फुल वैक्सीनेशन के बाद भी कोरोना का खतरा

कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट इतना खतरनाक है ये वैक्सीन पा चुके लोगों की स्थिति भी बिना वैक्सीन वालों जैसी कर देता है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2021-08-19 15:39 GMT

वैक्सीनेशन (फोटो- न्यूजट्रैक)

नई दिल्ली : कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट इतना खतरनाक है ये वैक्सीन पा चुके लोगों की स्थिति भी बिना वैक्सीन वालों जैसी कर देता है। यूनाइटेड किंगडम में कोरोना संक्रमितों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष निकाला गया है कि वैक्सीन की डबल डोज़ पा चुके लोग अगर कोरोना वायरस के डेल्टा वेरियंट से संक्रमित हो जाते हैं तो ऐसे लोगों में वायरस की संख्या उतनी ही होती है जितना बिना वैक्सीन वाले लोगों में होती है।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी तथा यूके के डिपार्टमेंट ऑफ़ हेल्थ द्वारा की गयी स्टडी में 26 लाख नमूनों का अध्ययन किया गया और विभिन्न अवधि के बीच के संक्रमणों की तुलना की गयी। स्टडी में पाया गया कि फुल वैक्सीन पा चुके लोगों को कोरोना संक्रमण की स्थिति में गंभीर बीमारी और मौत से काफी हद तक सुरक्षा मिलती है लेकिन ऐसे लोगों में वायरस का लेवल बहुत ज्यादा पाया गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस डेटा के अनुसार हर्ड इम्यूनिटी को हासिल कर पाना बहुत मुश्किल है।

वैक्सीन का प्रभाव तुलनात्मक रूप से काफी कम

इस स्टडी में ये भी पता चला है कि डेल्टा वेरियंट के खिलाफ वैक्सीन का प्रभाव तुलनात्मक रूप से काफी कम हो गया है। लेकिन इतना जरूर है कि फुल वैक्सीन के बाद अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आने की आशंका बहुत कम हो जाती है।

डेल्टा वेरियंट से संक्रमित होने पर मरीज में वायरस के लेवल के बारे में अमेरिका के सीडीसी ने भी समान राय व्यक्त की है। पिछले महीने सीडीसी ने कहा था कि लोगों को बंद जगहों पर मास्क अवश्य लगाना चाहिए। भले ही उनको वैक्सीन लगी हो या न लगी हो।

कोरोना वायरस (फोटो- सोशल मीडिया)

सीडीसी और ऑक्सफ़ोर्ड के अध्ययनों का एक ही परिणाम है – वैक्सीन पा चुके लोग दूसरों में वायरस फैला सकते हैं। इन अध्ययनों ने टेस्टिंग और स्व-आइसोलेशन के महत्त्व को भी रेखांकित किया है।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ कोएन पौवेल्स का अकहना है कि डेल्टा वेरियंट की संक्रामकता क्षमता से पता चलता है कि हर्ड इम्यूनिटी पाना बहुत चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है।

हर्ड इम्यूनिटी का कांसेप्ट है कि अधिक से अधिक लोग जब वैक्सीन या संक्रमण के जरिये इम्यूनिटी पा लेंगे तो बीमारी को फैलने से रोका जा सकेगा। ऐसे में सिर्फ एक ही उपाय है कि दुनिया भर में ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगा दी जाए। जब तक ऐसा नहीं होगा, संक्रमण फैलता ही जाएगा।

शोधकर्ताओं ने आस्ट्रा ज़ेनेका की वैक्सीन की तुलना में फाइजर की वैक्सीन शुरुआती दौर में नए संक्रमण के प्रति 15 फीसदी ज्यादा असरदार है। लेकिन वैक्सीन की दोनों डोज़ लगने के चार-पांच महीने बाद दोनों का सुरक्षा लेवल समान हो जाता है।

भारत में सबसे ज्यादा मामले केरल में

देश में अब तक ब्रेकथ्रू संक्रमण के 87 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और इनमें से लगभग 46 प्रतिशत अकेले केरल में दर्ज हुए हैं। पहले भी कोरोना से संक्रमित हो चुके लोगों के दोबारा संक्रमित होने या वैक्सीन लगने के बाद संक्रमित होने के मामलों को ब्रेकथ्रू संक्रमण कहा जाता है। करीब 200 सैंपलो की जिनोम सीक्वेंसिंग में वायरस के नए वेरिएंट की पुष्टि नहीं हुई है।

केरल में वैक्सीन की पहली खुराक के बाद करीब 80,000 और दूसरी खुराक लगवाने के बाद 40,000 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई है। केरल के वायनाड जिले में भी लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई है, जहां की पूरी आबादी का वैक्सीनेशन हो चुका है। राज्य के नौ जिले ऐसे हैं, जहां वैक्सीन लगवाने के बाद भी संक्रमण होने के मामले सामने आए हैं।

केरल में बीते कई दिनों से देश में सर्वाधिक नए मामले सामने आ रहे हैं। अधिकतर राज्यों में इन दिनों जहां नए मामलों की संख्या लगातार कम हो रही है, वहीं केरल में यह 20,000 के आसपास स्थिर बनी हुई है। 18 अगस्त को यहां 21,427 लोगों को संक्रमित पाया गया और 179 मरीजों की मौत हुई, जिसके बाद कुल संक्रमितों की संख्या 37,25,005 हो गई है। इनमें से 19,049 लोगों की मौत हुई है। 

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