जान लें बप्पा फैंस: तो यहां से आया गणपति बप्पा मोरया, गजब है ये राज

गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। भक्तों के घरों में उनके गणपति बप्पा जो आ रहे हैं। बाज़ारों में हर तरफ गणेश चतुर्थी की धूम है। आज हम बताने जा रहे कि 'गणपति बप्पा मोरया' जयकारे की शुरुआत कैसे हुई? क्या है इसकी दिलचस्प कहानी।

Vidushi Mishra
Published on: 2 Sep 2019 7:41 AM GMT
जान लें बप्पा फैंस: तो यहां से आया गणपति बप्पा मोरया, गजब है ये राज
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Ganpati bappa

नई दिल्ली : गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। भक्तों के घरों में उनके गणपति बप्पा जो आ रहे हैं। बाज़ारों में हर तरफ गणेश चतुर्थी की धूम है। गणपति के उत्सव और बाजारों की चका-चौंध से मन हर्षित हो जाता है। आपकों बता दें कि इसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है।गणेश चतुर्थी दिनांक 2 सितंबर को सुबह 9.02 बजे लग रही है जो 3 सितंबर को सुबह 6.50 बजे तक रहेगी।

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आज हम बताने जा रहे कि 'गणपति बप्पा मोरया' जयकारे की शुरुआत कैसे हुई? क्या है इसकी दिलचस्प कहानी। तो चलिए जानते हैं-

'गणपति बप्पा मोरया'

पुणे शहर से लगे हुए चिंचवड़ गांव में महान तपस्वी साधु मोरया गोसावी नाम का एक संत था। इस इलाके के लोग जानते थे, कि भगवान गणेश जी के लिए मोरया गोसावी जी की भक्ति अपार थी। एक बार मोरया गोसावी इन्हें दृष्टान्त हुआ और भगवान गणेश उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए।

भक्त की क्या इच्छा पूरी की जाए ये पूछने पर साधु मोरया गोसावी भगवान गणेश जी से बोले, 'मैं आपका सच्चा भक्त हूं मुझे धन दौलत, ऐशो-आराम नहीं चाहिए। बस जब तक ये कायनात रहे, तब तक मेरा नाम आपसे जुड़ा रहे। यही मेरी ख्वाहिश है।'

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भगवान गणेश जी ने मोरया गोसावी की इच्छा पूरी करने का वरदान दिया। तभी से जहां भी भगवान गणेश की पूजा की जाती है। वहां भक्त बड़े हर्षोल्लास के साथ 'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया' का जयकारा लगाते हैं।

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बता दें कि संत मोरया गोसावी का यह किस्सा 14वीं शताब्दी का है। संत मोरया गोसावी की चिंचवड़ गांव में समाधि है। लोगों को विश्वास है कि गणपति का सबसे बड़ा भक्त कोई हुआ है तो वो साधु मोरया गोसावी ही हैं। मतलब की साधु मोरया गोसावी का नाम निरंतर काल से गणेश भगवान से जुड़ा हुआ है।

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पालकी यात्रा- मंगलमूर्ति की मोरगांव यात्रा

पुणें के चिंचवड़ के साधु मोरया गोसावी मंदिर से मोरगांव तक की पालकी यात्रा बीते 500 साल से भी अधिक समय से चलती आ रही है। इस यात्रा की शुरूवात सन् 1489 में चिंचवड़ इलाके के महान साधु मोरया गोसावी ने ही की थी। उनके वंशज आज भी यह परंपरा चला रहा हैं।

चिंचवड़ से मोरगांव तक का सफर लगभग 90 किलोमीटर है। जिसमें तीन दिन तक पैदल चलने के बाद पालकी भक्तों के साथ मोरगांव जा पहुंचती है। चिंचवड़ से मोरया गोसावी मंदिर से साल में दो बार पालखी यात्रा रवाना की जाती है।

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जनवरी के माघ महीने में पहली बार चिंचवड़ से निकलते हुए पालकी सासवड, जेजुरी, मोरगांव थेऊर से गुजरते हुए आखिर में सिद्धटेक (धार्मिक स्थल) जाकर रुकती है।

आपकों बता दें कि यह पूरी यात्रा लगभग 140 किलोमीटर का होता है। दूसरी बार गणेशजी के विराजमान होने से पहले मतलब की भाद्रपद महीने में निकली जाती है। इस पालकी यात्रा को "मंगलमूर्ति की मोरगांव यात्रा" ऐसा भी कहा जाता है।

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