गोरखपुर उपचुनाव : विपक्ष की घेराबंदी से घर में ही घिरे योगी

Update:2018-03-09 12:18 IST

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर। योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में हो रहे उपचुनाव में सपा प्रत्याशी को बसपा का समर्थन किसी संजीवनी से कम नहीं दिख रहा है। बसपा के समर्थन से पहले जहां जीत-हार के अंतर को लेकर बहसबाजी हो रही थी, वहीं अब अच्छी लड़ाई की बात होने लगी है। बहस इस बात पर होने लगी है कि सपा प्रत्याशी को किस तरह बसपा के वोट ट्रांसफर हो पाएंगे।

बसपा सुप्रीमो मायावती के समर्थन के ऐलान के बाद अलग-थलग पड़े बसपा नेताओं में ऊर्जा का संचार होता दिख रहा है। खुद सपाई यह कहने में संकोच नहीं कर रहे हैं कि सपा से तेज बसपा के सेक्टर और जोनल प्रभारी नजर आ रहे हैं। सपा-बसपा की दोस्ती का परिणाम पर क्या असर होता है यह तो 14 को साफ होगा, लेकिन योगी के गढ़ में भाजपा के पास वाकओवर जैसी स्थिति तो नहीं दिख रही है।

योगी विपक्ष की घेराबंदी से घर में ही घिरे नजर आ रहे हैं। धुर विरोधी सियासी दलों के मिलन के बाद अब अखिलेश-राहुल की दोस्ती के भविष्य पर सवाल उठने लगा है। अब सभी को गोरखपुर और फूलपुर के चुनावों के परिणाम का इंतजार है। परिणाम के साथ ही प्रमुख राजनीतिक दलों की दोस्ती-दुश्मनी से पर्दा उठ जाएगा।

उपचुनाव के सियासी मायने सिर्फ जीत-हार तक सीमित नहीं है। चुनावी परिणाम अगले वर्ष होने वाले सत्ता के फाइनल से पहले यह भी तय करेंगे कि प्रमुख राजनीतिक दल किसके दोस्त होंगे और किसके दुश्मन। उपचुनाव में बसपा में कमोबेश मैदान में नहीं उतरती है, लेकिन गेस्ट हाउस से लेकर मूर्ति प्रकरण का कड़वा घंूट पीने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने वजूद के लिए सपा को समर्थन दिया है।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदेश में खाता भी नहीं खुला था तो वहीं पिछले दिसम्बर माह में हुए निकाय चुनाव में बसपा को उम्मीद से बेहतर सफलता मिली थी। जीत-हार के बीच भविष्य को लेकर मंथन के बाद बसपा के रणनीतिकारोंं ने सपा से हाथ मिलाया है। बसपा ने राज्यसभा सीट को लेकर हुए समझौते के साथ ही गठबंधन के नफा-नुकसान को देखने के लिए सपा से हाथ मिलाया है।

बसपा के समर्थन के बाद सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद काफी उत्साहित दिख रहे हैं। सपा को उम्मीद है कि बसपा के साथ आने से मुस्लिम और दलित वोटों का सीधा लाभ उन्हें मिलेगा। वहीं निषाद, यादव का वोटबैंक और मजबूती से साथ आएगा।

जमीनी स्तर पर दिख रहा असर

गोरखपुर लोकसभा सीट पर जमीनी स्तर पर सपा को बसपा के समर्थन का असर साफ दिख रहा है। बसपा के परंपरागत दलित वोटर अभी तक असमंजस में थे, लेकिन मायावती के ऐलान के बाद उनकी अनिर्णय की स्थिति पर विराम लग गया है। बिछिया रामलीला मैदान में रहने वाली दलित सुनिता कुमारी कहती हैं कि योगी जी खुद लड़ते तो उन्हें वोट करते। दूसरे की खातिर बहन जी को नहीं छोड़ेंगे।

वहीं गोरखनाथ मंदिर के पीछे पुराना गोरखपुर मोहल्ले में बसपा के समर्थन के बाद स्थिति में तेजी से बदलाव हुआ है। यहां बसपा के स्थानीय नेता सुबह-शाम वोटरों को बहन जी के फरमान की याद दिला रहे हैं। लोकसभा सीट पर मुस्लिम, यादव, दलित और निषाद वोट निर्णायक स्थिति में है। पौने दो लाख यादव और दो लाख के आसपास मुस्लिम वोट सपा का साथ छोडक़र कहीं और जाएंगे, यह कहना मुश्किल लग रहा है।

