन्द पाण्डेय, प्रो. आलोक गार्डिया, प्रो. जयराम सिंह, प्रो. पुष्पा सेठ, डा. अलकेश्वरी सिंह, प्रो. बलवीर सिंह, प्रो. आर.ए. सिंह, प्रो. तेज प्रताप सिंह, डॉ. जी.एन. तिवारी, डॉ. राज कुमार सिंह, डॉ. बालालखेन्द्र, प्रो. एस. के. स्वैन, डॉ. ओ.पी. सिंह, डॉ. जगदीश सिंह दीक्षित, डॉ. ललिता, डॉ. अमिताभ राव व प्रो. राजीव रंजन सिंह आदि व महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, हरिश्चन्द्र महाविद्यालय, वसन्ता महिला महाविद्यालय, राजघाट, अग्रसेन महाविद्यालय सहित अनेक शिक्षण संस्थानों के शिक्षक व अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी, सह-संयोजन डॉ. ज्ञानेन्द्र सिंह, मंगलाचरण डॉ. राजा पाठक, एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. आशीष श्रीवास्तव (डीन, शैक्षणिक एवं शोध) ने किया। इस महनीय कार्यक्रम में केन्द्र के शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक कर्मियों की उपस्थिति रही। 

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