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पढ़ें इनके बारे में: हिंदुस्तान के रियल हीरो हैं ये टीचर, वर्ष 2020 में रहे चर्चा में

इन शिक्षकों की शैक्षणिक कार्यशैली 2020 में लोगों को खूब पसंद आया। यहां हम आपको कुछ ऐसे ही शिक्षकों के बारे में बता रहे हैं जिनकी शैक्षणिक कार्यशैली के कारण लाखों गरीब छात्रों का भविष्य उज्जवल हो गया।

Newstrack
Published on: 23 Dec 2020 7:47 PM IST
पढ़ें इनके बारे में: हिंदुस्तान के रियल हीरो हैं ये टीचर, वर्ष 2020 में रहे चर्चा में
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पढ़ें इनके बारे में: हिंदुस्तान के रियल हीरो हैं ये टीचर, वर्ष 2020 में रहे चर्चा में

बिहार: बिहार में शिक्षा का स्तर प्राचीनकाल से ही अपने उच्चतम शिखर पर रहा है। आज भी बिहार में शिक्षकों की एक ऐसी खान जो हिंदुस्तान के रियल हीरो हैं। इन शिक्षकों की शैक्षणिक कार्यशैली 2020 में लोगों को खूब पसंद आया। यहां हम आपको कुछ ऐसे ही शिक्षकों के बारे में बता रहे हैं जिनकी शैक्षणिक कार्यशैली के कारण लाखों गरीब छात्रों का भविष्य उज्जवल हो गया।

रणजीत सिंह डिसले-

महाराष्ट्र के सोलापुर जिला परिषद स्कूल के एक प्राइमरी टीचर रणजीत सिंह डिसले ने ग्लोबल टीचर प्राइज जीता है। उन्हें 7 करोड़ रुपए मिले हैं। यह पहली बार है जब किसी भारतीय को यह प्राइज मिला है। यूनेस्को और लंदन स्थित वार्के फाउंडेशन की तरफ से दिए जाने वाले ग्लोबल टीचर प्राइज की घोषणा 3 दिसंबर को की गई थी।

जानवरों को बांधने वाले शेड को स्कूल में बदला

वार्के फाउंडेशन 2014 से हर साल ग्लोबल टीचर प्राइज दे रही है। इस साल दुनिया के 140 देशों के 12 हजार से ज्यादा टीचर्स दौड़ में थे। इनमें से 10 फाइनलिस्ट चुने गए। रणजीत को गर्ल्स एजुकेशन को बढ़ावा देने और भारत में QR कोड बेस्ड किताबों के अभियान को बढ़ाने के लिए ग्लोबल टीचर प्राइज के लिए चुना गया। परितेवाड़ी जिला परिषद स्कूल में डिसले ने 2009 में टीचिंग शुरू की थी। तब वहां मवेशियों को रखने के लिए शेड बना हुआ था। रणजीत ने प्रशासन और स्थानीय लोगों से गुहार लगवाकर स्कूल को ठीक करवाया।

खान सर-

बिहार की राजधानी पटना के खान सर पूरे देश दुनिया में अपने पढ़ाने के अंदाज के लिए फेमस है वही उन्हें देश में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है दरअसल यूट्यूब इंडिया ने देश के टॉप टेन के क्रियेटर 2020 के लिस्ट में खान सर को भी जगह दिया है आपको बता दूं कि यूट्यूब इंडिया के तरफ से ट्वीट करके इसकी जानकारी दी गई खान सर को यूट्यूब क्रेएटर के रूप में इंडिया में आठवां स्थान मिला है जो कि एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि पूरे देश भर में सभी यूट्यूबर युवा को टॉप टेन क्रिएटर में शामिल होने का सपना होता है।

आपको बता दूं कि खान सर ने 2019 में यूट्यूब ज्वाइन किया था जिसके बाद 2020 आते-आते उन्होंने करीब करीब 4 मिलीयन सब्सक्राइबर्स बाला यूट्यूब चैनल बन चुका है। आपको बता दें कि खान सर के यूट्यूब चैनल का नाम यूट्यूब पर खान जीएस रिसर्च सेंटर के नाम से है जहां पर उनके चैनल पर अब तक 249 वीडियो है ।

