World Yoga Day 2021: निरोगी रहने के लिए घरों में योग करते नजर आए लोग
सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लोग योगाभ्यास करते हैं। इस साल सातवां योग दिवस मनाया जा रहा है।
Ambedkarnagar News: व्यवहारिक दृष्टि से योग आज वैश्विक पहचान का मोहताज नहीं है और कमोवेश सम्पूर्ण विश्व 21 जून के दिन को "विश्व योग दिवस" के रूप में मनाते हुए दैनिक जीवन में योग की महती उपादेयता को उन्मुक्त कंठ से स्वीकार्य करता है। कदाचित पुरातन भारतीय साधना और ध्यान की इस परंपरा को वैश्विक स्तर पर मान्यता ही इसके महत्त्व को चरितार्थ करती है। शाब्दिक रूप से योग शब्द युज समाधौ आत्मनेपदी दीवादिगणीय धातु में घं प्रत्यय लगाने से बनता है। जिसका सामान्य अर्थ चित्त वृत्तियों का निरोध होता है। यद्यपि अन्य रूपों से भी इसकी निष्पत्ति होती है किंतु साधना और समाधि के अर्थ में यही परिभाषा सर्वोत्तम कही जा सकती है। योग की महत्ता को पारिभाषित करते हुए "गीता" में वासुदेव इसे योग "कर्मसु कौशलं" अर्थात कर्मो की कुशलता को ही योग कहकर संबोधित किये हैं। वहीं महान ऋषि पतंजलि इसे योग चित्त वृत्ति निरोधरू के रूप में परिभाषित किये हैं। पतंजलि चित्त को मन कहते हुए ध्यान, साधना के साथ-साथ मंत्रयोग की भी महत्ता का विशद वर्णन किये हैं। उनके अनुसार-"मन्नात त्रायते इति मंत्ररू अर्थात जो योग मन अर्थात चित्त को त्रायते" अर्थात पार कराने वाला मंत्र ही मंत्रयोग है। मनन इति मनरू अर्थात जो मनन या चिंतन करे वही मन है। इसप्रकार महर्षि पतंजलि अल्पबुद्धि वालों के लिए मन की चंचलता का निरोध मंत्र के द्वारा करते समय ध्यान और समाधि की अवस्था को मंत्रयोग की संज्ञा देते हैं।
जैन, बौद्ध, हिन्दू आदि अनेक मान्यताओं के महान ऋषिगण हठयोग को भी योग की एक अमूल्य धारा बतलाये हैं। वहीं गीता में देवकीनंदन ने भक्ति और ज्ञान के साथ-साथ कर्मयोग की महत्ता को प्रतिपादित किया है। हठयोगियों के अनुसार "ह" जहां सूर्य नाड़ियों का प्रतीक है तो वहीं "ठ"चन्द्र नाड़ियों का द्योतक होता है। शरीर में दायीं ओर सूर्यनाडी पिंगला और बायीं ओर चन्द्र नाड़ी इड़ा होती हैं। इन दोनों को ही समाधि और ध्यान इत्यादि अष्टकर्मो से केंद्रित करते हुए सुषुप्त नाड़ी सुषुम्ना में मन, आत्मा और विचारों को केंद्रित करना ही हठयोग कहलाता है। महर्षि पतंजलि सर्वसामान्य हेतु राजयोग के आठ अंगों का वर्णन किये हैं। जिनमें पांच बहिरंग और तीन अंतरंग होते हैं। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्यहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग के अष्टांग मार्ग हैं। योग और आरोग्य एकदूसरे से अन्योन्याश्रित रूप से सम्बद्ध हैं। योग के अंगों यथा यम और नियम के अनुपालन से व्यक्ति जहां अनुशाषित जीवन जीने का आदी होता है वहीं उसका जीवन भी संयमित होने लगता है। संयम ही रोगों से बचाव और आरोग्य का प्रमुख मार्ग और साधन होता है। विज्ञान भी समय से भोजन न करने को असंतुलित भोजन की संज्ञा देता है भले ही भोजन सभी प्रकार से उत्तम ही क्यों न हो। इसप्रकार आहार, विहार, भोजन, भोजन, शयन, जागरण और अन्यान्य क्रियाओं का समयानुसार सम्यक अनुपालन ही आरोग्यता की खान है।
करें योग रहें निरोग
आसन, प्राणायाम जहां व्यक्ति के शरीर में उपापचय क्रियाओं सहित रक्त और वायु संचरण हेतु पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु फेंफड़ों और हृदय तक पहुंचाते हैं, वहीं शरीर के अंदर के दूषित तत्वों को शरीर से बाहर करते हुए शरीर को स्वस्थ बनाये रखते हैं। जिससे रोगों के प्रति शरीर प्रतिरक्षण क्षमता विकसित करता रहता है। इसे ही दूसरे शब्दों में इम्युनिटी कहकर संबोधित किया जाता है। आसन और प्राणायाम शरीर के श्वसन, रक्त परिसंचरण, पाचन तथा अन्य अंगों को बलवान करते हुए शरीर को उस अवस्था में ला देते हैं जहां व्यक्ति विभिन्न प्रकार की समस्याओं और झंझावातों से स्वयम को लड़ने योग्य पाता है।कदाचित यही अवस्था मानसिक शांति की सर्वोत्तम अवस्था होती है।प्रत्यहार और धारणा से जहां स्मृति मजबूत होती है वहीं सफलताओं का प्रतिशत भी बढ़ने लगता है क्योंकि नकारात्मक ऊर्जा धीरे धीरे कम होती जाती है। कालांतर में अभ्यस्त मानव जब दैनिक जीवन में योग के मार्गों व अंगों का नियमित अभ्यास करते हुए आगे बढ़ने लगता है तो उसके ध्यान का केन्द्रीयकरण होने से लक्ष्यप्राप्ति आसान होने लगती है और समाधिस्थ अवस्था उसे जीते जी विदेह बना देती है।यही जैनियों का कैवल्य और बौद्धों का आत्मज्ञान तथा हिंदुओं व अन्यों का परमात्मा से एकाकार होना कहलाता है। यही कारण है कि बौद्ध योग को कुशल चितैकग्गता योग कहकर संबोधित करते हैं। जिसके द्वारा समाधि, मोक्ष और कैवल्य की प्राप्ति होती है। मोक्ष का अर्थ आवागमन से नहीं अपितु जीवन में आनेवाली समस्याओं से मुक्ति से है। इस प्रकार आरोग्य का प्रमुख मार्ग योग स्वयमसिद्ध होता है।अतएव प्रत्येक व्यक्ति को इसे अपने दैनिक अभ्यास का अंग बनाना ही रोग मुक्त होने का सहज उपाय है।यही कारण है कि करें योग रहें निरोग कहकर इसे सम्बोधित करना भी अनुचित नहीं होगा।