कोरोना वैक्सीन को लेकर दुनिया भर के मुस्लिम धर्मगुरुओं में छिड़ी बहस, ये है वजह
सिडनी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर हरनूर राशिद का कहना है कि टीके में पोर्क जिलेटिन के उपयोग पर अब तक हुई विभिन्न परिचर्चा में आम सहमति यह बनी है कि यह इस्लामी कानून के तहत मान्य है।
जकार्ता: दुनिया भर के कई देशों में जहां एक तरफ कोरोना वायरस का टीका लगाने की तैयारी शुरू हो गई हैं। वहीं कुछ ऐसे भी देश हैं, जहां पर कोरोना के टीके को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
इंडोनेशिया भी उनमें से एक है। यहां पर बड़ी तादाद में मुस्लिम रहते हैं। इस्लामिक धर्मगुरुओं के बीच इस बात को लेकर असमंजस है कि सुअर के मांस का इस्तेमाल कर बनाए गए कोविड-19 टीके इस्लामिक कानून के तहत जायज हैं या नहीं।
कुछ धार्मिक समूह प्रतिबंधित सुअर के मांस से बने उत्पादों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जिसके चलते टीकाकरण अभियान के बाधित होने की आशंका जतायी जा रही है।
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क्या कहती हैं दवा कम्पनियां
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोरोना के टीकों के भंडारण और ढुलाई के दौरान उनकी सुरक्षा और प्रभाव बनाए रखने के लिये सुअर के मांस (पोर्क) से बने जिलेटिन का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है।
जबकि दुनिया के अंदर कई ऐसी कम्पनियां भी हैं, जो बिना सुअर के मांस के टीका विकसित करने में जुटी हुई हैं। इसी कड़ी में स्विटजरलैंड की दवा कंपनी 'नोवारटिस' का कहना है कि उसकी कम्पनी ने सुअर का मांस इस्तेमाल किये बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था जबकि सऊदी और मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा भी ऐसा ही टीका बनाने की लगातार कोशिश कर रही हैं।
कोरोना का टीका बनाने वाली अग्रणी कम्पनियों में शामिल फाइजर, मॉडर्न, और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं की तरफ से कहा गया है कि उनके कोविड-19 टीकों में सुअर के मांस से बने प्रोडक्ट का उपयोग नहीं किया गया है, हालांकि कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने अभी तक ये साफ नहीं किया है कि उनके टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का उपयोग हुआ है अथवा नहीं?
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स ?
कोरोना के टीके में सुअर से बने प्रोडक्ट का इस्तेमाल करना सही है या गलत। इसको लेकर एक्सपर्ट्स की अपनी-अपनी राय है।
ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव सलमान वकार के मुताबिक 'ऑर्थोडॉक्स' यहूदियों और मुसलमानों समेत विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच टीके के इस्तेमाल को लेकर विरोधाभास की स्थिति है, जो सुअर के मांस से बने उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप से अपवित्र मानते हैं।
वहीं सिडनी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर हरनूर राशिद का कहना है कि टीके में पोर्क जिलेटिन के उपयोग पर अब तक हुई विभिन्न परिचर्चा में आम सहमति यह बनी है कि यह इस्लामी कानून के तहत मान्य है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर टीकों का उपयोग नहीं किया गया तो बड़े पैमाने पर नुकसान होगा।
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