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पढ़ाने के तरीके के फैन्स बने लोग-

यूजर्स टीचर के पढ़ाने के तरीके की तारीफ करते दिखते रहे हैं, यहां तक कि उनके वीडियो को आईपीएस अरुण बोथरा अपने ट्विटर हैंडल से शेयर कर चुके है. वीडियो के साथ अरुण बोथरा ने लिखा था कि ‘अगर मुझे ऐसा शिक्षक मिला होता तो मैंने यूपीएससी टॉप कर लिया होता’, सबसे बड़ी बात कि वो सभी बातें एकदम देसी स्टाइल में बताते हैं। शायद यही वजह है कि लोग इस शिक्षक के पढ़ाने के अंदाज के फैन हो गए हैं।

आनंद कुमार-

सुपर 30 के संस्थापक और हजारों-लाखों स्टूडेंट की प्रेरणा आनंद कुमार को जब 1994 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिला तो मानो सपना सच हो गया, लेकिन जब हकीकत से रूबरू हुए तो पता चला कि सिर्फ एडमिशन मिलना ही काफी नहीं है, बल्कि पैसा भी बहुत महत्वपूर्ण है। आनंद कुमार के परिवार के पास फीस तो दूर, कैम्ब्रिज जाने के टिकट के भी पैसे नहीं थे, आखिरकार उन्हें सीट छोड़नी पड़ी। उस समय भले ही आनंद कैम्ब्रिज नहीं जा पाए, लेकिन आज आनंद कुमार की कोचिंग ‘सुपर 30’ से 100 प्रतिशत स्टूडेंट इंजीनियरिंग एंट्रेंस में सफल होकर बड़े कॉलेजों में न केवल दाखिला ले रहे हैं बल्कि आज उनके कई स्टूडेंट विदेशों में उच्च पदों पर हैं।

आरके श्रीवास्तव-

आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्य शैली और पाठशाला “सुपर थर्टी” से कम सुपर नहीं है। सिर्फ 1 रूपए गुरू दक्षिणा लेकर सैकड़ों गरीबों को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई, एनडीए सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानो में दाखिला दिलाकर उनके सपने को पंख लगाया है। संसाधन की कमी के बावजूद आरके श्रीवास्तव ने पढ़ाना आरंभ कर आज जो मुकाम हासिल किया है और जिस तेजी से उस पथ पर अग्रसर होते हुए, गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनियर बना रहे है। उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली से काफ़ी प्रभावित हो, प्रशंसा कर चुके हैं।

गुरु दक्षिणा में लेते हैं सिर्फ 1रूपए-

वहीं आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आंगन से सिर्फ 1रूपए गुरु दक्षिणा में छात्र शिक्षा ग्रहण कर इंजीनियर तो बन ही रहे है, वहीं कई छात्र NDA में सफल हो भारतीय सेना के विभिन्न अंगों में सेवा देने के लिये भी सफल हो रहे हैं, इसके अलावा श्रीवास्तव अपने माँ के हाथों प्रत्येक वर्ष 50 गरीब स्टूडेंट्स को निःशुल्क किताबे बंटवाने के पुनीत कार्य भी करते हैं।

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“Wonder Kids Program” और “Night Classes”

साथ ही ठंड के दिनों में अपनी क्षमता के अनुसार, कम-से-कम 100 जरूरतमंदो को खुद घर-घर पहुँचकर एवं सड़क किनारे ठंड से कांपते लोगो को कंबल बाँटने का पुनीत कार्य भी करते हैं। ऐसे कई सारे सामाजिक कार्यो के लिए भी आरके श्रीवास्तव मशहूर हुए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में इनके द्वारा चलाया जा “Wonder Kids Program” और “Night Classes” अद्भुत है। Google boy “Kautilya Pandit” के गुरू के रूप में भी देश इन्हें जानता है।

