रेप के आरोप में निर्दोष को काटनी पड़ी 20 साल की सजा,फिर ऐसे हुई रिहाई

भारतीय कानून की खांमियों का खामियाजा कभी—कभी निर्दोषों को भुगतना पड़ जाता है। ऐसा ही मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट से सामने आ रहा है। हाई कोर्ट ने 20 साल से जेल में बंद एक आरोपी को रिहा करने का आदेश दिया है। हालांकि हाई कोर्ट ने बिना किसी सबूत के युवक के 20 साल तक जेल में रहने पर हैरानी जताई है।

Update:2021-03-02 18:04 IST
भारतीय कानून

प्रयागराजः भारतीय कानून की खांमियों का खामियाजा कभी—कभी निर्दोषों को भुगतना पड़ जाता है। ऐसा ही मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट से सामने आ रहा है। हाई कोर्ट ने 20 साल से जेल में बंद एक आरोपी को रिहा करने का आदेश दिया है। हालांकि हाई कोर्ट ने बिना किसी सबूत के युवक के 20 साल तक जेल में रहने पर हैरानी जताई है।

यह है पूरा मामलाः

आपको बता दें कि जब आरोपी विष्णु 16 साल का था तो उसके ऊपर सितंबर, 2000 को खेत जा रही अनुसूचित जाति की महिला से दुराचार करने का आरोप लगा था। इस मामले में सीओ ने विवेचना की और चार्जशीट दाखिल की। सत्र न्यायालय ने दुष्कर्म के आरोप मे 10 साल व एससी/एसटी एक्ट की धारा में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आरोपी वर्ष 2000 से ही जेल में है। इस मामले में जेल अपील डिफेक्टिव दाखिल की गई। 20 साल जेल में बंद होने के आधार पर शीघ्र सुनवाई की अर्जी पर कोर्ट ने देखा कि दुराचार का आरोप साबित ही नहीं हुआ।

इसलिए कोर्ट ने तत्काल छोड़ने दिया आदेशः

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सुनवाई के दौरान दुष्कर्म का आरोप सिद्ध न होने पर हाई कोर्ट ने आरोपी विष्णु को तत्काल रिहा करने का आदेश देते हुए मामले में सरकारी रवैये को अफसोसजनक करार दिया। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह समझ से परे है कि सरकार ने इसके बारे में विचार क्यों नहीं किया। कोर्ट ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है।

दुराचार करने का नहीं मिला था सबूतः

बताते चलें कि मेडिकल रिपोर्ट में महिला के साथ कोई जबरदस्ती करने का सबूत नहीं मिला था। पीड़िता उस समय 5 माह की गर्भवती थी। वहीं पीड़िता के पति व ससुर ने इस वारदात की रिपोर्ट भी तीन दिन बाद लिखवाई थी। पीड़िता ने अपने बयान में इस बात को स्वीकार भी किया है। कोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालय ने सबूतों पर विचार किए बिना ही अपना फैसला दिया।

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10 से 14 साल जेल में गुजार चुके आरोपियों की संस्तुति भेजने का दिया आदेश दियाः

कोर्ट ने प्रदेश के विधि सचिव को आदेश दिया है कि वह सभी जिलाधिकारियों से कहें कि 10 से 14 साल की आजीवन कारावास की सजा भुगत चुके कैदियों की संस्तुति राज्य सरकार को भेजे। भले ही उनके सजा के खिलाफ अपील विचाराधीन हो। जो भी आरोपी 14 साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं उनकी संस्तुति राज्य सरकार को भेजा जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ. केजे ठाकर और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने ललितपुर के विष्णु की जेल अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।

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