Human Genes In Danger: ऐसा भी हो रहा! हथियार जो इंसानी जीन को बनाते हैं निशाना
Human Genes In Danger: चीन की टॉप जासूसी एजेंसी का कहना है कि ऐसा मुमकिन ही नहीं बल्कि हो रहा है और कुछ देशों ने मानव जीन को निशाना बनाने वाले घातक हथियारों से खुद को लैस कर लिया है।
Human Genes In Danger: क्या ऐसा मुमकिन है कि कोई इंसानी जीन को किसी हथियार से निशाना बनाय जा सके? यानी किसी ख़ास नस्ल के इंसानों को बर्बाद करने वाले हथियार मौजूद हों? चीन की टॉप जासूसी एजेंसी का कहना है कि ऐसा मुमकिन ही नहीं बल्कि हो रहा है और कुछ देशों ने मानव जीन को निशाना बनाने वाले घातक हथियारों से खुद को लैस कर लिया है।
पहली बार ऐसा आरोप
यह पहली बार किसी चीनी सरकारी एजेंसी ने सार्वजनिक रूप से इस तरह के खतरे का उल्लेख किया है। अपने आधिकारिक वीचैट अकाउंट पर एक पोस्ट में, चीन के सुरक्षा मंत्रालय ने कहा कि कुछ देशों ने "गुप्त उद्देश्यों" के लिए चीनी आबादी को निशाना बनाया था। मंत्रालय ने उन देशों का नाम नहीं बताया है। ऐसे हथियारों के अस्तित्व की बात काफी पहले से होती आई है लेकिन शीर्ष वैज्ञानिक समुदाय ने इसे खारिज किया हुआ है। पिछले साल फरवरी में एक रिपोर्ट में ‘काउंसिल ऑन स्ट्रैटेजिक रिस्क’ के शोधकर्ताओं ने कहा था कि निवारक के रूप में जैव हथियारों का खतरा "अप्रासंगिक" था क्योंकि कोई भी देश महामारी के प्रभाव से सुरक्षित नहीं था। लेकिन चीनी मंत्रालय देशों पर जो आरोप लगा रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए तैयार किया गया कोई जैविक एजेंट नहीं है, बल्कि एक टार्गेटेड खतरे या आनुवंशिक हथियार का निर्माण है।
क्या हैं अनुवांशिक हथियार?
आनुवंशिक हथियार, जिन्हें एथेनिक बायो वेपन या जातीय जैव-हथियार के रूप में भी जाना जाता है, आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किए गए जैविक हथियार हैं जो किसी ख़ास नस्ल या जातीयता के लोगों को टारगेट करने में सक्षम होते हैं।
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चीनी मंत्रालय ने कहा है कि जबकि मानव डीएनए का 99.9 प्रतिशत हिस्सा पृथ्वी पर सभी व्यक्तियों के बीच साझा किया जाता है, लेकिन कुछ प्रमुख आनुवंशिक अंतर हैं जो एक निश्चित जातीयता या नस्ल को अलग करते हैं। मंत्रालय के अनुसार, इन अंतर का उपयोग "पूर्व निर्धारित जाति के टारगेट्स को मारने" के लिए किया जा सकता है।
चीन, उक्रेन और अमेरिका पर भी हैं आरोप
चीनी मंत्रालय आनुवंशिक रूप से लक्षित जैव-हथियारों के अस्तित्व का आरोप लगाने वाला पहला नहीं है। इसी साल जून में अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर ने दावा किया था कि चीनी जातीय जैविक हथियार विकसित कर रहे हैं, उन्होंने ये भी कहा था कि अमेरिका भी ऐसी तकनीक विकसित कर रहा है। रूसी अधिकारियों ने पिछले साल यूक्रेन पर अमेरिका द्वारा वित्त पोषित प्रयोगशालाओं में जैविक हथियार बनाने का आरोप लगाया था। कुछ मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि उनका मानना है कि इन हथियारों को जातीय रूप से लक्षित किया जा सकता है।
किंग्स कॉलेज लंदन में बायोकेमिकल टॉक्सिकोलॉजी के वरिष्ठ व्याख्याता रिचर्ड पार्सन्स ने रूस के दावों के जवाब में साइंस मीडिया सेंटर को बताया कि यह अत्यधिक संभावना नहीं है कि कुछ जातीय समूहों को टारगेट करने वाला एक हथियार विकसित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में ऐसे फार्मास्युटिकल एजेंट हैं जो कुछ जातीय समूहों में अधिक प्रभावी हैं, इन्हें विकसित होने में लंबा समय लगता है।
आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किए गए जैविक एजेंटों की अवधारणा कोरोना महामारी की शुरुआत में लोगों के ध्यान में आई, जब कुछ वैज्ञानिकों ने परिकल्पना की कि बीमारी पैदा करने वाला वायरस प्राकृतिक उत्पत्ति का नहीं लगता है। जनवरी 2020 में, स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट में संक्रामक रोग जीनोमिक्स के निदेशक क्रिस्टियन एंडरसन ने कहा था कि उन्होंने और अन्य वैज्ञानिकों ने वायरस के जीनोम को "विकासवादी सिद्धांत की अपेक्षाओं के साथ असंगत" पाया है। कहने का मतलब है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से विकसित नहीं लगता है।
बता दें कि जैविक हथियार संधि पर चीन, रूस और अमेरिका ने हस्ताक्षर किये हैं और इसका उद्देश्य एक वैश्विक सुरक्षा उपाय है ताकि ऐसे हथियारों के विकास और उपयोग पर रोक लगाए जा सके।