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स्लिप डिस्क: तीन दिन में मिलेगा दर्द से पूरी तरह से छुटकारा, ये है इलाज

Aditya Mishra
Published on: 1 March 2019 11:04 AM GMT
स्लिप डिस्क: तीन दिन में मिलेगा दर्द से पूरी तरह से छुटकारा, ये है इलाज
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लखनऊ: भीड़ भरी सड़कों पर गाड़ी चलाना और गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण देर तक गलत पॉस्चर में बैठे रहना रीढ़ की सेहत पर भारी पड़ रहा है। पहले जहां चालीस पार ही स्लिप डिस्क के मामले अस्पतालों में देखने को मिलते थे, आज युवा भी स्लिप डिस्क की परेशानी को लेकर डॉक्टरों के चक्कर लगा रहे हैं। क्या है स्लिप डिस्क और आप कैसे इस दर्द से बच सकते हैं, इस बारें में विस्तार से बता रहे है जबलपुर के गवर्नमेंट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉ. वाईआर यादव।

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क्या है स्लिप डिस्क की समस्या?

हमारी रीढ़ की हड्डी में 33 कशेरुकाएं (हड्डियों की शृंखला) होती हैं, और ये कशेरुकाएं डिस्क से जुड़ी रहती हैं। ये डिस्क प्राय: रबड़ की तरह होती है, जो इन हड्डियों को जोड़ने के साथ उनको लचीलापन प्रदान करती है। वास्तव में ये डिस्क रीढ़ की हड्डी में लगे हुए ऐसे पैड होते हैं, जो उसे किसी प्रकार के झटके या दबाव से बचाते हैं। प्रत्येक डिस्क में दो भाग होते हैं; एक जेल जैसा आंतरिक भाग और दूसरा एक कड़ी बाहरी रिंग।

चोट लगने या कमजोरी के कारण डिस्क का आंतरिक भाग बाहरी रिंग से बाहर निकल सकता है, इसे स्लिप डिस्क कहते हैं। इसे हर्निएटेड या प्रोलेप्स्ड डिस्क या रप्चर्ड डिस्क भी कहते हैं। इसके कारण दर्द और बेचैनी होती है। अगर स्लिप डिस्क के कारण कोई स्पाइनल नर्व दब जाती है तो सुन्नपन और तेज दर्द की समस्या हो जाती है। गंभीर मामलों में सर्जरी की आवश्यकता होती है।

क्या हैं कारण व जांच के तरीके

स्लिप डिस्क की परेशानी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होती है। इसके निम्न कारण हो सकते हैं जैसे कि शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना, खराब पॉस्चर में देर तक बैठे रहना, मांसपेशियों का कमजोर हो जाना, अत्यधिक झुककर भारी सामान उठाना, शरीर को गलत तरीके से मोड़ना या झुकना, क्षमता से अधिक वजन उठाना, रीढ़ की हड्डी में चोट लगना, बढ़ती उम्र। .

सबसे पहले डॉक्टर छूकर शारीरिक परीक्षण करते हैं। इसके बाद रीढ़ की हड्डी व आसपास की मांसपेशियों में आई गड़बड़ी को समझने के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन्स, एमआरआई व डिस्कोग्राम्स आदि की सलाह दी जाती है।

हाथ-पैर सुन्न और कमर में तेज दर्द तो न करें इंतजार

विशेषज्ञों ने बताया कि यदि हाथ-पैर सुन्न, लकवा, कमर में तेज दर्द की परेशानी है तो इन मामलों में तीन महीने इंतजार करने से बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है। इसमें जल्द से जल्द सर्जरी कर बढ़ी डिस्क को निकाल कर नर्व पर प्रेशर कम करना चाहिए।

बैठते वक्त रीढ़ का ध्यान न रखने से बढ़ रही स्पाइन की परेशानी

एसजीपीजीआइ के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रोफेसर अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि युवाओं में स्पाइन की बीमारी का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। इसकी मूल वजह काम के बोझ की वजह से लगातार सीट पर बैठे रहना। बैठते वक्त रीढ़ का ध्यान न रखना। पहले स्पाइन संबंधी बीमारी 50 साल के बाद होती थी लेकिन अब ज्यादातर मरीज 30 से 40 साल के बीच के आ रहे हैं। युवा भागदौड़ भरी जिदंगी में सेहत को नजरअंदाज कर देते हैं, जिसका नतीजा है कि बल्जिंग डिस्क जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैँ। इस बीमारी का इलाज तभी संभव है, जब इसके लक्षण और कारण के बारे में लोगों को जानकारी हो।

पैर पर लैपटॉप रखकर काम करना खतरनाक

प्रो. अनंत मेहरोत्रा ने बताया कि तमाम युवा लैपटॉप पर घंटों काम करते रहते हैं। वे कभी बिस्तर पर लैपटॉप रखते हैं तो कभी पैर पर। यह खतरनाक स्थिति है। ज्यादा दिन तक इस तरह काम करने से न्यूरो संबंधी समस्या हो सकती है। खासतौर से कमर और गर्दन की डिस्क प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में कई बार ऑपरेशन तक की नौबत आ जाती है। इसलिए लैपटॉप को स्टैंड पर रखकर प्रयोग करें। लैपटॉप प्रयोग करते समय कमर और गर्दन सीधा रखें।

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मिनिमल इनवेसिव सर्जरी से जल्द मिलती है राहत

रीढ़ की हड्डी में कुशन का काम करने वाली डिस्क कोलेप्स होने पर हाथ-पैर में कमजोरी और दर्द की परेशानी होती है। कई बार इसके कारण रोजमर्रा का जीवन प्रभावित हो जाता है। मिनिमल इनवेसिव सर्जरी से तीन से चार दिन में हमेशा के लिए इन तमाम परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। इस तकनीक में जितना डिस्क अपने स्थान से बाहर निकल कर नर्व को दबा रहा है उसे निकाला जाता है। तीन से चार दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है।

उन्होंने बताया कि स्पाइन में डिस्क कोलेप्स, ट्यूमर सहित कई परेशानियों में अब ओपन सर्जरी की जरूरत खत्म हो गई है। न्यूरो सर्जरी की ओपीडी में आने वाले कुल मामलों में से 50 फीसद मरीजों में स्पाइन की परेशानी होती है।

क्या है मिनिमल इनवेसिव सर्जरी

इस सर्जरी में एक इंच से भी कम चीरा लगाकर माइक्रोस्कोप से देखते हुए वहां पहुंच कर डिस्क या हड्डी को निकाल कर नर्व पर प्रेशर कम किया जाता है। ट्यूमर होने पर ट्यूब से ट्यूमर को निकाल दिया जाता है। इसमें कम रक्तस्राव के साथ अस्पताल में रुकने का खर्च होने के कारण इलाज का खर्च कम हो जाता है।

रीढ़ बचाने के लिए करें ये उपाय

शरीर का वजन करें कम।

धूमपान से बचें।

भारी सामान न उठाएं।

गड्ढे में बाइक को रखें धीमा।

तैराकी को करें दिनचर्या में शामिल।

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