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Kolkata News: एक वह भी 15 अगस्त: 1854 में हावड़ा से हुगली तक चली थी पहली ट्रेन
Kolkata News: 28 जून, 1854 को ट्रेन इंजन ने हावड़ा से पांडुआ तक सफलतापूर्वक यात्रा की। हावड़ा से हुगली तक एक और परीक्षण 11 अगस्त, 1854 को पूरा हुआ। बंगाल हुरकुरा और इंडियन गजट के पत्रकारों के एक दल ने इस बार डिब्बों में यात्रा की।
Kolkata News: जून 1845 में, ईस्ट इंडियन रेलवे (ईआईआर) कंपनी का गठन लंदन में 1 करोड़ पाउंड की प्रारंभिक चुकता पूंजी के साथ किया गया था। इस कंपनी का उद्देश्य ब्रिटिश भारतीय क्षेत्रों की राजधानी कलकत्ता और मुगल भारत की राजधानी दिल्ली के बीच एक रेलवे संपर्क स्थापित करना था। इस पहल के मुख्य हीरो थे रोलैंड मैकडोनाल्ड स्टीफेंसन जिन्हें बाद में ‘नाइटहुड’ की उपाधि दी गई थी। रोलैंड मैकडोनाल्ड स्टीफेंसन ईआईआर कंपनी के संस्थापक, पहले प्रबंध निदेशक और प्रमुख भारतीय एजेंट थे। स्टीफेंसन के खून में रेलवे था - वह जॉर्ज स्टीफेंसन के भतीजे थे, जिन्हें ‘रेलवे के पिता’ के रूप में जाना जाता है। अपने चाचा की तरह, रोलैंड मैकडोनाल्ड स्टीफेंसन को ट्रेनों का शौक था।
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रोलैंड स्टीफेंसन ने कलकत्ता से दिल्ली तक प्रस्तावित रेल मार्ग का विस्तृत सर्वेक्षण करने के लिए भारत का दौरा किया। दिलचस्प बात यह है कि स्टीफेंसन और ईआईआर कंपनी के प्रयासों से कलकत्ता में सेंट्रल बंगाल रेलवे कंपनी नाम से एक कंपनी की स्थापना हुई। लेकिन कंपनी के लिए रकम जुटाई नहीं जा सकी और न ही रेलवे लाइन के लिए जल्द मंजूरी मिल सकी। निराश हो कर स्टीफेंसन वापस लौट गए। लेकिन आखिरकार, कलकत्ता और रुनीगुंजे (रानीगंज) के बीच ट्रेनें चलाने की अस्थायी मंजूरी 1850 में मिली। नए जोश के साथ, स्टीफेंसन अगले साल भारत लौट आए और अगले तीन वर्षों में व्यक्तिगत रूप से पटरियों के बिछाने का निरीक्षण किया।
कलकत्ता और पांडुआ के बीच ट्रैक चलने के लिए तैयार थे तभी...
1853 के अंत तक, कलकत्ता और पांडुआ के बीच ट्रैक चलने के लिए तैयार थे। लेकिन भाग्य को कुछ और मंजूर था। भारत में निर्माण के लिए नमूना रेल गाड़ियों को गुडविल नामक जहाज में इंग्लैंड से लाया जा रहा था जो सागरद्वीप के पास डूब गया। इसके बाद मुख्य अभियंता जॉर्ज टर्नबुल ने अपने खुद के डिज़ाइन का उपयोग करके कलकत्ता के दो प्रमुख कार निर्माताओं द्वारा कोच बनाने की व्यवस्था की, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। फिर, इंजन लेकर आने वाला जहाज कुछ गलतफहमी के कारण कलकत्ता में आने के बजाय ऑस्ट्रेलिया के लिए रवाना हो गया।
हालाँकि बाद में इंजन को कलकत्ता लाया गया, लेकिन इसमें कीमती समय बर्बाद हो गया। बदकिस्मती ने अब भी पीछा नहीं छोड़ा था, चंद्रनगर में फ्रांसीसी सरकार ने योजनाओं पर आपत्ति जताई और कहा कि ट्रैक उनके क्षेत्र से गुजर रहा था। इस मामले को भी सुलझा लिया गया लेकिन एक बार फिर ईआईआर कंपनी और स्टीफेंसन के शेड्यूल में देरी हो गई।
अंततः हुई यात्रा
आख़िरकार, 28 जून, 1854 को ट्रेन इंजन ने हावड़ा से पांडुआ तक सफलतापूर्वक यात्रा की। हावड़ा से हुगली तक एक और परीक्षण 11 अगस्त, 1854 को पूरा हुआ। बंगाल हुरकुरा और इंडियन गजट के पत्रकारों के एक दल ने इस बार डिब्बों में यात्रा की। अगले दिन दर्ज की गई उनकी रिपोर्ट के अनुसार, ट्रेन सुबह 8.30 बजे हावड़ा से रवाना हुई और 11.01 बजे हुगली पहुंची।
15 अगस्त 1854 के अखबार में एक नोटिस इस प्रकार छपी – ‘इस महीने की 15 तारीख, मंगलवार को हावड़ा और हुगली से ट्रेनें निम्नानुसार प्रस्थान करेंगी : हावड़ा से सुबह 1030 बजे और शाम 1730 बजे हुगली से सुबह 08:13 बजे और शाम 1538 बजे। ट्रेन बल्ली, सेरामपुर और चंदर नागौर में रुकेगी। 1 सितंबर से हावड़ा और पांडुआ के बीच ट्रेन सभी स्टेशनों पर रुकते हुए चलेगी। जो लोग सस्ते मासिक पास में रुचि रखते हैं, उनसे अनुरोध है कि वे नजदीकी स्टेशन पर फॉर्म के लिए आवेदन करें और भरे हुए फॉर्म को जल्द से जल्द प्रबंध निदेशक और एजेंट के पास जमा करें। मासिक पास का किराया बाद में तय किया जाएगा। अगले वर्ष 1 जनवरी से पहले कोई मासिक पास जारी नहीं किया जाएगा।
12 अगस्त, 1854
आर. मैकडोनाल्ड स्टीफेंसन
29, थिएटर रोड, कलकत्ता।
15 अगस्त का वह दिन
हमारी आजादी से तिरानवे साल पहले, 15 अगस्त, 1854 को, हावड़ा से पहला लोकोमोटिव समय से 90 मिनट पहले चला और सुबह 10.01 बजे हुगली पहुंचा। बेशक, इसके पहले भारत का पहला लोकोमोटिव तब तक अपनी यात्रा कर चुका था : 16 अप्रैल, 1853 को मुंबई में बोरी बंदर से ठाणे तक। लेकिन अनुमतियों के लिए शुरुआती देरी और बाद में शिपिंग दुर्घटनाओं और फ्रांसीसी विवाद के कारण, असली सम्मान ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी, रोलैंड मैकडोनाल्ड स्टीफेंसन और कलकत्ता का हो सकता है।