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शेयर में लगाते हैं पैसे तो ध्यान दें! बदलने वाले हैं ये जरुरी नियम, 1 सितंबर से होंगे लागू

एक सितंबर से आम निवेशकों के लिए मार्जिन के नए नियम लागू होने जा रहे हैं। अब निवेशक ब्रोकर की ओर से मिलने वाली मार्जिन का लाभ नहीं उठा पाएंगे।

Shreya
Published on: 31 Aug 2020 4:47 PM IST
शेयर में लगाते हैं पैसे तो ध्यान दें! बदलने वाले हैं ये जरुरी नियम, 1 सितंबर से होंगे लागू
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1 सितंबर से लागू होंगे मार्जिन के नए नियम

शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों के लिए बड़ी खबर- 1 सितंबर से लागू होंगे नए नियम

नई दिल्ली: शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों के लिए यह बड़ी खबर है, क्योंकि एक सितंबर से आम निवेशकों के लिए मार्जिन के नए नियम लागू होने जा रहे हैं। यानी अब निवेशक ब्रोकर की ओर से मिलने वाली मार्जिन का लाभ नहीं उठा पाएंगे। जितना पैसा निवेशक अपफ्रंट मार्जिन के तौर पर ब्रोकर को देंगे, अब वो उतने के ही शेयर खरीद सकेंगे। शेयर बाजार रेग्युलेटर सेबी की ओर से मार्जिन ट्रेडिंग को नए सिरे से तय किया गया है।

क्या होता है अपफ्रंट मार्जिन

अपफ्रंट मार्जिन, वह न्यूनतम राशि या सिक्योरिटी होती है जो ट्रेडिंग शुरू करने से पहले निवेशक स्टॉक ब्रोकर को देता है। वास्तव में यह राशि बाजारों द्वारा ब्रोकरेज से अपफ्रंट वसूली जाने वाली राशि का हिस्सा होती है। इसके अलावा स्टॉक्स में किए गए कुल निवेश के आधार पर ब्रोकरेज हाउस भी निवेशक को मार्जिन देते थे। यह मार्जिन ब्रोकरेज हाउस निर्धारित प्रक्रिया के तहत तय होती थी।

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क्या होगा नए नियमों में?

सेबी ने मार्जिन ट्रेडिंग को नए सिरे से तय किया है। अब तक निवेश की भूमिका प्लेज सिस्टम में कम और ब्रोकरेज हाउस की ज्यादा होती थी। साथ ही वह कई काम निवेशक की तरफ से कर लेते थे। वहीं नए सिस्टम में शेयर आपके खाते में ही रहेंगे और वहीं पर ही क्लियरिंग हाउस प्लेज मार्क कर देगा। इससे ब्रोकर के खाते में शेयर नहीं जाएंगे और मार्जिन तय करना आपके हक में होगा।

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प्लेज ब्रोकर के फेवर में मार्क हो जाएगी। ब्रोकर को अलग डीमैट अकाउंट ओपन करना होगा। TMCM- क्लाइंट सिक्योरिटी मार्जिन प्लेज अकाउंट। यहां TMCM यानी ट्रेडिंग मेंबर क्लियरिंग मेंबर। फिर ब्रोकर को इन सिक्योरिटी को क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के फेवर में री-प्लेज करना होगा। तब आपको आपके अकाउंट में मार्जिन मिल सकेगी।

शॉर्टफॉल होने पर देनी होगी इतनी पेनाल्टी

अगर मार्जिन में शॉर्टफॉल एक लाख रुपए से कम का रहता है तो 0.5 फीसदी और अगर एक लाख से अधिक का रहता है तो एक फीसदी पेनाल्टी लगेगी। और अगर मार्जिन तीन दिन लगातार शॉर्टफॉल रहता है या फिर महीने में पांच दिन शॉर्टफॉल रहता है तो पांच फीसदी पेनाल्टी लगेगी।

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जानिए सभी जरुरी बातें-

अब ब्रोकर्स के लिए निवेशकों से मार्जिन अपफ्रंट लेना अनिवार्य हो गया है।

ग्राहक के पावर ऑफ अटॉर्नी पर रोक लगेगी।

मार्जिन प्लेज होने पर भी पावर ऑफ अटॉर्नी यूज नहीं होगा।

अब ब्रोकर्स के पास ग्राहक के ट्रांजेक्शन का अधिकार होगा।

मार्जिन लेने वाले निवेशक अलग से मार्जिन प्लेज कर पाएंगे।

अब निवेशकों को न्यूनतम 30 फीसदी मार्जिन अपफ्रंट देना होगा।

कैश सेगमेंट में भी अपफ्रंट मार्जिन की आवश्यकता होगी।

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