गोरक्षपीठ और योगी के प्रभाव से निषाद और दलित वोटों में कुछ सेंधमारी तय मानी जा रही है। भाजपा निषाद और दलित वोटों में जितनी सेंधमारी में सफल होगी, सपा की मुश्किलें उतनी ही बढ़ेगी। लोकसभा क्षेत्र में पौने तीन लाख निषाद और पौने दो लाख दलित वोट निर्णायक भूमिका में हैं। उधर, बसपा के समर्थन से सपा सैथवार वोटों में सेंधमारी करने में सफल होती दिख रही है।

सियासत में दोस्ती-दुश्मनी स्थायी नहीं

सपा के महानगर अध्यक्ष जियाउल इस्लाम कहते हैं कि समर्थन के चंद घंटों में ही बसपा कार्यकर्ताओं की सक्रियता ने हमारी ऊर्जा को बढ़ा दिया है। उनके सेक्टर और जोनल प्रभारी काफी सक्रिय हैं। एक सपा नेता का कहना है कि दलितों में इलाहाबाद की घटना को लेकर काफी गुस्सा है जहां केवल शरीर छूने से एक दलित की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।

दलितों को यादव के साथ खड़े होने में दिक्कत नहीं है। उनमें ब्राह्मणवादी व्यवस्था को लेकर काफी गुस्सा है। बसपा के वरिष्ठ नेता और बांसगांव विधानसभा प्रभारी श्रवण निराला का कहना है कि बसपा के कार्यकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण यह नहीं है कि किसे समर्थन करना है। महत्वपूर्ण बहन जी का आदेश है। दलित समुदाय को बहन जी पर भरोसा है कि वह जो भी निर्णय लेंगी, वह बहुजन समाज के हित में ही होगा। बसपा नेता मंजू देवी कहती हैं कि 23 वर्षों का समय काफी लंबा होता है।

सपा के साथ ही बसपा में भी काफी बदलाव हुआ है। दोस्ती-दुश्मनी सियासत में स्थायी नहीं होती है। समय और हालात दोस्ती के लिए काफी अहम हैं। दलित और अति पिछड़े वर्ग के वोटर पूरी तरह सपा के पक्ष में लामबंद हो रहे हैं। सपा पार्षद अशोक यादव का कहना है कि जिन दलित बस्तियों में कोई रिस्पांस नहीं मिल रहा था, वहां बसपा के समर्थन की घोषणा के बाद हालात तेजी से बदले हैं। दलित खुलकर बोल रहे हैं कि अब साइकिल को ही वोट करना है।

बी टीम नहीं बनना चाहती कांग्रेस

उपचुनाव में कांग्रेस के अकले लडऩे की सियासी मायने हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार अच्छी तरह जानते हैं कि वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा के मुकाबले वह प्रमुख विपक्षी पार्टी रहने वाली है। ऐसे में क्षेत्रीय पार्टी को समर्थन देकर वह कभी लोकसभा चुनाव में बी टीम नहीं बनना चाहती है।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुंवर आरपीएन सिंह ने गोरखपुर में इसे साफ भी किया। आरपीएन कहते हैं कि टिकट की घोषणा से पहले पार्टी के उत्तर प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने सपा मुखिया अखिलेश यादव से सीटों के तालमेल को लेकर प्रस्ताव रखा था।

आरपीएन का कहना है कि सपा मुखिया के सामने एक-एक लोकसभा सीट पर चुनाव लडऩे का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन वह राजी नहीं हुए। हमारे पास चुनाव लडऩे के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचा था। इसके साथ ही वह यह भी जोड़ते हैं कि सभी चुनाव में गठबंधन संभव नहीं है। आम चुनाव में वोटों का बिखराव नहीं हो, इसे सभी विपक्षी दलों को देखना होगा।

