वॉशिंगटन: अमेरिका की रहने वाली निया सेल्वे हर दिन दर्द सहन करती है, लेकिन रो नहीं सकती। इसका कारण है उसकी दुर्लभ बीमारी। 21 साल की निया को पानी से एलर्जी है। जरा सी पानी की बूंद बॉडी से टच होते उसे तकलीफदेह रैशेज हो जाते हैं। त्वचा के छिद्रों से तेज हीट निकलने लगती है और जलन का अहसास होने लगता है।
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दुनिया में केवल 32 लोगों को ये बीमारी
निया सेल्वे के जिस्म पर पानी की एक बूंद पड़ने से उसे भयानक किस्म की एलर्जी होने लगती है। असल में 21 साल की निया एक रेयर बीमारी से ग्रस्त हैं। एक्वाजेनिक अरटिकारिया नाम की ये बीमारी विश्व में सिर्फ 32 लोगों को है और निया उनमें से एक हैं। इससे प्रभावित लोगों को शरीर पर पानी पड़ने से बुरी तरह जलन होती है। सबसे बड़ी बात है कि इसका अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं है।
रो नहीं सकती निया
निया बताती है कि जब उनके शरीर पर पानी की एक भी बूंद पड़ती है तो वहां बेहद जलन होती है और कम से आधे घंटे तक वो दर्द से तड़पती हैं। इसके बावजूद वो रो नहीं सकती क्योंकि आंसू भी वही प्रभाव छोड़ते हैं जो आम तौर पर पानी से होता है। उनके पानी के संपर्क में आने वाले हिस्से पर रैशेज पड़ जाते हैं, उतना हिस्सा लाल हो जाताहै और असहनीय दर्द से उसे छूना मुमकिन नहीं होता। ये परेशानी कितनी देर रहेगी कहना मुश्किल है पर कभी कभी आधे घंटे तक उन्हें ये सब छेलना पड़ता है।
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पांच साल की उम्र में हुई थी ये बीमारी
ये बीमारी उसे पांच साल की उम्र से शुरू हुई थी। शुरुआत में उसे अपनी बीमारी के बारे में पता नहीं था। लेकिन जैसे ही उसने इसे इंटरनेट पर खोजना शुरू किया तो अमेरिका और बाकी अन्य देशों में इसके रेयर मामले सामने आए। स्किन एक्सपर्ट ने इस बीमारी का नाम 'एक्वाजेनिक अर्टिकारिया' बताया, लेकिन दुर्भाग्य से इसका कोई इलाज नहीं है।
तकलीफ से बचने लिए हमेशा हसंते रहना पड़ता है
निया जब भी पानी की संपर्क में आती है। स्किन में तेज जलन होने लगती है। बेतहाशा दर्द होता है। कोई कुछ नहीं कर सकता। उसे हमेशा हंसते रहना पड़ता है, क्योंकि रोते ही उसकी तकलीफ शुरू हो जाती है। अभी तक इसकी वजह मालूम नहीं चल सकी है। उसके दोस्त बारिश में मस्ती करते हैं। स्वीमिंग पूल में नहाते हैं, लेकिन वह उनको सिर्फ देख सकती है।
एक्सपर्ट की ये है राय
यूरोपियन सेंटर फॉर एलर्जी फाउंडेशन (ई.सी.ए. आर. एफ) के संस्थापक स्किन स्पेशलिस्ट, मार्क्स मॉरर कहते हैं कि इस बीमारी की वजह चाहे जो भी हो, लेकिन ये एक ऐसी भयानक बीमारी है जो मरीज़ की ज़िंदगी को पूरी तरह से बदलकर रख देती है। मॉरर ऐसे बहुत से मरीज़ों को जानते हैं जो पिछले क़रीब 40 सालों से इस बीमारी से जूझ रहे हैं। वो जब सुबह उठते हैं तो शरीर पर सूजन के साथ ही उनकी आंख खुलती है।
इलाज के लिए मरीज़ को एंटी हिस्टामाइन दी जाती हैं। हमारी चमड़ी में इम्यून सेल जिन्हें मास्ट सेल कहा जाता है, वो जलन पैदा करने वाले हाई हिस्टामाइन प्रोटीन सेल पैदा करती हैं। किसी नॉर्मल रिएक्शन में ये हिस्टामाइन फ़ायदेमंद होते हैं। लेकिन अगर पानी से रिएक्शन होता है तो ये त्वचा पर सूजन ला देते हैं। इनसे खुजली होती है और चमड़ी पर लाल चकत्ते पड़ जाते है।
दवा को लेकर जारी है खोज
इस बीमारी के इलाज के लिए लगातर रिसर्च किये जा रहे थे। आखिरकार अगस्त 2009 में यूरोपियन सेंटर फॉर एलर्जी फाउंडेशन (ई.सी.ए. आर. एफ) की कोशिशें रंग लगाईं। शोध में ओमालिज़ुमाब नाम की दवा के बारे में पता चला जो कि दमे के मरीज़ों को दी जाती है और ये दवा एक्वाजेनिक अर्टिकेरिया के मरीज़ों के लिए भी वरदान से कम नहीं है।
रिसर्च के लिए नहीं मिलते मरीज
इस बीमारी के इलाज के लिए नई दवाओं की खोज लगातार की जा रही है लेकिन मुश्किल ये है कि तज़ुर्बे के लिए बड़ी संख्या में मरीज़ नहीं मिल पाते हैं। क़रीब 23 करो़ड़ लोगों में से किसी एक को एक्वाजेनिक अर्टिकेरिया यानी पानी से एलर्जी की शिकायत होती है। इस हिसाब से सिर्फ दुनिया में आज की तारीख़ में केवल 32 लोग इस मर्ज के शिकार हो सकते हैं।
कम्पनियां इस ओर नहीं देती ज्यादा ध्यान
वैज्ञानिक मार्कस मोरर कहते हैं कि उन्हें रिसर्च के लिए सिर्फ़ अर्टिकेरिया के मरीज़ तो मिल जाते हैं। लेकिन, अक्वाजेनिक अर्टिकेरिया के मरीज़ कम ही मिल पाते हैं। अब चूंकि मरीज़ कम होते हैं, तो, दवा बनाने वाली कंपनियां भी इस तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं देतीं हैं। और ना ही मोटी रक़म इस मर्ज़ की दवा विकसित करने पर खर्च करना चाहती हैं।