गणित सिखाने के लिए मशहूर हैं आरके श्रीवास्तव

मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव यानी गणित पढ़ाने का दीवाना, पूरी रात लगातार 12 घण्टे छात्रों को गणित का गुण सिखाते, वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव जादुई तरीके से खेल-खेल में गणित का गुण सिखाने के लिए मशहूर हैं। चुटकले सुनाकर खेल-खेल में पढ़ाते हैं।

सैकड़ों स्टूडेंट्स को कचरे से खिलौना बनाया

गणित के मशहूर शिक्षक मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव जादुई तरीके से गणित पढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। उनकी पढ़ाई की खासियत है कि वह बहुत ही स्पष्ट और सरल तरीके से समझाते हैं। सामाजिक सरोकार से गणित को जोड़कर, चुटकुले बनाकर सवाल हल करना आरके श्रीवास्तव की पहचान है। कचरे से खिलौने बनाकर सैकड़ों स्टूडेंट्स को गणित सिखा चुके हैं।

ममता मिश्रा-

प्राइमरी स्कूल (primary school) की इस टीचर ने अपने संसाधनों से बनवाए स्मार्ट क्लास (smart class) साथ ही यूट्यूब( YouTube), ग्रीन बोर्ड (green board) और मोबाइल एप दीक्षा (diksha app) के जरिए बच्चों को डिजिटल एजुकेशन (digital education) दे रही हैं, पीएम मोदी (PM Modi) भी 'मन की बात' (Mann Ki Baat) में ममता मिश्रा की सराहना कर चुके हैं....

ये टीचर प्रयागराज जिले के यमुनापार इलाके में चाका ब्लाक के मॉडल प्राइमरी स्कूल तेदुंआवन में सहायक अध्याप​क के पद पर तैनात ममता मिश्रा हैं। इनकी नियुक्ति 2015 में दूसरे शिक्षकों की तरह ही हुई थी. लेकिन इन्होंने दूसरे शिक्षकों से अलग हटकर प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चों को कान्वेंट स्कूल के बच्चों की तरह ही डिजिटल तरीके से पढ़ने के लिए प्रेरित किया जिससे कि वो बदलते समय के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें. ममता अपने क्लास में आने वाले पहली कक्षा के बच्चों को घर में मोबाइल के जरिए पढ़ाई करने के गुर सिखा रही हैं।

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अलख पांडे-

यूपी के एक शख्स ने अपने शानदार काम से पाकिस्तान में धूम मचा दी है। बल्कि पाकिस्तान ही नहीं, नेपाल, बांग्लादेश और सऊदी अरब के छात्र और युवा भी इन शख्स के फैन हो गए हैं। प्रयागराज के अलख पांडे यूट्यूब पर फ्री फिजिक्स और केमिस्ट्री कोचिंग के वीडियो डालकर भारत समेत दुनिया के कई देशों में फेमस हो गए हैं। अलख पांडे फिजिक्स और केमिस्ट्री विषयों की फ्री ऑनलाइन कोचिंग देते हैं।

रोशनी मुखर्जी-

झारखंड की रोशनी मुखर्जी आज के दौर की ऐसी गुरू हैं जिन्होंने बच्चों के पढ़ाई के डर को खत्म करने का ऐसा नायाब तरीका निकाला कि आज हर जगह उनके ही चर्चे हैं। रोशनी ने साल 2011 में यू-ट्यूब पर 'एक्ज़ाम फ़ीवर' के नाम से चैनल बनाया जिसमें मैथ्स, बायो, फिजिक्स, कैमेस्ट्री की हर थ्योरी को रोचक तरीके से वीडियो के जरिए समझाया जाता है। इंग्लिश और हिंदी में नि:शुल्क उपलब्ध इस चैनल के साढें 10 लाख से भी ज्यादा सब्सक्राइबर हैं। उनका ये अनोखा प्रयास आज स्टूडेंट्स के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

आदित्य कुमार-

राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित आदित्य कुमार साइकिल गुरु के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्हें लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड समेत कई बड़े अवार्ड मिले चुके है। आदित्य ने साइकिल से अलग-अलग राज्यों में घुम-घुम कर बच्चों को फ्री में एजुकेट करते है। उनका लखनऊ से काफी गहरा नाता रहा है।

