11,000 वैज्ञानिकों की बड़ी चेतावनी, खतरे में है धरती, जानिए पूरा मामला

जलवायु परिवर्तन का असर अब धरती पर दिखाई देने लगा है। प्राकृतिक आपातकाल जारी है और हमारी धरती बड़े खतरे में हैं। क्योंकि आर्कटिक में मौजूद सबसे पुराना और सबसे स्थिर आइसबर्ग तेजी से पिघल रहा है। 130 देशों के 11 हजार वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है।

Update: 2019-11-16 15:17 GMT

नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन का असर अब धरती पर दिखाई देने लगा है। प्राकृतिक आपातकाल जारी है और हमारी धरती बड़े खतरे में हैं। क्योंकि आर्कटिक में मौजूद सबसे पुराना और सबसे स्थिर आइसबर्ग तेजी से पिघल रहा है। 130 देशों के 11 हजार वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है।

130 देशों के 11,000 वैज्ञानिक जिस आर्कटिक के हिस्से की बात कर रहे हैं उसे 'द लास्ट आइस एरिया' कहते हैं। यह विश्व का सबसे पुराना और स्थिर बर्फ वाला क्षेत्र है। हालांकि अब यह दोगुनी गति से पिघल रहा है।

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द लास्ट आइस एरिया' में 2016 में 4,143,980 वर्ग किमी थी, जो अब घटकर 9.99 लाख वर्ग किमी रह गई है। अगर इसी गति से यह पिघलती रही तो 2030 तक यहां से बर्फ पिघल कर खत्म हो जाएगी।

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यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के वैज्ञानिक केंट मूर ने जानकारी दी कि 1970 के बाद से अब तक आर्कटिक में करीब 5 फीट बर्फ पिघल चुकी है। इससे साफ है कि हर 10 साल में करीब 1.30 फीट बर्फ पिघल रही है। ऐसे में समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ने की आशंका है।

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आर्कटिक की बर्फ पिघलने से ग्रीनलैंड और कनाडा के आसपास के मौसम में भारी बदलाव आ जाएगा। वहां भी गर्मी बढ़ जाएगी। इसका असर पूरी दुनिया में देखने को मिलेगा। 'द लास्ट आइस एरिया' में बर्फ दोगुनी से ज्यादा गति से पिघल रही है।

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