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काम की बात: मनोवैज्ञानिक इलाज को दें महत्व, खुल कर करें डिप्रेशन पर बात

ऑफिस से घर ,घर से ऑफिस बस यहीं तक हमारी दुनिया सिमट कर रह गयी है। और रही बात छुट्टियों कितो वो हम सोने और घर के ज़रूरी काम करने में बिता देते हैं। जिसके कारण घर परिवार से बाते कम हो गयी है, दोस्तों को भी टाइम देना मुश्किल हो गया है।

Monika
Published on: 20 Aug 2020 11:24 AM GMT
काम की बात: मनोवैज्ञानिक इलाज को दें महत्व, खुल कर करें डिप्रेशन पर बात
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Give importance to psychological treatment, talk openly on depression

इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में हम खुद के लिए वक़्त ही नहीं निकाल पाते। ऑफिस से घर ,घर से ऑफिस बस यहीं तक हमारी दुनिया सिमट कर रह गयी है। और रही बात छुट्टियों कितो वो हम सोने और घर के ज़रूरी काम करने में बिता देते हैं। जिसके कारण घर परिवार से बाते कम हो गयी है, दोस्तों को भी टाइम देना मुश्किल हो गया है। और अगर गलती से किसी का कॉल आ भी जाए तो हम उस कॉल को रिसीव कर हाल चाल लेना भी ज़रूरी नहीं समझते। बस घर में अकेले बैठ सोशल मीडिया पर ऑनलाइन रहना ही जिंदगी रह गयी है। शायद ये आपको (me time) अपने लिए टाइम निकलना लगता हो लेकिन यही वजह है कीआप धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार हो रहे होते है और आप को इसकी भनक तक नहीं लगती।

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लॉकडाउन ने बधाई मुश्किलें

जब से ये लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से लोग घरों में जहा है वही बंद से हो गए है। जूच तो अपने परिवार के साथ खुल गए लेकिन कई लोग धीरे धीरे डिप्रेशन में चले गए। ये डिप्रेशन आपको धीरे धीरे अन्दर से खोखला करता रहता है तो अन्दर से साडी ख़ुशी दूर कर देता है।

जब से बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत की खबर सामने आई है तब से डिप्रेशन के बारे में लोग खुल कर बात करने लगे है।डॉक्टर्स इस विषय में लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार समजा रहे है। लोगों में कोरोना का भी इतना भय देखने को मिला कि कई तो इस बीमारी के नाम से ही डिप्रेशन महसूस करने लगे है, उन्हें यह लगने लगा है कि अगर ये बीमारी उनको लग गयी तो उनकी उलटी गिनती शुरू हो जाएगी जिसमे जीने का कोई रास्ता नहीं बचेगा। इस लॉक डाउन में कई आत्महत्या के मामले भी सामने आए. जिनमे कई स्कूली बच्चें भी शामिल थे।

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मनोवैज्ञानिक काउंसिलिंग लें मदद

अपने देश में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की भारी कमी है। यूरोप और अमेरिका के विकसित देशों में मनोवैज्ञानिक काउंसिलिंग बहुत ही साधारण सी बात मानी जाती है जिससे डिप्रेशन की संभावना बहुत कम हो जाती है लेकिन अपने यहां इससे लोग भागते हैं। अब मनोवैज्ञानिक बीमारी को भी अन्य बीमारियों की तरह महत्व देना पड़ेगा, तभी बात बनेगी। इस मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगो को खुद जागरूक होना पड़ेगा और खुल कर बात करनी पड़ेगी। ये कोई बीमारी नहीं जिससे छुपाना चाहिए बल्कि काउंसिलिंग के ज़रिए आप खुद को पहले जैसा करने में कामयाब हो सकते है।

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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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