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Patna Gandhi Maidan: आंदोलनों की जननी है पटना का गांधी मैदान, यहां हुए आंदोलन ने हिला दी थी इंदिरा सरकार की नींव

Patna Gandhi Maidan: पटना के गांधी मैदान से 1974 में एक ऐसा आंदोलन शुरू हुआ जिससे देश की राजनीति में भूचाल आ गया। इसी मैदान से जय प्रकाश नारायण ने 5 जून, 1974 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ बिगुल फूंका और ‘संपूर्ण क्रांति‘ का नारा दिया था। ‘संपूर्ण क्रांति‘ से जेपी का मतलब था समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना।

Ashish Pandey
Published on: 23 Jun 2023 6:44 PM IST
Patna Gandhi Maidan: आंदोलनों की जननी है पटना का गांधी मैदान, यहां हुए आंदोलन ने हिला दी थी इंदिरा सरकार की नींव
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Patna Gandhi Maidan (Image: Social Media)

Patna Gandhi Maidan: देश में आंदोलन की बात हो और बिहार का नाम न आए ऐसा हो ही नहीं सकता। आंदोलन और बिहार इनका गहरा संबंध है। बिहार से कई ऐसे राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन हुए जिसका गंभीर असर भी देखने को मिला। कई ऐसे राजनीतिक आंदोलन बिहार की धरती से हुए जिससे केंद्र और राज्य की सरकारें हिल गईं। बिहार देश का ऐसा राज्य है जिसने न जानें कितने आंदोलनों और रैलियों को जन्म दिया है। यही कारण है कि यहां की भूमि को आंदोलन की जननी कहा जाता है। हम यहां पर आपको ऐसे ही कुछ आंदोलनों के बारे में बताएंगे। जानिए वे कौन से थे आंदोलन, जिसका जबदस्त प्रभाव पड़ा...

महात्मा गांधी का चंपारण से अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाने का आंदोलन हो या फिर लोकनायक जय प्रकाश नारायण का इमरजेंसी के विरोध का आंदोलन या फिर कई राजनीतिक आंदोलन। इन सभी सभी आंदोलनों का जन्म बिहार की धरती से ही हुआ। इन आंदोलनों का ऐसा असर हुआ कि उस समय की सत्ता की नींव हिलाकर रख दी थी। यहां से समय-समय पर एक से एक आंदोलन हुए जिनका काफी असर भी देखा गया। बिहार में पटना से कई ऐसे आंदोलन हुए जो आज भी चर्चा में रहते हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की गरीब रैली की आज भी चर्चा होती है।

दरअसल, पटना में 23 जून को विपक्षी एकता की बैठक हुई। इनमें गैर बीजेपी दलों के नेता एक जगह एकत्र हुए और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मंथन के साथ ही मोदी को सत्ता से हटाने के लिए एक नई सियासी रणनीति पर चर्चा की गयी। कभी जिस धरती से इंदिरा हटाओ का नारा लगाया गया था, आज उसी धरती से अब मोदी हटाओ की मुहिम शुरू हो गई है। बिहार के इतिहास में हुए इन क्रांतिकारी आंदोलनों ने देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।

चंपारण से शुरू हुई सत्याग्रह की पहली लहर

बिहार के चंपारण से एक ऐसा आंदोलन हुआ जिसने क्रांति ला दी। इस आंदोलन को चंपारण सत्याग्रह भी कहा जाता है। इस आंदोलन के जनक थे महात्मा गांधी। जब 10 अप्रैल 1917 को महात्मा गांधी ने बिहार की धरती पर अपना कदम रखा था तो शायद इसका अंदाजा गांधी जी को भी खुद नहीं था कि वह कितना बड़ा काम करने चंपारण जा रहे हैं। जब गांधी जी की ट्रेन पटना पहुंची तब चंपारण के किसान नेता राजकुमार शुक्ला उन्हें लेकर सीधे डॉ. राजेंद्र प्रसाद के घर ले गए। 10 अप्रैल को ही शाम में वह मुजफ्फरपुर के लिए रवाना हो गए।