गरीबी में बीता था बचपन

- आदित्य कुमार का जन्म 18 जुलाई 1970 को फर्रुखाबाद के सलेमपुर गांव में हुआ था। पिता भूप नारायण मजदूर और मां लौंग देवी हाउस वाइफ थी। घर में 5 भाई बहनों में आदित्य 3 नंबर के है।

- परिवार एक छोटे से घर में रहता था। पिता के पास रोजगार न होने की वजह से परिवार को मुश्किल भरे दौर से गुजरना पड़ा था। इस वजह से न तो अच्छा खाना -पीना और न ही अच्छे से पढ़ाई पूरी हो पाई।

ट्यूशन पढ़ाकर जमा की कालेज की फ़ीस

- आदित्य की बचपन से ही इच्छा थी कि वह हायर स्टडीज की पढ़ाई पूरी करे। लेकिन पैसे की प्रोब्लम के चलते उनका ये सपना पूरा नहीं हो पाया।

- कालेज की पढ़ाई की फ़ीस बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर जैसे -तैसे पूरी करते थे।

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25 साल की उम्र में छोड़ना पड़ा घर

- घर की हालात ठीक नहीं होने के कारण आदित्य इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद कानपुर चले आए।

- कालेज में पढ़ाई के दौरान घूमकर सड़कों पर बच्चों को एजुकेट करना शुरू कर दिया। 1970 में सड़कों पर घूम-घूम कर बच्चों को पढ़ाने से परिवार के लोग नाराज हो गए। पिता और भाई- बहनों ने बुरा भला कहा, उसके बाद कानपुर से वापस घर नहीं लौटे।

- 25 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया। उन्होंने अभी तक शादी नहीं की है।

सफर में साइकिल बनी हमसफर

- 1996 में लखनऊ के निशातगंज और चारबाग के कई अलग-अलग स्थानों पर रहे। सड़क पर ही गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया। राजधानी की सड़कों पर घूम- घूम कर पढ़ाता देख लोग काफी प्रभावित भी हुए।

- गोमतीनगर के बिजनेसमैन अखलाक अहमद भी उनमें से एक थे। अख़लाक़ ने आदित्य को साइकिल खरीद कर फ्री में दी थी।

- देश भर के अलग –अलग लोगों से अब तक उन्हें करीब 32 साइकिलें फ्री में मिली है।

राजेश शर्मा

पढ़ने का अधिकार सबको होता है, वहीं कुछ बच्चे गरीबी के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते। ऐसे ही बच्चों के सपनों को सच करने के लिए दिल्ली में एक दुकानदार उनका साथ दे रहा है। दिल्ली में यह दुकानदार 300 से भी अधिक वंचित बच्चों को यमुना बैंक क्षेत्र में एक मेट्रो पुल के नीचे पढ़ाता है। पिछले कई सालों से मेट्रो पुल के नीचे 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज' चल रहा है। इस स्कूल का संचालन राजेश कुमार शर्मा कर रहे हैं। इसमें यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के आस-पास की झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा दी जा रही है।

राजेश कुमार ने 2006 में युमना बैंक मेट्रो स्टेशन के पास खुदाई होते समय कुछ बच्चों को रेत में खेलते हुए देखकर सोचा कि इन बच्चों के लिए ऐसा क्या किया जाए, जो हमेशा उनके साथ रहे। इसके बाद उन्होंने पेड़ के नीचे दो बच्चों को पढ़ाकर इसकी शुरूआत की।

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क्या करते हैं राजेश शर्मा?

49 साल के राजेश शर्मा उत्तर प्रदेश के हाथरस के रहने वाले हैं। वे लक्ष्मी नगर में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में पांच सदस्य हैं। जिनके पालन-पोषण के लिए वे एक किराने की दुकान चलाते हैं।

कैसा है स्कूल?

इस स्कूल की छत दिल्ली मेट्रो का एक पुल है और मेट्रो परिसर की दीवार पर पांच ब्लैकबोर्ड लगाए गए हैं। जिस पर बच्चों को चॉक से पढ़ाया जाता है।

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