बीजिंग: 'वन बेल्ट वन रोड' (OBOR) पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से भारत की दूरी को चीन पचा नहीं पा रहा। मंगलवार (16 मई) को चीनी मीडिया ने भारत के इंकार को घरेलू राजनीतिक तमाशा बताया, तो विदेश मंत्रालय ने पूछा कि इसका हिस्सा बनने के लिए भारत किस तरह की बातचीत चाहता है।
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गौरतलब है कि एशिया, यूरोप और अफ्रीका के 65 देशों को जोड़ने वाली चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना (OBOR) पर सोमवार को समाप्त हुए सम्मेलन में 100 से ज्यादा देशों ने हिस्सा लिया था। इसमें पाक पीएम नवाज शरीफ सहित 29 देशों की सरकार के मुखिया मौजूद थे। पीओके से गुजरने वाले चीन-पाक आर्थिक गलियारे के कारण भारत इस सम्मेलन का हिस्सा नहीं बना।
भारत कूटनीतिक तरीके से इस पर बात कर सकता है
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मिली प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए कहा, कि 'बीजिंग शुरुआत से ही चाहता रहा है कि भारत इस परियोजना का हिस्सा बने। परियोजना व्यापक परामर्श, संयुक्त साझेदारी और साझा लाभ के सिद्धांत पर आधारित है। ऐसे में हम समझ नहीं पा रहे हैं कि अर्थपूर्ण संवाद से भारत का तात्पर्य क्या है। वे हमें सार्वजनिक या कूटनीतिक तरीके से इसके बारे में बता सकते हैं।'
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OBOR का मकसद क्षेत्रीय अखंडता में दखल देना नहीं
वन बेल्ट वन रोड सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग के दिए संबोधन का हवाला देते हुए चुनयिंग ने कहा, कि 'इस परियोजना का मकसद किसी देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता में दखल देना नहीं है। कश्मीर विवाद भारत-पाक का द्विपक्षीय मसला है। बीजिंग का मानना है कि दोनों देशों को बातचीत से इसका हल निकालना चाहिए।'
दोस्ताना संबंध दोनों देश के हित में
चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' ने अपने संपादकीय में लिखा है, कि 'दोस्ताना संबंध भारत और चीन दोनों के हित में है। भारत चाहता है कि चीन उसके हितों पर विशेष ध्यान दे। लेकिन इसके लिए सही तरीके से संवाद कायम नहीं किया जा रहा।' अखबार के मुताबिक, 'ओबोर पर भारत की आपत्ति का कारण घरेलू राजनीति है। इसका मकसद चीन पर दबाव बनाना है। लेकिन, भारत की गैर मौजूदगी का इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इस पहल से दुनिया की जो तरक्की होगी उस पर भी इसका असर नहीं पड़ेगा।'
भारत चीन से ले सकता है सीख
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, कि 'यदि भारत खुद को एक बड़ी ताकत के रूप में देखता है, तो उसे चीन के साथ बहुत सी असहमतियों का अभ्यस्त होना चाहिए। चीन के साथ इन असहमतियों से निपटने का प्रयास करना चाहिए। यह लगभग असंभव है कि दो बड़े देश सभी चीजों को लेकर समझौते पर पहुंच जाएं। इस बात को चीन और अमेरिका के बीच के मतभेदों से समझा जा सकता है। इसके बावजूद दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंध बना रखे हैं, जिससे भारत सीख सकता है।'