बिहार में नील की खेती के प्रति किसानों के बीच एक सार्वजनिक असंतुष्टि थी। उनमें असंतोष के साथ काफी गुस्सा था। पश्चिम की औद्योगिक क्रांति के बाद नील की मांग बढ़ने के कारण ब्रिटिश सरकार ने भारतीय किसानों पर नील की खेती करने का दबाव डालना शुरू कर दिया था। किसानों को अपनी जमीन पर अपने पसंद की फसल उगाने की आजादी नहीं थी।

किसानों को जमींदारों के अत्याचारों का भी सामना करना पड़ता था। इसकी वजह से चंपारण में नील की खेती के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया। इसी नील की खेती के प्रति किसानों के आक्रोश को देखते हुए राज कुमार शुक्ला ने गांधी जी को चंपारण आने और पीड़ित किसानों के लिए काम करने के लिए राजी किया। गांधी जी उनकी बात मान गए और बिहार आए तब उन्हें यह महसूस होने लगा कि नील का मसला काफी गंभीर है।

किसानों से मिले थे महात्मा गांधी

गांधी जी बिहार की धरती पर कदम रखे और आए हुए किसानों से मिले यही नहीं उन्होंने किसानों के बयान दर्ज कराने शुरू किए। फिर क्या था इसी बीच खबर फैल गई कि गांधी जी को देशद्रोह के आरोप में जेल भेजा जा सकता है। लेकिन गांधी जी कहां हार मानने वाले थे । उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी। बाद में अंग्रेजी सरकार ने गांधी पर जो मुकदमें दर्ज किए जो उसे हटा लिए गए। अधिकारियों को भी झुकने के लिए मजबूर होना पड़ा। बड़े-बड़े नेता चंपारण पहुंचने लगे। नील प्लांटरों को समझ में आ गया कि अगर गांधी चंपारण में रूके रहे तो उनके कारोबार समाप्त हो जाएंगे। आखिरकार अधिकारियों को झुकना पड़ा और किसानों के हक में फैसला हुआ। 4 मार्च,1918 को कानून बना और 19 लाख से अधिक किसानों की समस्याओं का अंत हो गया। यहीं से सत्याग्रह की पहली लहर की शुरुआत हुई थी।

जब गांधी मैदान में जिन्ना ने कांग्रेस निशाने पर लिये

पटना का गांधी मैदान कई आंदोलनों का गवाह रहा है। 26-29 दिसंबर,1938 को पटना के इसी गांधी मैदान से मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ मुस्लिम लीग की एक ऐतिहासिक रैली को संबोधित किया था। अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के 26वें वार्षिक अधिवेशन में जिन्ना की आवाज गांधी मैदान में गूंज उठी। उन्होंने रैली में अपनी पार्टी के आगे के रोड मैप की व्याख्या की। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था, जहां तक जनता का संबंध था और जहां तक मेरे प्यारे युवा मित्रों, मुस्लिम युवाओं का संबंध था, वे सभी कांग्रेस के झूठ से सम्मोहित थे। युवाओं ने उनके नारों और जुमलेबाजी पर विश्वास किया और वे सीधे जाल में फंस गए। जिन्ना ने अपने भाषण में कहा था कि कांग्रेस ने लोगों के शुद्ध और अशिक्षित दिमाग को अपना आसान शिकार बना लिया।

और वह संपूर्ण क्रांति...जिसने बदल दी भारत की राजनीति

पटना के गांधी मैदान से 1974 में एक ऐसा आंदोलन शुरू हुआ जिससे देश की राजनीति में भूचाल आ गया। इसी मैदान से जय प्रकाश नारायण ने 5 जून, 1974 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ बिगुल फूंका और ‘संपूर्ण क्रांति‘ का नारा दिया था। ‘संपूर्ण क्रांति‘ से जेपी का मतलब था, समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना।

एक आवाज और जुट गई पांच लाख की भीड़

जेपी का यह आंदोलन एक गवाह बन गया, उनकी एक आवाज पर गांधी मैदान में पांच लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जुट गई। इतनी बड़ी संख्या में इस आंदोलन में लोगों का आना पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ एक बड़ा संदेश था। अब कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल करने का बिगुल बज चुका था।

