BLOOD DONOR DAY: आप भी इनकी तरह करके रक्तदान, बचाते हैं किसी की जान ?

Update: 2016-06-14 07:20 GMT

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लखनऊ के ब्लड डोनेट करने वाले युवा

SANDHYA YADAV

लखनऊ: वे भगवान नहीं हैं, न जाने क्यों गरीब उन्हें पूजते हैं? वे डॉक्टर भी नहीं हैं, फिर भी उन्हें डॉक्टर से कम नहीं समझा जाता है! डॉक्टर के इलाज करने के बाद एक बार मरीज डॉक्टर को भूल सकता है, पर वो उस इंसान को कभी नहीं भुला पाता है, जिसने अपनी रगों में बह रहे खून से उसकी जिंदगी बचाई है। जब तक उस मरीज की जिंदगी की सांसें चलती हैं, तब तक वह खुद को उस ब्लड डोनेट करने वाले का एहसान मानता है।

यकीन नहीं होता है तो किसी अस्पताल जाकर उस करोड़पति बेटे से पूछिए, जो अपने पापा की जान बचाने के लिए ब्लड ढूंढ रहा होता है और उसे उसके पापा के ग्रुप वाला ब्लड नहीं मिलता है। उस वक़्त शायद उसका दिल उसे कचोटता होगा कि काश उसने अगर कभी ब्लड डोनेट जैसा काम करके किसी की जान बचाई होती, तो शायद आज किसी फरिस्ते से उसके पापा का ब्लड ग्रुप मिल जाता।

 

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कहने को अक्सर ही लोग कहते हुए मिल जाते हैं कि हमें ब्लड डोनेट करने की क्या जरुरत? तमाम लोग करते ही हैं पर क्या आप जानते हैं कि आपके द्वारा किया गया डोनेट ब्लड किसी की जान बचा सकता है। किसी बच्चे को अनाथ होने से बचा सकता है, तो किसी मां की गोद को सूनी होने से बचा सकता है। ब्लड डोनेशन की वैल्यू लोगों को तब समझ आती है जब उनका कोई अपना जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा होता है और उन्हें ब्लड देने वाला कोई नहीं मिलता है।

बता दें कि भारत में मरीजों को हर साल औसतन चार करोड़ यूनिट ब्लड की जरुरत पड़ती है। जबकि उपलब्धता अभी 80 लाख यूनिट ब्लड की ही है। रिजल्ट टाइम पर ब्लड की व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण लाखों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं। इनमें ज्यादातर सड़क दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल होते हैं। जो एक तो चिकित्सा के लिए अस्पताल तक ही देर से पहुंच पाते हैं और जो पहुंच भी जाते हैं, उनके लिए उनके ब्लड ग्रुप के ब्लड की समय रहते व्यवस्था नहीं हो पाती। ज्यादातर लोगों का मानना होता है कि ब्लड डोनेशन से कमजोरी आती है। बस इसी छोटी सोच के चलते अक्सर लोग अपने ही सगे मां बाप और भाई बहनों तक को ब्लड देने से पीछे हट जाते हैं।

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रिजवान खान

टूट जाती है हर जाति धर्म की दीवार

आशियाना के रहने वाले रिजवान खान का कहना है कि अभी हाल ही में उनकी मामी की तबियत काफी ख़राब थी और उन्हें गांव से हॉस्पिटल लाया गया वे बताते हैं कि उनकी मामी जाती धर्म में बहुत यकीन करती है पर जब उन्हें ब्लड की जरुरत हुई तो उनके परिवार का कोई भी मेम्बर आगे नहीं आया। ऐसे में रिजवान ने तुरंत फेसबुक पर अर्जेंट ब्लड नीड का स्टेटस डाला और देखते ही देखते उनके 4-5 दोस्त ब्लड देने के लिए हॉस्पिटल पहुंच गए। सबसे ज्यादा ख़ास बात तो यह थी कि ब्लड देने के लिए आगे आए सभी दोस्त हिंदू थे।

उनकी मामी की जान बच गई। मामी के ठीक होने पर उन्हें बताया गया कि उनकी जान बचाने वाले हिंदू थे, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने रिजवान के सारे दोस्तों को दुआएं दी। कहने का मतलब है कि अगर आप ब्लड डोनेट करते हैं तो जाने अनजाने आप सोसाइटी में जाति धर्म की झूठी दीवारों को भी तोड़ने का काम करते हैं।

