चांद पर चीन: आधी सदी बाद करने जा रहा ये काम, दुनिया में हलचल तेज
चीन का स्पेसक्राफ्ट चांग ई-5 (Chang'e-5) चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतर गया। यह अंतरिक्षयान चांद की धरती से पत्थरों का सैंपल कलेक्ट कर धरती पर लाएगा।
नई दिल्ली: कल यानी एक दिसंबर की रात 8.45 मिनट (भारतीय समयानुसार) पर चीन का स्पेसक्राफ्ट चांग ई-5 (Chang'e-5) चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतर गया। इस बारे में जानकारी देते हुए चीन की नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने बताया कि यह अंतरिक्षयान चांद की सतह पर पूर्व निर्धारित जगह के बिल्कुल पास उतरा है। बता दें कि चीन ने इस यान को 23 नवंबर को चांद के लिए भेजा था। इस मिशन के जरिए चीन चांद की धरती से पत्थरों का सैंपल कलेक्ट कर धरती पर लाएगा।
आधी सदी बाद चांद की मिट्टी आएगी धरती पर
बता दें कि करीब आधी सदी बाद चीन पहली बार चंद्रमा की सतह से मिट्टी के नमूनों को धरती पर लाएगा। लगभग 44 साल बाद ऐसा कोई अंतरिक्षयान चांद पर उतरा है, जो यहां से नमूना लेकर वापस धरती पर लौटेगा। इससे पहले ऐसा अमेरिका ने अपोलो काल में साल 1976 में किया था। चीन के इस यान (Chang'e-5 Spacecraft) को 14 दिन के अंदर चांद की सतह खोदकर, उसमें से मिट्टी और पत्थर के दो किलोग्राम सैंपल लेकर वापस धरती पर लौटना है। इससे पहले चांद से 200 ग्राम मिट्टी लाई गई थी।
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इस जगह पर लैंड हुआ चांगई-5 स्पेसक्राफ्ट
बताया जा रहा है कि चीन का चांगई-5 रोबोटिक स्पेसक्राफ्ट चांद पर ऐसी जगह उतरा है, जहां पर पहले कोई मिशन नहीं भेजा गया है। यह रोबोटिक स्पेसक्राफ्ट कुछ हफ्तों के बाद चांद की मिट्टी लेकर धरती की ओर वापस लौटेगा। धरती के लोग साल 1976 के बाद पहली बार चांद की मिट्टी देख सकेंगे। इसके अलावा इस पर दुनियाभर के कई वैज्ञानिक भी रिसर्च करने के लिए तैयार होंगे। बता दें कि चीन का स्पेसक्राफ्ट 23 नवंबर की रात में साउथ चाइना सी से लॉन्च किया गया था।
चीन के दो मिशन पहले से ही हैं मौजूद
वहीं आपको यह भी बता दें कि चीन के दो मिशन पहले से ही चांद की सतह पर मौजूद हैं। साल 2013 में चेंग ई-3 नाम का एक अंतरिक्षयान चांद के सतह पर पहुंचा था। उसके बाद साल 2019 में चेंग ई-4 नाम का स्पेसक्राफ्ट चंद्रमा की सतह पर लैंडर और यूटू-2 रोवर के साथ उतरा था। मिली जानकारी के मुताबिक, अभी भी यह मिशन एक्टिव हैं। वहीं एयरक्राफ्ट चांग ई-5 की बात करें तो यह चांद की उस सतह पर उतरा है, जहां पर करोड़ों साल पहले ज्वालामुखी होते थे। ये चांद का उत्तर-पश्चिम का इलाका है, जो हमें आंखों से दिखाई देता है।
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अंतरिक्षयान के साथ है ये परेशानी
हालांकि इस स्पेसक्राफ्ट के साथ एक परेशानी भी है। दरअसल, इसमें किसी भी तरह का आंतरिक गर्मी देने वाला मैकेनिज्म नहीं इस्तेमाल किया गया है। जिसका मतलब है कि यह इसमें माइनस 170 डिग्री सेल्सियस वाली रात को बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं है। इसका पूरा मिशन एक लूनर दिन के लिए है, यानी धरती के समय के हिसाब से उसके पास केवल दो हफ्ते यानी 14 दिन का ही समय है। इन 14 दिनों में उसे चांद की सतह खोदकर, उसमें से मिट्टी और पत्थर के दो किलोग्राम सैंपल लेकर लोटना होगा।
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