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कन्फ्यूज बिहारः इसलिए हुए हालात बदतर, अब करेंगे ये काम
बिहार में कोरोना वायरस की स्थिति हर दिन बिगड़ती ही जा रही है। हर दिन कोविड-19 के नए मामले सामने आ रहे हैं। सबसे ज्यादा स्थिति तो जुलाई में आकर बिगड़ी है।
पटना: बिहार में कोरोना वायरस की स्थिति हर दिन बिगड़ती ही जा रही है। हर दिन कोविड-19 के नए मामले सामने आ रहे हैं। सबसे ज्यादा स्थिति तो जुलाई में आकर बिगड़ी है। राज्य में आठ जुलाई तक कोरोना संक्रमितों की संख्या 13 हजार थी, जो कि 27 जुलाई को 41 हजार के पार पहुंच गई। यानी इन 20 दिनों के अंदर 28 हजार केस सामने आए हैं। इन 20 दिनों में 3 गुना मामले बढ़ गए।
महामारी के मामले में काफी कंफ्यूज नजर आ रहे हैं CM नीतीश
राज्य में ना केवल आम जनता बल्कि बड़े-बड़े अफसर तक भी कोरोना के चपेट में आ चुके हैं। वहीं कहा जा रहा कि सूबे में 150 से अधिक डॉक्टर कोरोना संक्रमित हैं। विपक्ष रोज सरकार पर टेस्टिंग की संख्या को लेकर सवाल खड़े कर रहा है तो वहीं स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए जा रहे आंकड़े भी काफी भ्रमित करने वाले हैं। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो बड़े-बड़े संकटों को झेल लेते हैं, वो महामारी के मामले में काफी कंफ्यूज नजर आ रहे हैं।
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कन्फ्यूजन में ही उठा सभी कदम
जानकारों का कहना है कि केंद्र से पहले 23 मार्च को लॉकडाउन लागू करके नीतीश सरकार ने एक बेहद ही सराहनीय कदम उठाया। शुरुआती महीनों में इसका असर बी दिखा, जो था कोरोना पर कंट्रोल। लेकिन बाद उनके बाद में लिए फैसलों से परिस्थिति खराब हो गई। वहीं आरोप ये भी लग रहा है कि सरकार ने सभी कदम कन्फ्यूजन में ही उठाए हैं। तो चलिए आखिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है और वह कौन से कदम थे?
कोटा से बच्चों को वापस बुलाने के फैसले में कंफ्यूजन
सबसे पहले जब कोटा से यूपी सरकार ने अपने छात्रों को मंगवाना शुरू किया तो उस वक्त भी नीतीश सरकार काफी कंफ्यूज दिखी। नीतीश सरकार ने यूपी सरकार के इस कदम का विरोध किया। लेकिन बाद में इनकार करते-करते वो राजी हो गए।
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मजदूरों की वापसी लेकर हुए कंफ्यूज
इसके बाद उन्होंने मार्च महीने में स्पेशल ट्रेनों के आवागमन पर रोक लगवा दी थी। लेकिन बाद में वो ट्रेन चलवाने के लिए मान गए थे। चूंकि मार्च में कोरोना संक्रमण की स्थिति मौजूदा समय से बेहतर थी। अगर वो उसी समय श्रमिकों को राज्य में आने देते तो आज हालात इतने खराब ना होते।
यहां भी नीतीश सरकार काफी कन्फ्यूज दिखी, क्योंकि सरकार ने स्पष्ट स्टैंड नहीं लिया। ना ही मजदूरों को परमिशन दी और ना ही उन्हें रोकने की कोशिश की। कहा जा रहा है कि मजदूरों को सेफ पैसेज नहीं मिला, जिस वजह से कोरोना संक्रमण इतना बढ़ गया। जुलाई में मामलों में तीन गुना वृद्धि आई है।
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स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव का ट्रांसफर
इसके अलावा मुख्यमंत्री नीतीश ने बीजेपी के दबाव में मई महीने में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार का ट्रांसफर कर दिया। खुद नीतीश कुमार के कट्टर समर्थकों का भी यह मानना है कि यह एक आत्मघाती फैसला रहा, जिसका खामियाजा अब मुख्यमंत्री समेत पूरे राज्य को भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि उनकी जितनी विभाग के ऊपर पकड़ थी, उसका विकल्प नीतीश कुमार के पास नहीं था।
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लॉकडाउन से लेकर अनलॉक तक कई बार कन्फ्यूज दिखाई दी बिहार सरकार
प्रशासनिक कार्यों में तो ट्रांसफर होते रहते हैं। लेकिन सवाल यह है कि ऊपर जितने भी फैसले हमने नीतीश सरकार का देखे और समझे उसमें नीतीश सरकार अपनी ही फैसलों को लेकर काफी कन्फ्यूज दिखाई दी। जैसे कि सरकार को जमीनी स्तर पर काम कैसे हो रहे हैं, उस बारे में उन्हें सही जानकारी नहीं मिल पा रही है और ताबड़तोड़ फैसले लेते जा रहे हैं। लॉकडाउ
न से लेकर अनलॉक तक बिहार सरकार कई बार कन्फ्यूज दिखाई दी।
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स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव तबादला
जानकारों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव जो कि सारी बातों को कंट्रोल में कर चुके थे, उन्हें हटा दिया गया। उसके बाद जो दूसरे प्रधान सचिव आए, उनके काफी कुछ समझने के बाद उन्हें भी हटा दिया गया। जिससे संदेश तो यही जा रहा है कि नीतीश सरकार को अपने ही फैसलों और अपने द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारियों पर यकीन ही नहीं है।
वहीं कहा जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में एक अधिकारी को पदमुक्त इसलिए कर दिया गया क्योंकि उन्होंने सभी के सामने सच्चाई रख दी थी। ऐसे में पूरी नौकरशाही भी तो कोई बहादुर निर्णय लेने में भ्रमित ही रहेगी। हाल ही में उदय सिंह कुमावत का तबादला स्वास्थ्य मंत्री की शिकायत के बाद ही किया गया था।
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सीएम नीतीश को स्वास्थ्य विभाग को लेना चाहिए अपने अंडर में
जाहिर है कि किसी अधिकारी की स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से नहीं बनती तो कुछ को स्वास्थ्य मंत्री नहीं पसंद करते है। तो ऐसे में कोरोना पर काबू कर पाना संभव है? बता दें कि स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे भाजपा कोटे से मंत्री हैं। अगर विभाग के प्रधान सचिव नाकारा पाए गए हैं तो विभाग के मंत्री पर सवाल नहीं खड़े होते हैं? अभी सबसे संकटपूर्ण स्थिति में स्वास्थ्य विभाग ही है। ऐसे में उचित यही माना जा रहा है कि नीतीश सरकार को इस विभाग को अपने नेतृत्व में ले लेना चाहिए। शायद तभी हालात थोड़े काबू में आ सकते हैं।
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