Krishna Janmashtami : मां विंध्यवासिनी का कृष्ण से क्या था रिश्ता, द्वापर युग से होती रही है संबंधों को लेकर चर्चा

माँ विंध्यवासिनी भगवान कृष्ण की बहन भी मानी जाती हैं इसलिए देवी विंध्यवासिनी को माता के रूप में पूजने वाले भगवान कृष्ण को मातुल यानी मामा के रूप में भी जानते हैं।

Report :  Brijendra Dubey
Published By :  Ashiki
Update:2021-08-30 17:26 IST

मां विंध्यवासिनी - भगवान कृष्ण (Photo Social Media)

Krishna Janmashtami: विंध्याचल में विंध्य की पहाड़ियों पर मां विंध्यवासिनी निवास करती है। वहीं भगवान कृष्ण यदुवंशी कुल में जन्मे साक्षात विश्वगुरु हैं, उन्हें पृथ्वी पर कौन नहीं जानता। भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान विश्व कल्याण के लिए दिया। विंध्यवासिनी देवी का भगवान कृष्ण से संबंध बहुत ही घनिस्ट है। हम अपने परिवार के किसी सदस्य का जन्मदिन पर तरह-तरह की तैयारियां करते हैं। उस दीन को हम उत्सव से कम नहीं बनाते हैं, लेकिन अगर बात भगवान कृष्ण की हो तो वह बालक से पालक के रूप में लोगों को प्रिय हैं। ऐसे में ये दिन और भी बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

धार्मिक कथाओं में जिक्र

भगवान की लीला: कारागार में जब भगवान कृष्ण की माता देवकी ने अपने गर्भ से भगवान कृष्ण को जन्म देती है तो भगवती की अनुकंपा से सभी पहरेदार गहरी निद्रा में समा गए। भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव की बेड़ियां स्वयं ही खुल गई, वासुदेव अपने पुत्र की रक्षा और जगत कल्याण के लिए भगवान कृष्ण को नंद के यहां ले गए और नंद की नवजात बेटी से कृष्ण को बदल दिया। वह वापस अपने कारागार में आ गए । ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि कृष्ण के मामा कंस बड़े ही अत्याचारी स्वभाव के थे।मामा के अत्याचार युग के अंत के लिए ही भगवान श्री कृष्ण का जन्म होना था। इसलिए मामा कंस भगवान को जन्म के समय ही मार देना चाहता था। ऐसा कथाओं में लिखा है। जब पहरेदार के कान में बच्चे की किलकारी गूंज पड़ी तब जाकर पहरेदार ने महाराज कंस को देवकी के आठवें बच्चे के जन्म की खबर सुनाई। महाराज कंस उस बच्चे को मारने के लिए कंस कारागार में आता है।


देवकी बच्ची को गोद में लेकर खिला रही थी। वह बच्ची कोई साधारण बच्ची नहीं थी। वह तो साक्षात भगवती योगमाया थी। जिनको कंस अपनी बहन की गोद से छीन कर वध करने के लिए कंस ने कारागार के दीवार की ओर फेंका। लेकिन वह साक्षात भगवती योगमाया थी जो दीवार से ना टकराकर आकाश की ओर चली गयी। जाते-जाते अट्टहास कर कंस के ऊपर हसने लगी। भगवती कंस से कहती है। हे मूर्ख तेरा वध करने वाला तो जगत में आ चुका है। वही मां भगवती वहां से आकर योगमाया बनकर विंध्याचल पर्वत पर निवास करती हैं।

इसका जिक्र दुर्गा सप्तशती में भी किया गया है

"नन्दगोप गृहे जाता यशोदा-गर्भ-सम्भवा।

ततस्तौ नाशयिष्यामि, विन्ध्याचल निवासिनी।।"

यानी गोप नंद के घर यशोदा के गर्भ से जन्म लेने वाली विंध्याचल में निवास करेंगी, इसीलिए मां विंध्यवासिनी को नंद की आत्मजा अर्थात नंदजा के स्वरूप में भी पूजा जाता है।

कथा अनुसार माँ विंध्यवासिनी भगवान कृष्ण की बहन भी मानी जाती हैं इसलिए देवी विंध्यवासिनी को माता के रूप में पूजने वाले भगवान कृष्ण को मातुल यानी मामा के रूप में भी जानते हैं।

अब आप भी जान चुके हैं कि विंध्यवासियों का रिश्ता भगवान श्री कृष्ण से आज का नहीं बल्कि द्वापर युग से है।

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