×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

आपातकाल के 44 साल, आज ही लिखा गया था स्वतंत्र भारत का सबसे काला अध्याय

इतिहास में 25 जून का दिन भारत के लिहाज से एक महत्वपूर्ण घटना का गवाह रहा है। आज ही के दिन 1975 में देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरफ से आपातकाल लगाने की घोषणा की गई, जिसने कई ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म दिया।

Vidushi Mishra
Published on: 25 Jun 2019 10:42 AM IST
आपातकाल के 44 साल, आज ही लिखा गया था स्वतंत्र भारत का सबसे काला अध्याय
X

नई दिल्ली: इतिहास में 25 जून का दिन भारत के लिहाज से एक महत्वपूर्ण घटना का गवाह रहा है। आज ही के दिन 1975 में देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरफ से आपातकाल लगाने की घोषणा की गई, जिसने कई ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म दिया। तब इंदिरा ने सरकार और सत्ता के खिलाफ खड़े होने वाले हज़ारों लोगों को जेल में डाल दिया गया था। 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल था।

यह भी देखें... आज भारत दौरे पर आएंगे अमेरिका के विदेश मंत्री ‘माइक पोम्पियो’

तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुचछेद 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद काल था। आपातकाल में लोकसभा चुनाव भी स्थगित हो गए थे।

देखें वीडियों...

इंदिरा शासन के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई जैसे नेताओं और सरकार के प्रति तीखी आलोचना करने वाले पत्रकारों, समाजसेवियों, नागरिक संगठनों के लोग और छात्रों को आपातकाल के वक्त सलाखों के पीछे भेज दिया गया था। अखबारों को सरकार के खिलाफ छापने से मना कर दिया गया और जो भी लिखा जाता था उसकी सेंसरशिप की जाने लगी।

बताया जाता है कि अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सत्ता खोने के डर की वजह से इंदिरा गांधी ने देश में अपातकाल लागू किया था। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, राजनारायण जैसे कई नेता इंदिरा गांधी की नीतियों के मुखर विरोधी थे।

अपातकाल के संदर्भ में कैथरीन फ्रैंक की किताब "इंदिरा: द लाईफ ऑफ इंदिरा नेहरु गांधी" का कुछ अंश हम यहां पेश कर रहे हैं।

25 जून की सुबह को पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे के पास इंदिरा गांधी के सचिव आरके धवन का फोन जाता है। आमतौर पर सिद्धार्थ शंकर रे कलकत्ता के बजाय दिल्ली में ही रहते थे। धवन ने रे से कहा कि वे जल्दी से प्रधानमंत्री आवास पर पहुचें।

उस समय प्रधानमंत्री आवास 1 सफदरजंग रोड हुआ करता था। सिद्धार्थ शंकर रे तुरंत जा कर इंदिरा गांधी से मिलते हैं और लगभग दो घंटे लगातार दोनों की बात चलती है। इंदिरा ने रे से कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि देश में अराजक माहौल आने वाला है। हम एक बहुत बड़ी समस्या में हैं और इससे निपटने लिए कोई बड़ा कदम उठाना होगा।

यह भी देखें... अमरनाथ गुफा के पास बर्फबारी, गिरा तापमान, विराजमान हुए बाबा बर्फानी

इंदिरा ने कहा कि गुजरात विधानसभा भंग कर दी गई है। बिहार विधानसभा भंग हो गई है। इसका कोई अंत नहीं है। लोकतंत्र खतरे में है। इंदिरा ने इस बात को दोहराया कि कुछ "कठोर, जरुरी कार्रवाई की जरूरत है।" इंदिरा गांधी को इंटेलिजेंस एजेंसियों के जरिए लगातार ये जानकारी दी जा रही थी कि देश के किस कोने में कौन सा नेता उनके खिलाफ रैली कर रहा है। उस दिन इंदिरा ने रे के सामने जयप्रकाश नारायण के एक रैली, जो कि शाम में होने वाली थी, का जिक्र करते हुए कहा कि वे अपने रैली से पुलिस और आर्मी को हथियार छोड़ने की बात करने वाले हैं।

