UP Election 2022: जातीय समीकरणों के जाल में उलझी BJP, राज्यमंत्री की सीट पर SP-BSP की तगड़ी घेराबंदी, कांग्रेस भी दे रही टक्कर

ओबरा एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां एक तरफ विकास की गाथा बयां करते ढेरों कल-कारखाने और आधुनिक जीवनचर्या को बयां करती परियोजनाओं की आवासीय कालोनियां, बाजार क्षेत्र मौजूद हैं।

Published By :  Divyanshu Rao
Update:2022-02-19 20:25 IST

बसपा सपा के चुनाव चिन्ह की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

UP Election 2022: भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित कही जाने वाली तथा राज्यमंत्री की उम्मीदवारी के नाते पूर्वांचल की हाॅट शीट में शुमार ओबरा विधानसभा में, इस बार भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है। जहां जातीय समीकरणों ने यहां भाजपा को उलझाकर रख दिया है। वहीं सपा और बसपा की तगड़ी घेरेबंदी तथा कांग्रेस की तरफ से दी जाती कड़ी टक्कर ने चुनावी परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है। जीत किसके हाथ आएगी तो यह तो मतगणना का परिणाम बताएगा? लेकिन इस बार के उलझे समीकरण को देखते हुए हर किसी की निगाहें यहां के हालात पर टिक गई हैं।

ओबरा एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां एक तरफ विकास की गाथा बयां करते ढेरों कल-कारखाने और आधुनिक जीवनचर्या को बयां करती परियोजनाओं की आवासीय कालोनियां, बाजार क्षेत्र मौजूद हैं। वहीं दूसरी तरफ अभावों में जिंदगी गुजारना अपनी नियति मान चुके रेणुका पार और भाठ क्षेत्र के बाशिंदों का जीवन है। 

रिहंद जलाशय के रूप में एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील, एशिया का पहला बिजली कारखाना ओबरा, राज्य सेक्टर की सबसे बड़ी बिजली परियोजना अनपरा, लंबे समय तक एशिया का सबसे बड़े अल्युमिनियम कारखाने का दर्जा रखने वाले हिण्डालको इंडस्ट्रीज और पूर्वांचल में बिल्डिंग मैटेरियल्स कारोबार के आधार गिट्टी-बालू खनन उद्योग के स्थापित होने का गौरव इस विधानसभा क्षेत्र को हासिल है।

बावजूद विकास से वंचित इलाके अपनी हालात पर अब भी आंसू बहाने को विवश हैं। कई गांव ऐसे हैं जहां पेयजल संकट तो बड़ा मसला है ही, नदी-नालों, चुआंड़ के पानी से प्यास बुझाना, दुर्गम क्षेत्र के बाशिंदों की मजबूरी है।

समाजवादी पार्टी और बीएसपी के चुनाव चिन्ह की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

वर्ष 2012 में अस्तित्व में आई थी यह सीट

वर्ष 2012 में यह सीट ओबरा के रूप में अस्तित्व में आई है। इससे पहले दुद्धी और राबटर्सगंज विधानसभा में यहां की एरिया समाहित थी। 2012 में ही यहां भाजपा का पलड़ा परंपरागत वोटरों की बदौलत भारी माना जा रहा था लेकिन भाजपा के अनिल सिंह की बगावत और कांग्रेस की मजबूत सेंधबाजी ने इस सीट को भाजपा की बजाय बसपा की झोली में डाल दिया।

2017 में यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई और संजीव कुमार गोंड़ मोदी लहर और परंपरागत वोटरों की बदौलत 44 हजार से अधिक अंतर से विधायक निर्वाचित हो गए। जनजातीय समीकरणों के लिहाज से 2021 में उन्हें राज्यमंत्री भी बना दिया गया लेकिन विकास से वंचित इलाकों की तस्वीर में कोई खास फर्क न आने का मसला लोगों को सालता रहा।

इस बार दिख रही बसपा-सपा की मजबूत घेराबंदी:

सोनभद्र। इस बार जहां पिछली बार की तरह मोदी लहर नहीं दिख रही है। वहीं बसपा-सपा की मजबूत घेरेबंदी और कांग्रेस की तरफ से दी जाती कड़ी टक्कर ने सियासी रणनीतिकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। 2017 में सपा, भाजपा और बसपा तीनों ने गोंड़ बिरादरी के प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा था। गठबंधन के नाते कांग्रेस यहां की लड़ाई से बाहर थी।

इस बार भाजपा ने जहां गोंड़ बिरादरी से आने वाले राज्यमंत्री पर दोबारा भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस ने घोरावल विधानसभा क्षेत्र के उभ्भा कांड से चर्चा में आए रामराज गोंड़ को टिकट देकर भाजपा को सीधी टक्कर देने की कोशिश की है। सपा ने इस बार प्रत्याशी तो बदला है लेकिन गोंड़ बिरादरी के अरविंद को चुनावी मैदान में उतारकर सीधी चुनौती बरकरार रखी है। स्वजातीय मतदाताओं में अरविंद की अच्छी पैठ भी बताई जा रही है। वहीं दूसरी तरफ सपा ने खरवार बिरादरी के सुभाष को चुनावी मैदान में उताकर जातिगत समीकरणों का परिदृश्य उलझाकर रख दिया है।

जिताऊ फैक्टर माने जाते है गोंड़-खरवार वोटर

कुल जनसंख्या के लिहाज से ओबरा विधानसभा क्षेत्र पिछड़ा वर्ग बहुल माना जाता है लेकिन जब चुनाव की बारी आती है तो यहां आदिवासियों का वोट जिताऊ फैक्टर साबित होने लगता है। दुद्धी में जहां आदिवासियों में सबसे ज्यादा संख्या गोंड़ बिरादरी की है। वहीं ओबरा में यहीं दर्जा खरवार बिरादरी को हासिल है। पिछले चुनाव में सभी ने गोंड़ बिरादरी का ही प्रत्याशी उतारा था और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला।

इससे पहले के चुनावों में भी खरवार वोटरों का समर्थन भाजपा के ही खाते में आया था लेकिन इस बार समीकरण बदला-बदला है। जहां भाजपा, सपा और कांग्रेस ने गोंड़ बिरादरी का उम्मीदवार उतारा है। वहीं बसपा ने ऐन वक्त पर खरवार बिरादरी के उम्मीदवार को टिकट देकर जातीय समीकरणों का बड़ा दांव खेल दिया है। बता दें कि ओबरा विधानसभा क्षेत्र के जो शहरी वोटर हैं, उसमें भाजपा का बड़ा जनाधार बताया जाता है लेकिन बूथों पर पड़ने वाले मतदान पर नजर डालें तो इस जनाधार वाले इलाके से 25 से 30 फीसद लोग ही वोट डालने पहुंचते हैं। परंपरागत वोटरों की नाराजगी भी एक मसला है।

ओबरा विधानसभा का जातिगत समीकरण (अनुमानित)

कुल मतदाता - 3,13,620

पुरूष मतदाता - 1,71,627

महिला मतदाता - 1,41,982

खरवार- 60 हजार, गोंड़ - 42 हजार, यादव - 32 हजार, वैश्य - 27 हजार, कोल - 21 हजार, ब्राह्मण - 24 हजार, दलित - 22 हजार, मौर्या - 14 हजार, पनिका - 15 हजार, पटेल - 12 हजार, विश्वकर्मा - 12 हजार, गुर्जर यादव - 10 हजार, चैहान - 8 हजार, अन्य जातियां - 14620.

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