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बड़ी खुशखबरी: सेफ है रूसी कोरोना वैक्सीन, है बड़ी असरदार
कोरोना वायरस की रूसी वैक्सीन सुरक्षित पायी गयी है और ये भी पता चला है कि इस वैक्सीन से शरीर में शक्तिशाली इम्यून रेस्पांस उत्पन्न होता है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस की रूसी वैक्सीन सुरक्षित पायी गयी है और ये भी पता चला है कि इस वैक्सीन से शरीर में शक्तिशाली इम्यून रेस्पांस उत्पन्न होता है। विज्ञान पत्रिका द लांसेट में रूसी वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के नतीजों में ये बात बताई गयी है। लेकिन ये ट्रायल मात्र 76 लोगों पर दो महीने से भी कम अवधि में किया गया।
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तीसरे चरण का ट्रायल जरूरी
तीसरे चरण के ट्रायल नहीं किये जाने से वैक्सीन की ताकत का पता अब भी नहीं चला है। तीसरे चरण के ट्रायल में वास्तविक परिस्थियों में सैकड़ों वालंटियर्स पर परीक्षण किया जाता है तब जा कर बीमारी से लड़ने की वैक्सीन की ताकत का अन्द्द्जा लग पाटा है। तीसरे चरण के ट्रायल में आमतौर पर कई महीनों तक वालंटियर्स की निगरानी की जाती है और वैक्सीन के इम्पैक्ट का ध्ययान किया जाता है।
शुरुआती परीक्षण
वैक्सीन के शुरूआती चरण का यह परीक्षण कुल 76 लोगों पर किया गया और 42 दिनों में टीका सुरक्षा के लिहाज से अच्छा नजर आया। इसने परीक्षणों में शामिल सभी लोगों में 21 दिनों के अंदर एंटीबॉडी भी विकसित की। अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि परीक्षण के द्वितीय चरण के नतीजों से यह पता चलता है कि इस वैक्सीन ने शरीर में 28 दिनों के अंदर टी-कोशिकाएं भी बनाई। रूसी अनुसंधान केंद्र के प्रो। अलेक्जेंडर गिनत्सबर्ग ने कहा कि टीके के तीसरे चरण के परीक्षण की 26 अगस्त को मंजूरी मिली है। इसमें 40,000 स्वयंसेवियों को विभिन्न आयु समूहों से शामिल किये जाने की योजना है।
टी सेल विकसित करेगी वैक्सीन
इस वैक्सीन का उद्देश्य एंटीबॉडी और टी-सेल विकसित करना है, ताकि वे उस वक्त वायरस पर हमला कर सकें जब यह शरीर में घूम रहा हो और साथ ही कोरोना वायरस द्वारा संक्रमित सेल्स पर भी हमला कर सकें। रूस स्थित गामेलिया राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक एवं अध्ययन के प्रमुख लेखक डेनिस लोगुनोव ने कहा है कि 'जब एंटीवायरस टीका शरीर में प्रवेश करता है तो वह कोरोना वायरस को खत्म करने वाले हमलावर प्रोटीन पैदा करता है।'
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दो अस्पतालों में परीक्षण
ये परीक्षण रूस के दो अस्पतालों में किये गये। परीक्षणों में 18 से 60 साल की आयु के स्वस्थ व्यक्तियों को शामिल किया गया। परीक्षण के नतीजों पर टिप्पणी करते हुए अमेरिका के जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिक ने कहा है कि परीक्षण के नतीजे उत्साहजनक है लेकिन ये छोटे पैमाने पर किये गये। विभिन्न आबादी समूहों में टीके की कारगरता का पता लगाने के लिये और अधिक अध्ययन किये जाने की जरूरत है।
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