Village in India: सहर आपकी जिंदगी को लील रहा, चलो गांव की ओर, देखें Y-Factor...
शहरों में रहने वाले 80 फीसदी लोग महीनों तक धूप नहीं पाते हैं।
Village in India: हर आदमी शहर की ओर भाग रहा है। गांव की जिंदगी लोगों को बोर करने लगी है। यह सच भी है कि शहर भौतिक सुख का केंद्र हो गया है। लेकिन शायद आपको अंदाज न लगता हो कि शहर आपकी जिंदगी से सुकून ही नहीं क्या क्या छीन ले रहा है। चुरा ले रहा है। भौतिक सुख पाने की कोशिश में कितना दुख जीते हैं लोग।
यूरोपियन रेस्पीरिटी सोसाइटी के इंटरनेशनल कांग्रेस में पेश किया गया एक अध्ययन बताता है कि जिन बच्चों के घरों के आसपास पेड़ पौधों की संख्या अधिक होती है। उनमें बड़े होने पर सांस की बीमारियां होने की गुंजाइश कम होती है। नार्वे के हाकलैंड विश्वविद्यालय के डॉक्टर इंग्रिड नांडेइड क्यूपर और उनके सहयोगियों ने 18 से 52 वर्ष के आयु के 5400 लोगों के घर के आसपास का हरियाली का आंकड़ा लिया।
इसी के साथ 4414 लोगों के घर के आसपास के वायु प्रदूषण के आंकड़े इकट्ठे किये। जिनमें पीएम 2.5 और पीएम 10 के अलावा नाइट्रोजन डाईआक्साइड शामिल था। इनका विश्लेषण किया। विश्लेषण का मकसद यह जानना था कि कितने लोग तीन से अधिक सांस संबंधी बीमारियों से पीडि़त हैं। निष्कर्ष यह निकला कि बचपन के दौरान हरियाली के संपर्क में रहने वाले बड़े लोग सांस संबंधी बीमारियों से बच जाते हैं।
शहरों में रहने वाले 80 फीसदी लोग महीनों तक धूप नहीं पाते हैं। यही वजह है कि 70 फीसदी शहरी विटामिन डी की कमी से ग्रस्त हैं। अमेरिका की किंग्स जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी का एक शोध बताता है कि रोजाना पांच मिनट धूप में बैठने से टीबी जैसी बीमारी के बैक्टीरिया मर जाते हैं। धूप संक्रामक बीमारियों को फैलाने वाले कीटाणुओं को मार देती है। यह विटामिन डी का बड़ा स्रोत है। धूप सेंकने से हड्डियां मजबूत होती हैं। चर्म रोग व गठिया में लाभ मिलता है। हाई ब्लड प्रेशर कम होता है। दिल के दौरों का खतरा कम होता है। दिमाग स्वस्थ रहता है। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। सुबह की धूप में कम से कम पांच मिनट जरूर गुजारना होगा। क्योंकि सूरज को रोशनी और बॉडी मास इंडेक्स के बीच भी रिश्ता होता है।
थोड़ी देर सूरज की रोशनी में बैठकर आप वजन भी नियंत्रित कर सकते हैं। डायबिटीज के मरीजों को सर्दियों में धूप सेंकना चाहिए। रोज सुबह धूप में बैठने से शरीर से बैड कोलैस्ट्राल घटता है। धूप में बैठने से शरीर में मेलाटोनिन नामक हारमोन बनता है। जिससे रात में नींद की समस्या दूर हो जाती है।
चंदन दास ने एक गजल गाई थी-बढ़ रहा है यहां बेशुमार आदमी फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी। यह हालात शहरों में हैं सिर्फ शहरों मे है। सुकून के पल पाने के लिए कभी कभी अकेले बैठना तो ठीक होता है लेकिन अकेलेपन की लाइफ स्टाइल सुकून नहीं देती यह आपको शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार बनाता है। मेटाबालिज्म पर विपरीत असर पड़ता है शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है।
बर्मिंघम विश्वविद्यालय में किया गया शोध बताता है कि सामाजिक तौर पर सबसे मिलने जुलने और अकेलेपन के शिकार, इन दोनो में सबसे मिलने जुलने वाले लोग अधिक जीते हैं। इसके लिए तीन लाख से अधिक लोगों को शोध के लिए चुना गया था ऐसी महिला रोगी जो लोगों से कम मिलती थी उनकी बीमारी से मौत की आशंका पांच गुना अधिक मिली।
शिकागो विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि सामाजिक रूप से अलग थलग रहने वाले लोगों की प्रतिरोधक क्षमता में बदलाव आने लगता है। अकेलेपन के शिकार लोग रोजमर्रा के कामों में खुद को ज्यादा तनाव में पाते हैं। अकेले होने का मतलब शारीरिक रूप से अकेले होना। या परवाह न किया जाना भी है।
शहरों में बहुमंजिली इमारतों मे रहने वाले लोग और सेंट्रली एयरकंडीशन आफिस इस बात के लिए बड़े खतरनाक होते हैं कि यहां के बाशिंदों के फेफड़ों की गति कम होती चली जाती है। शहर में आपके लिए धूप सेंकना, हरियाली बना लेना और अपने मन का समाज जुटा पाना मुश्किल है। इसलिए अगर आप गांव के हैं तो उधर भी रुख कीजिए। आराम से जीने के लिए आने वाले दिनों में महीने के कुछ दिन आप सबको अपने गांव में या दोस्तों रिश्तेदारों के गांव में या फिर किराए के गांव में गुजारने ही होंगे क्योंकि शहर में हवा और पानी भी शुद्ध नहीं मिलेंगे।