"जब एक बच्चा पैदा होता है तो ये देखने के लिए कि बच्चा ठीक है या नहीं, हम उसे हिलाते हैं। भारत को भी इसी तरह हिलाने की जरूरत है।"

वहीं दूसरी तरफ इंदिरा गांधी को अमेरिकन इंटेलिजेंस एजेंसी सीआईए से भी खतरा था। इंदिरा को पता था कि वे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में हैं। इंदिरा को ये डर सता रहा था कि उन्हें चिली के साल्वाडोर अलेंडे की तरह सत्ता से बेदखल कर दिया जाएगा। 1973 में सीआईए ने जनरल ऑगस्तो पिनोशेट की मदद से साल्वाडोर अलेंडे को सत्ता से उखाड़ फेंका था।

इंदिरा व्यक्तिगत रूप से डर रहीं थीं। उन्हें लगता था कि अगर जयप्रकाश नारायण उनके खिलाफ लोगों को खड़ा करने में कामयाब हो गए तो ये देश के लिए विध्वंसक होगा। इंदिरा को लगता था कि अगर वे सत्ता छोड़ती हैं तो भारत बर्बाद हो जाएगा। इंदिरा ने सिद्धार्थ शंकर रे से कहा, "जब एक बच्चा पैदा होता है तो ये देखने के लिए कि बच्चा ठीक है या नहीं, हम उसे हिलाते हैं। भारत को भी इसी तरह हिलाने की जरूरत है।" बाद में एक इंटरव्यू में इंदिरा ने कहा था कि देश को बचाए रखने के लिए 'शॉक ट्रीटमेंट' की जरूरत थी।

इंदिरा ने रे को इसलिए बुलाया था क्योंकि वे संवैधानिक मामलों के जानकार थे। हालांकि उस दिन इंदिरा गांधी ने कानून मंत्री एचआर गोखले से कोई सलाह नहीं ली थी। दरअसल उस समय इंदिरा गांधी कोई सलाह नहीं लेना चाहती थीं। उन्हें अपने फैसले को लेकर इजाजत की जरूरत थी।

गिरफ्तारी की लिस्ट में सबसे ऊपर थे जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई

इस मामले में एक दिन पहले ही संजय गांधी, गृह मंत्रालय के दूसरे सबसे प्रभावशाली व्यक्ति ओम मेहता और हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल ने इसकी शुरूआत कर दी थी। इतना ही नहीं सिद्धार्थ शंकर रे के बुलाने से पहले ही ये तीनों लोग आरके धवन के ऑफिस में ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार कर रहे थे जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था। इस लिस्ट में सबसे उपर जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई थे।

सिद्धार्थ शंकर रे ही वो शख्स थे जिन्होंने राजनारायण मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद इंदिरा गांधी से कहा था कि वो इस्तीफा न दें। रे कानूनी मामलों के बड़े जानकार थे लेकिन रे संजय गांधी के करीबी भी थे। उस दिन जब इंदिरा ने रे से पूछा कि हमें क्या करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुझे संवैधानिक स्थिति को देखना पड़ेगा। इसके बाद रे वहां से चले जाते हैं और भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका के संविधान को पढ़ने में घंटों समय बिताते हैं। इसके बाद वो इंदिरा के घर पर शाम 3.30 बजे आए और उन्होंने इंदिरा गांधी को बताया कि संविधाने के अनुच्छेद 352 के तहत देश में इमरजेंसी लगाई जा सकती है।

यह भी देखें... आज भाजपा में शामिल होंगे इनेलो विधायक जाकिर हुसैन

संविधान में ये व्यवस्था दी गई है कि बाहरी आक्रमण और आंतरिक डिस्टरबेंस या सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में इमरजेंसी लगाई जा सकती है। रे को दोनों स्थितियों का अंतर बखूबी पता था। उन्हें ये पता था कि इस बार इमरजेंसी लगाने के लिए बाहरी आक्रमण का वजह नहीं बताया जा सकता है। रे ने 'सशस्त्र संघर्ष' का मतलब राज्य में आंतरिक कलह के रुप में निकाला।

