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तबाही से मचा हाहाकार: लाखों जिंदगियों पर टूट पड़ी आफत, नहीं मिल रही कोई मदद

बिहार में 5 लाख लोगों की जिंदगियां नदियों और बाढ़ की वजह से त्रस्त हो गई है। लोगों को अपनी जिंदगी भर की कमाई खोनी पड़ रही है। ऐसे में इस बार राज्य के लगभग 10 से अधिक जिलों की स्थिति बेहद नाजुक बनी हुई है।

Newstrack
Published on: 24 July 2020 4:12 AM GMT
तबाही से मचा हाहाकार: लाखों जिंदगियों पर टूट पड़ी आफत, नहीं मिल रही कोई मदद
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नई दिल्ली : बिहार में 5 लाख लोगों की जिंदगियां नदियों और बाढ़ की वजह से त्रस्त हो गई है। लोगों को अपनी जिंदगी भर की कमाई खोनी पड़ रही है। ऐसे में इस बार राज्य के लगभग 10 से अधिक जिलों की स्थिति बेहद नाजुक बनी हुई है। इसके साथ ही बिहार के गोपालगंज में अब एक और पुल बहने की खबर मिल रही है। बड़ी मुसीबत हो गई कि सारण तटबंध टूट गया, जिससे जो इलाके बचे हुए थे, वो भी जलमग्न हो गए।

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भागलपुर पुल टूटने की कगार पर

इन हालातों में देवरिया में भी घाघरा नदी पर भागलपुर पुल टूटने की कगार पर है। पुल के ज्वाईंट में गैप आ गया है। यह पुल 1100 मीटर लंबा है। इस बारे में बताते हुए सलेमपुर से बीजेपी सांसद रविन्द्र कुशवाहा ने कहा कि पुल को तैयार करने के लिए काम करेंगे।

बिहार में 5 लाख लोगों की जिदंगियां बाढ़ की वजह से प्रभावित हैं। सभी जिलों के करीब 245 पंचायतों में हाहाकार मचा हुआ है। ऐसे में प्रशासन रेसक्यू अभियान तो चल रहा है।

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कोई सुविधा नहीं पहुंच रही

साथ ही 5000 लोगों को रिलीफ कैंपों में भी भेजा गया है। लेकिन आबादी के आगे ये रिलीफ कैंप एक छोटी चीटी की तरह हैं। लोग रो रहे तड़प रहे हैं भूख से पर उन तक कोई सुविधा नहीं पहुंच रही है।

बिहार में मूसलाधार बारिश से नदियां उफान पर आ जाती हैं। जिससे नदी-नाले हर जगह लबालब भर जाते हैं। और ईधर आफत बनता है नेपाल, जहां भारी बारिश के बाद पड़ोसी देश पानी छोड़ने लगता है। इस वजह से उत्तर बिहार की नदियों में जलस्तर खतरे का निशान के बहुत ऊपर तक बढ़ जाता है। राज्य के निचले इलाके डूबने तक लगते हैं।

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बिहार में बाढ़ का संकट

यहां कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला बलान और महानंदा नदियों से उत्तर बिहार में बाढ़ का संकट गहराता है। इन सभी नदियों का कनेक्शन नेपाल से है। हां जब भी नेपाल पानी छोड़ता है तो उसका कहर इन नदियों के जरिए उत्तर बिहार पर तबाही की तरह टूटता है।

बता दें, बिहार में 7 जिले ऐसे हैं, जो नेपाल से बिल्कुल सटे हुए हैं। इनमें पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज शामिल हैं। तो हर बार नेपाल से छोड़े गए पानी का असर इन इलाकों में बहुत ज्यादा दिखने लगता है और बाकी इलाके भी प्रभाविक होते हैं।

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