Ram Mandir को मिला बेशुमार दान, Mosques व Charch के पैसों पर चर्चा क्यों नहीं?
राम मंदिर हेतु दान की गति तेज है। विश्वव्यापी भी। मंदिर की लागत से दोगुनी राशि जमा हो गयी।
Ram Mandir: राम मंदिर हेतु दान की गति तेज है।विश्वव्यापी भी।मंदिर की लागत से दोगुनी राशि जमा हो गयी। आस्थावानों के दान की झोली बंद होने का नाम नहीं ले रही है। इसकी खबर छपी थी, अत: पता चल गया। मगर फर्जी रसीदों और जाली संग्रहकर्ताओं की बात भी छप रही है। यदि आनलाइन, डिजिटल और बैंक खाता से हो तो सुरक्षा होगी।
कर्नाटक, जहां सर्वाधिक मठ और आश्रम हैं, के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों , जनतादल के एचडी कुमारस्वामी और कांग्रेसी सिद्धरामय्या ने पूछा भी है कि चन्दे का हिसाब—किताब कौन रखेगा? क्या विश्व हिन्दू परिषद के कोषाध्यक्ष तक समस्त राशि पहुंच रही है?
यूं भी भारत में चन्दा उगाही में महारत और हिसाब बनाने में फर्जीवाडा सर्वविदित है। ऐसा आम दृश्य है। क्षोभ होता है। ऐसी हरकत करने में पंजीकृत एनजीओ मशहूर हैं। स्वच्छ—गंगा अभियान राजीव गांधी ने चलाया था। अरबों रुपये डूबे। गंगाजल आचमन लायक भी नहीं बन पाया था। पापी सब डकार गये। जरुर रौरव नरक में सिसक रहे होंगे। राम मंदिर की बाबत पर भी कोई दिशा—निर्देश तथा नियम नहीं बनाये गये।
किन्तु ऐसे प्रश्न नहीं उठे थे। जब सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण (1947) हो रहा था। सरदार पटेल खुद संबद्ध थे। जूनागढ़ नवाब मुहम्मद महाबत खान की कयादत में ट्रस्ट बना था। इसका आधार था कि उसी के मतावलम्बी मुहम्मद गजनवी ने 1024 ईस्वी में यह देवालय तोड़ा था, लूटा था।
उदाहरण भी मिलता है। बाबरी ढांचे के पैरवी पर न्यायालयों में कितने रियाल, दिरहम, डालर आदि आये थे? कोई भी जानकारी आजतक सार्वजनिक नहीं हुयी। यहां केरल के तिरुअनंतपुरम के प्रसिद्ध और पुराने तथा विश्व के सबसे धनी, वैष्णव देवालय स्वामी पद्मनाभ मंदिर का ज़िक्र ज़रूरी है ।इस मंदिर के नियंत्रक है त्रावनकोर—कोचिन रियासत के महाराजा। वे जब आरती के बाद परिसर से बाहर आते थे तो निकास द्वार पर रुकते और अपने पैरों की धूल को बटोर कर परिसर के अंदर डालते देखा जा सकता था।
उन्होंने भगवान से कहा : ''मैं मंदिर की धूल तक नहीं ले जा रहा हूं।'' फिर आशीर्वाद मांगा। लेकिन सभी मंदिर—प्रबंधक इतने शुचितापूर्ण नहीं हैं। बहीखाता सबका साफ—सुथरा नहीं है। मसलन तिरुपति का बालाजी मंदिर जो संसार का दूसरे नंबर का धनी देवालय है। यहां के एक प्रबंधक की पुत्री का विवाह था। वधू की फोटो जो मीडिया में साया हुई थी उसमें उसकी त्वचा ही नहीं दिख रही थी। सारा तन सोने और हीरो से जड़ित हो गया था। पुलिसिया जांच के बाद वे हटा दिये गये थे।
किन्तु तिरुपति—तिरुमला देवस्थानम (टीटीडी) की एक आदर्श कार्यपद्धति भी है। जिसे उत्तर भारत के अन्य देवालय अपना सकतें हैं। प्राप्त दान से टीटीडी व्यवस्थापक समिति संस्कृत पाठशालायें, मेडिकल कालेज, विश्रामालय, निशुल्क भोजनगृह, जनचिकित्सा केन्द्र, मार्ग निर्माण आदि कराता है। कांची कामकोटि के शंकराचार्य स्व. जयेन्द्र सरस्वतीजी ने आनंद (अमूल डेयरी) के निकट गांव में सामवेद की लुप्तप्राय रिचाओं को महफूज रखने हेतु काफी धनराशि व्यय की थी।
संस्कृत का प्रचार अलग से कराया था। कांग्रेस की कमलनाथ—नीत सरकार ने उज्जैन के महाकाल मंदिर के परिसर—भवन पुनर्निर्माण के लिये तीन अरब की धनराशि 17 अगस्त, 2019 को आवंटित की थी। फिर प्रदेशीय देवालयों के संचालनों पर विधेयक प्रस्तावित किया था। तब तक भाजपायी शिवराज सिंह ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर डाला था।
गौर करें एक विधेयक पर जो उत्तर प्रदेश में बने पुराने मंदिरों की बाबत प्रस्तावित था। जब यूपी के राज्यपाल तेलुगुभाषी डा. मर्री चन्ना रेड्डि (1974—77) ने प्रदेश के देवालयों के सम्यक प्रबंधन हेतु, विशेषकर वित्तीय व्यवस्था पर, एक अधिनियम सुझाया था। इतना विरोध हुआ कि वह दफन ही हो गया। अब विभिन्न देवालयों में कितना प्रतिदिन चढ़ावा आता है ? दान राशि कितनी है, आय व्यय का लेखा—जोखा कहां है? कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं होती। अत: यह आशंका जन्मती है कि जनआस्था के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
राम मंदिर के दान की राशि का लेखा—जोखा कब और कैसे बनेगा? आज इसकी अपेक्षायें विश्व हिंदू परिषद से काफी बढ़ गयीं हैं। तो आज अपील है सकि राम नाम पर आशंकित लूट और ठगी कतई बर्दाश्त नहीं की जाये। आस्था हेतु कष्टार्जित दान केवल देवालय पर ही व्यय होगा। आम हिन्दुओं की यह मांग होगी।