दांव पर योगी की प्रतिष्ठा

गोरखपुर के सियासी महाभारत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूमिका कई लिहाज से अहम हैं। गोरखपुर गोरक्षपीठ की परंपरागत सीट है। बतौर मुख्यमंत्री उन्हें नतीजे के बहाने काफी कुछ साबित करना है। बसपा और सपा के साथ पूर्वांचल में खासा दखल रखने वाली पीस पार्टी और निषाद पार्टी के एक साथ आने के बाद योगी के लिए गोरखपुर में जीत हासिल करना आसान नहीं रह गया है। उनकी चुनौती को भाजपा प्रत्याशा उपेन्द्र दत्त शुक्ला की बीमारी ने और बढ़ा दिया है। उपेन्द्र हालांकि मैदान में आ गए हैं, लेकिन उनकी सक्रियता पर बीमारी का साफ असर दिख रहा है।

सियासी मजबूरियों के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के कार्यकर्ता सम्मेलन से लेकर जनसभाओं में यह कह रहे हैं कि जैसे मेरे चुनाव में जुटते थे, वैसे ही उपेन्द्र दत्त शुक्ला के लिए जुटें। इतना ही नहीं योगी पुराने दुश्मनों को साथ लेकर चलने में भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। इसी कवायद में बसपा के दो पूर्व विधायकों जयप्रकाश निषाद और राजेन्द्र उर्फ बृजेश सिंह को योगी अपने पाले में कर चुके हैं। वहीं कैम्पियरगंज में खासा दखल रखने वाले गोरख सिंह को भी योगी ने साथ ले लिया है।

2014 में लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी और खुद के प्रभाव के बल पर योगी आदित्यनाथ ने सपा की राजमति निषाद के मुकाबले 3,12,783 वोटों के अंतर से लगातार पांचवी जीत हासिल की थी। सपा और बसपा के उम्मीदवारों के वोटों को जोड़ भी दें तो योगी एक लाख के अधिक के अंतर से आगे थे। योगी और उनकी टीम के समक्ष चुनौती है कि हार-जीत के इस अंतर को बढ़ाएं।

होली से पहले भाजपा प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ला के ब्रेन में दिक्कत हुई तो खुद योगी गोरखपुर से लेकर पीजीआई तक दौड़ लगाते हुए दिखे। परिणाम से यह भी साफ होगा कि पूर्वांचल की सियासत में योगी ही इकलौते फैक्टर हैं या फिर अन्य मुद्दे भी परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। नतीजे से यह भी पता चलेगा कि योगी के खुद लडऩे और गैर गोरक्षपीठ के प्रत्याशी के मायने क्या हैं। केन्द्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला भी उपेन्द्र की जीत के लिए पसीना बहा रहे हैं।

दिग्गजों ने झोंकी ताकत

उपचुनाव में तीनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां वोटों को सहेजने को लेकर कोई कसर छोडऩा नहीं चाहती हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ ही उनके प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम उम्मीदवार प्रवीण निषाद के पक्ष में अपने पारम्परिक वोटों को सहेजने में जुट गए हैं।

26 और 27 फरवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी पांच विधानसभाओं में कार्यकर्ता बैठक का आयोजन कर साफ कर दिया है कि चुनाव को लेकर वह पूरी गम्भीरता बरत रहे हैं। 5 मार्च से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने ताबड़तोड़ जनसभाएं शुरू कर दी हैं।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने जहां दो दिनों में 10 जनसभाएं कीं, वहीं मुख्यमंत्री ने भी पांच जनसभाएं कर सरकार की उपलब्धियों को गिनाया। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी 7 मार्च को कार्यकर्ताओं में जोश भरने के साथ ही केन्द्र और प्रदेश सरकार पर झूठे वादों का आरोप लगाते हुए सपा को जिताने की अपील की।

नेताओं के बोल

  • जैसे बाढ़ में सांप-छछूंदर एक हो जाते हैं, उसी तरह सपा और बसपा एक हुए हैं। अपराध और भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने के लिए दोनों में नापाक समझौता हुआ है।

    योगी आदित्यनाथ

    मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश

  • सपा और बसपा के बीच सौदेबाजी का समझौता हुआ है। दोनों दल एक हाथ दे, दूसरे हाथ ले की नीति पर एक हुए हैं।

    राजबब्बर

    प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस

  • भाजपा प्रदेश को विनाश के रास्ते पर ले जाना चाहती है। पूरे विपक्ष को एकजुट होकर जाति-धर्म की राजनीति करने वाली भाजपा को सत्ता से बाहर करना होगा।

    राम गोविन्द चौधरी

    नेता विपक्ष

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