एक तरफ जहां कुछ लोगों की छोटी सोच उन्हें किसी की जिंदगी बचाने से रोकती है, वहीं हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो हर तीन महीने में ब्लड डोनेट करके किसी न किसी की जिंदगी बचा रहे हैं। लखनऊ के इन युवाओं का मकसद ब्लड डोनेट करके सिर्फ सर्टिफिकेट लेना नहीं है। असल में ये उन लोगों को बचाना चाहते हैं, जिनकी मां, बहन , बेटी या पत्नी घर के दरवाजे पर बैठकर इंतजार करती हैं। ये उन बच्चों को अनाथ नहीं होने देना चाहते हैं, जिनके पापा का ऑफिस से आते वक्त एक्सीडेंट हो जाता है।

आगे की स्लाइड में मिलाते हैं आपको तमाम जिंदगियां बचाने वाले लखनऊ के युवाओं से

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शुभम मिश्रा

शुभम मिश्रा- नेशनल यूथ अवार्डी का सम्मान पा चुके शुभम मिश्रा का कहना है कि उन्हें दूसरों की सेवा करना अच्छा लगता है और इसी वजह से वह हर तीन महीने में ब्लड डोनेट करते हैं। आपको बता दें कि शुभम ने हाल ही में केकेसी कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया है।

आगे की स्लाइड में मिलाते हैं लखनऊ के ब्लड डोनर कमल सिंह से

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कमल सिंह

कमल सिंह- मुंशी पुलिया इंदिरा नगर में रहने वाले कमल सिंह एम कॉम लास्ट इयर के स्टूडेंट हैं। उनका कहना है कि वह उस ख़ुशी को महसूस करना चाहते हैं, जब उनकी वजह से किसी और के चेहरे पर मुस्कान आती है। वह इसी खुशी को महसूस करने के लिए ब्लड डोनेट करते हैं।

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हर्षित सिंह

हर्षित सिंह एनएसएस के साथ मिलकर सोसाइटी के लिए काम करने वाले हर्षित सिंह को देश के प्रेसिडेंट प्रणब मुख़र्जी द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। हर्षित ने समाज सेवा के लिए इनोवेशन फॉर चेंज के नाम से ग्रुप बनाया है और उससे जुड़े सभी लोगों को ब्लड डोनेट करने के लिए जागरूक करने के साथ-साथ खुद भी हर तीन महीने बाद ब्लड डोनेट करते हैं।

आगे की स्लाइड में मिलाते हैं लखनऊ के ब्लड डोनर विपिन और आरजे प्रतीक भारद्वाज से

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विपिन यादव

 

 

विपिन यादव- शकुन्तला यूनिवर्सिटी से एमएससी करने वाले विपिन यादव का कहना है कि वो जिंदगी ही क्या जो दूसरों के काम न आ सके। ये लाइन उनके मुंह से भले ही बड़ी लग रही हो। पर सच भी सच ऐसा ही है। वह बताते हैं कि वह चोरी छुपकर ब्लड डोनेट करने जाते हैं ताकि मम्मी से डांट नहीं पड़े। इसके अलावा वह अपने फ्रेंड्स को भी ब्लड डोनेट करने के लिए जागरूक करते हैं।

 

 

प्रतीक भारद्वाज

 

आरजे प्रतीक भारद्वाज- पेशे से आरजे प्रतीक भारद्वाज का कहना है कि वे अपने ग्रेजुएशन से ब्लड डोनेट करते आ रहे हैं। वे बताते हैं कि एक बार वो किसी काम से हॉस्पिटल गए थे और उन्होंने एक मरीज को ब्लड के लिए तड़पता देखा। बस उसी दिन से उन्होंने फैसला किया कि वो ब्लड डोनेट करेंगे किसी की जिंदगी बचाने में अगर उनका ब्लड काम आता है, तो वे खुद को बड़ा खुशनसीब मानेंगे।

 

 

आज वर्ल्ड ब्लड डोनर डे है। पर ख़ास बात तो यह है कि किसी से जिद करके ब्लड डोनेशन से किसी की जान नहीं बचाई जा सकती। जब तक लोग खुद अपनी इच्छा से ब्लड डोनेट नहीं करेंगे तब तक हॉस्पिटल्स में ब्लड इकठ्ठा नहीं हो पाएगा। इसलिए जरुरत है लोगों को जागरूक करने की ताकि किसी बच्चे के चेहरे पर मुस्कान बनी रहे। आपका ब्लड केवल एक इंसान की जिंदगी नहीं बचाता है बल्कि उस मरीज के पूरे परिवार की हंसी लौटाने का काम करता है ।

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