बुंदेलखंड की प्यास बुझाने के लिए योगी सरकार उठाएगी ये बड़ा कदम

मंदाकिनी, बागैन, केन, वेतवा, धसान, चम्बल और यमुना जैसी 7 नदियों वाला बुंदेलखंड आज भी प्यासा है। कोई भी सरकार नहीं बुझा पाई बुंदेलखंड की प्यास।

Update: 2020-03-05 16:08 GMT

चित्रकूट: मंदाकिनी, बागैन, केन, वेतवा, धसान, चम्बल और यमुना जैसी 7 नदियों वाला बुंदेलखंड आज भी प्यासा है। आजादी के बाद आई सरकारों ने तमाम यत्न और प्रयत्न किए लेकिन बुंदेलखंड की प्यास नहीं बुझ पाई। इसे क्षेत्र का दुर्भाग्य कहें या फिर नियति पानीदार बुंदेले पानी-पानी चिल्लाने पर विवश हैं।

जब-जब गर्मी के महीनों की शुरुआत होती है। बुंदेलखंड के 7 जिलों चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर में पेयजल का संकट खड़ा हो जाता है। चित्रकूट के पाठा क्षेत्र में तो किसी जमाने मे "गगरी ना फूटै खसम मर जाए" जैसी गूंज सुनाई पड़ती थी और पेयजल के हाहाकार की कहानी बयां करती थी।

आज हालत में कुछ सुधार अवश्य हुआ है लेकिन भीषण गर्मी में समूचा बुंदेलखंड पेयजल की विभीषिका से आज भी जूझता है। शहरी क्षेत्रों में तो हैण्डपम्प, समर्सिबल, सप्लाई के पानी समेंत कई इंतजाम हैं लेकिन गांवों की हालत आज भी दयनीय है। गांवों के परंपरागत जलश्रोतों कुओं, तालाबों में ग्रहण लग गया।

विधायक और एमएलसियों को मिलते हैं 100-100 हैण्डपम्प

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आश्चर्य की बात ये है कि बुंदेलखंड में 7 नदियां हैं। फिर भी समूचे बुंदेलखंड की प्यास नहीं बुझ पाई। क्या योजनाओं के क्रियान्वयन में कोई कमीं आई या फिर कभी ऐसी योजनाएं ही नहीं बनी जो दूरगामी हों। और जिससे समस्या का अंत हो सके।

वर्षा जल संचयन के प्रति आज भी किसी तरह की गंभीरता नहीं दिखाई जा रही। बारिश के समय नदियों में उफान और गर्मियों में सूखा एक प्रक्रिया हो गई है। अंधाधुंध जलदोहन हो रहा है, रोज हजारो हैण्डपम्प और ट्यूबवेल अधिष्ठापित हो रहे हैं। सरकारी तौर पर ही बुंदेलखंड की 19 विधानसभाओं में विधायकों को 100-100 हैण्डपम्पों का कोटा निर्धारित है।

इसके अलावा एमएलसी भी 100 हैण्डपम्पों की स्वीकृति देते हैं। अब तो ग्राम पंचायतों को भी नए हैण्डपम्प अधिष्ठापना व रिबोरिंग के पावर मिल गये हैं।

प्रतिवर्ष 5 हजार से ज्यादा लगते हैं हैण्डपम्प और ट्यूबवेल

मोटे तौर पर माना जाए तो प्रतिवर्ष केवल सरकारी हैण्डपम्प और ट्यूबवेल ही लगभग 5 हजार के पार पूरे बुंदेलखंड में लगाये जाते हैं। इसके अलावा रोज प्राइवेट मशीनों के जरिये भी बुंदेलखंड की धरती का सीना चीरा जा रहा है। रोज नए घर बन रहे हैं और पहला काम पानी के लिए हैण्डपम्प और समर्सिबल लगाने का हो रहा है। घर बनेंगे तो पानी भी जरूरी है, लेकिन अब दोहन के साथ-साथ वर्षा जल संचयन पर भी ध्यान देना होगा।

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नए तालाब, कुएं विकसित करने होंगे और पानी की बर्बादी के प्रति जवाबदेह बनना होगा। साथ ही जलश्रोतों को बचाने, उन्हें साफ स्वच्छ रखने में भी हमें अपनी भूमिका निभानी होगी।

केन और वेतवा नदियों को जोड़ने के पीछे सरकार की मंशा भी शायद क्षेत्र विशेष में संकट के समाधान की है। लेकिन नदी जोड़ो की मुहिम में मंदाकिनी और नर्मदा को जोड़ने की दिशा में सरकार संवेदन शून्य बनी हुई है।

योगी सरकार ला रही 15 हजार करोड़ की योजना

बुन्देली सेना के जिलाध्यक्ष समाजसेवी अजीत सिंह ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर बुंदेलखंड की पेयजल समस्या के स्थायी समाधान सुझाये थे। पत्र में मांग की थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में गहरी बोरिंग और हैण्डपम्प अधिष्ठापना पर तत्काल रोक लगा दी जाए। पेयजल के लिए गांव में एक सरकारी ट्यूबवेल बनाकर पानी की टंकी के जरिये पूरे गांव को सप्लाई दी जाए। इससे साल दर साल हैण्डपम्पों की बढ़ती मांग रुक जाएगी और जलदोहन भी कम हो जाएगा।

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बरहाल 7 नदियों वाले बुंदेलखंड की प्यास बुझाने को लेकर सरकारों को गंभीरता दिखानी होगी। नयी सोंच और योजनाओं के साथ धरातल पर उतरना होगा। अब देखना यह होगा कि कब पानीदार बुंदेलों का गला तर होगा। कब इस घरती की प्यास बुझेगी।

हालांकि प्रदेश सरकार ने बुन्देलखण्ड के हर घर में पाइप से पेयजल पहुंचाने का लक्ष्य बनाया है। 15 हजार करोड़ की इस परियोजना के लिए सरकार ने बजट का भी प्रावधान कर दिया है। जल्द ही योजना का शुभारंभ होने के संकेत हैं। इस योजना के परवान चढ़ते ही 7 नदियों के होने पर भी प्यासे बुन्देलखण्ड को सीएम योगी पानीदार बनाएंगे।

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