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जन्माष्टमी 11 अगस्त कोः सभी व्रतों में सर्वोत्तम, जानिये सब कुछ
पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी के दिन कृतिका नक्षत्र रहेगा। इस दिन चंद्रमा मेष और सूर्य कर्क राशि में रहेंगे। इस दिन अभिजित मुहूर्त कोई नहीं है।
जन्माष्टमी का त्यौहार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि (आधी रात) थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों में इसके व्रत को व्रतराज कहा जाता है। इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है।
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जन्माष्टमी कथा
द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवाँ पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा - न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा।
देवकी की आठवीं संतान से भय
वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैँ इसकी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहाँ आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम गर्भ से। कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मार डाला।
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भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब में बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।
कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुँच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।
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तिथि और शुभ मुहूर्त
कृष्ण जन्माष्टमी मंगलवार, अगस्त 11 को
निशिता पूजा का समय : रात्रि 12:05 से 12:47 तक (अगस्त 12)
अवधि : 43 मिनट
पारण समय : पूर्वान्ह 11 बज कर 16 मिनट (अगस्त 12)
पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी के दिन कृतिका नक्षत्र रहेगा। इस दिन चंद्रमा मेष और सूर्य कर्क राशि में रहेंगे। इस दिन अभिजित मुहूर्त कोई नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का समय 12 अगस्त को रात्रि 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक है।
अन्य शुभ मुहूर्त
अमृत काल : रात्रि 12:48 अगस्त 13 से तड़के 02:34 तक (अगस्त 13)
विजय मुहूर्त : तड़के 02:38 से 03:31 तक
गोधूलि मुहूर्त : सुबह 06:50 से 07:14 तक
सायाह्न सन्ध्या : सुबह 07:03 से 08:08 तक
निशिता मुहूर्त : रात्रि 12:05 अगस्त 13 से 12:48 तक
जन्माष्टमी पूजा विधि
व्रत वाले दिन सुबह स्नान करने के बाद होकर सभी देवताओं के नमस्कार करे पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें। हाथ में जल, फल और पुष्प को लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल स्नान करने के लिए देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाए। अब सुतिका गृह में सुंदर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश की स्थापना करें। इसके साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें। पूजा में देवकी, वासुदेव, बलराम, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम लेते हुए विधिवत पूजा करें।
यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज नहीं खाया जाता है। फलाहर के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है।
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- इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।
- इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।
जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कई जगहों पर दही हांडी उत्सव भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप की पूजा की जाती है। जो दंपत्ति नि:संतान हैं। उन्हें इस दिन व्रत रखकर सच्चे मन से श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से लड्डू गोपाल उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। संतान से संबंधी सभी समस्याएं दूर होती हैं और संतान दीर्घायु होती है। नि:संतान दंपत्तियो को जन्माष्टमी पर रात को कृष्ण जन्म के समय बांसुरी अर्पित करनी चाहिए। मान्यता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से आपके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
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