इसको लेकर बिहार की राजधानी की सड़कों पर एक विशाल जुलूस निकाला गया, जो बेली रोड होते हुए गांधी मैदान पहुंचा। जेपी को सुनने के लिए बिहार के अलग-अलग जिलों से काफी संख्या में लोग आए थे। इसके बाद जो सरकार के खिलाफ आवाज उठी, उसकी गुंज पूरे देश में सुनाई दी।

अगर कहा जाए तो यह आंदोलन देश में राजनीति के एक नए युग की शुरुआत थी। इस आंदोलन ने न जानें कितने बड़े नेता को जन्म दिए। नीतीश कुमार हो, सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद या लालू यादव...ये सब इसी आंदोलन से निकले हुए नेता हैं जो आज अपने संघर्ष से इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

नीतीश, लालू और मोदी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया

बात 1973 की है। देश में बढ़ती महंगाई, असमानता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसे मुद्दों के खिलाफ गुजरात के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र विरोध कर रहे थे। इसका असर बिहार में भी दिखने लगा था और 18 मार्च,1974 को पटना में छात्रों का आंदोलन शुरू हुआ। लोगों में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा था। तब जय प्रकाश नारायण ने उनके सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया और यहीं से संपूर्ण क्रांति की शुरुआत हुई। उस समय की संपूर्ण क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का आज के बिहार के दिग्गज नेता लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद आदि हिस्सा थे।

इसी मैदान से लालू ने भी चमकाई अपनी राजनीति

कहीं न कहीं पटना के इसी गांधी मैदान का लालू प्रसाद यादव की राजनीति को चमकाने में भी बड़ा योगदान रहा है। लालू अपने भाषण और रैलियों के चलते अक्सर चर्चा में रहते थे। पिछड़ों के बड़े नेता के तौर पर उभरे लालू प्रसाद ने गांधी मैदान में 1994 से 2004 के बीच कई रैलियां कीं। इन रैलियों के नाम भी काफी रोचक रखे। लालू ने इन रोचक नामों वाली रैलियों में खूब भीड़ जुटाई थी। लालू अपनी रैलियों का नाम ऐसा रखते थे कि जिससे जनता खुद जुड़ जाती थी। 1995 में गरीब रैली नाम से लालू प्रसाद यादव ने सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका था। वहीं 1997 में जब बीजेपी और नीतीश कुमार लालू के खिलाफ जमकर निशाना साध रहे थे। तब बीजेपी लालू राज को जंगलराज बताती थी। इसके बाद लालू ने एक महारैली किया था। नाम दिया- महागरीब रैली।

लाठी रैली भी खूब चर्चा में रही थी

लालू के आह्वान पर 2003 में आयोजित लाठी रैली भी खूब चर्चा में रही। लालू ने अपने जनाधार को मजबूत करने के लिए लाठी रैली का आयोजन किया था। इस रैली में आने वाले लोग खासतौर पर अपने साथ लाठी लेकर शामिल हुए थे। 2007 में लालू ने चेतावनी रैली का आयोजन किया। लालू इस रैली के माध्यम से अपने वोटरों को एक बार फिर एकजुट करने की जद्दोजहद कर रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि लालू कहीं कहीं नीतीश-बीजेपी गठबंधन के बीच अपनी लोकप्रियता गवां चुकें थे।

मोदी की यह रैली बन गई यादगार रैली

2014 के लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने 27 अक्टूबर, 2013 को पटना के गांधी मैदान में हुंकार रैली आयोजित की। रैली में भारी भीड़ जुटी। भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने रैली को संबोधित किया। फिर इस रैली में अचानक सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी। जबकि 80 से अधिक घायल हो गए थे। मोदी की यह रैली भी एक यादगार के तौर पर बन गई, क्योंकि मोदी उस समय पीएम कैंडिडेट थे। शायद ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी प्राइम मिनिस्टर कैंडिडेट की रैली में सीरियल ब्लास्ट हुए हों।

अब पटना से ही विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अपना मोर्चा खोला है। विपक्ष की बैठक में बनी रणनीति का क्या असर होगा। यह तो 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा।



Ashish Pandey

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