इस तरह रे और इंदिरा का मानना ये था कि जयप्रकाश नारायण ने जो आर्मी और पुलिस को सरकार के आदेश नहीं मानने की बात कही है वो सशस्त्र संघर्ष के दायरे में आता है। रे ने इंदिरा गांधी को आंतरिक और बाह्य इमरजेंसी के बारे में पूरे डिटेल में बताया था।

इसके बाद इंदिरा ने रे से कहा कि वो इमरजेंसी लगने के बारे में कैबिनेट से बात नहीं करना चाहती हैं। रे ने इसका भी हल निकाल लिया था। उन्होंने इंदिरा से कहा कि जब वे राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के सामने ये बात करें तो वो ये कह सकती हैं कि इसके लिए कैबिनेट से बात करने का समय नहीं था। इंदिरा गांधी ने अपातकाल लागू करने का पूरा मन बना लिया था और वो इसमें किसी प्रकार का रुकावट नहीं चाहती थीं।

रे ने इंदिरा को यह भी बताया कि राष्ट्रपति की सहमति के लिए जो भी फाइलें भेजी जाती हैं उसमें हर किसी में ये जरूरी नहीं होता कि कैबिनेट की सहमति हो या कैबिनेट को इसकी जानकारी दी जाए।

कुछ सवाल पूछने के बाद राष्ट्रपति ने इंदिरा से कहा- इमरजेंसी ऑर्डर भेज दें

इसके बाद इंदिरा गांधी ने कहा कि वे इस बात को लेकर राष्ट्रपति के पास जाएं। हालांकि रे ने इस बात को मानने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि वे एक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री हैं, प्रधानमंत्री नहीं। हालांकि रे इंदिरा गांधी के साथ राष्ट्रपति से मिलने गए थे। इंदिरा गांधी 5.30 बजे राष्टपति भवन पहुंची।

फखरूद्दीन अली अहमद इंदिरा के मुताबिक उनके वफादार साबित हुए। इंदिरा ने फखरूद्दीन का नाम बतौर राष्ट्रपति पद के लिए सिफारिश की थी। इंदिरा और रे ने कुछ देर राष्ट्रपति को इमरजेंसी की जरूरत को और अनुच्छेद 352 के बार में समझाया। राष्ट्रपति ने जब पूछा कि क्या कैबिनेट से इस बारे में बात की गई है तो इंदिरा ने कहा कि ये मामला अति आवश्यक था और कैबिनेट बाद में इस पर सहमति दे सकता है। कुछ और सवाल पूछने के बाद राष्ट्रपति ने इंदिरा से कहा कि वे इमरजेंसी ऑर्डर भेज दें।

इसके बाद इंदिरा और रे दोनों प्रधानमंत्री आवास पर वापस आ गए। रे ने इमरजेंसी ऑर्डर के बारे में पीएन धर को बताया जिन्होंने पूरा इमरजेंसी ऑर्डर को टाइप करवाया और उसे राष्ट्रपति के पास साइन करने के लिए भेजा गया। इमरजेंसी लेटर के साथ 'राष्ट्रपति के नाम इंदिरा गांधी का पत्र' भी भेजा गया था।

इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति को भेजे अपने पत्र में लिखा कि देश में सुरक्षा माहौल बनाए रखने के लिए अपातकाल लगाना बेहद जरूरी है। उन्होंने लिखा कि वे इस मामले को लेकर कैबिनेट से जरूर डिस्कस करतीं लेकिन इतनी रात को ये संभव नहीं है। सुबह कैबिनेट की बैठक में सबसे पहले इसी विषय पर बात होगी।

हालांकि बाद में इंदिरा ने ये तर्क दिया था कि कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए वो कैबिनेट की राय नहीं ली। उन्होंने कहा कि वे ये निर्णय बेहद गोपनीय रखना चाहती थीं और इसे लेकर विपक्ष को चौंकाना चाहती थीं। उस रात सिद्धार्थ शंकर रे प्रधानमंत्री आवास पर ही रुके थे। उन्होंने रात में ही इंदिरा गांधी की वो स्पीच तैयार करवाई थी जो कि सुबह उन्होंने देश के नाम संबोधित किया था। वहीं दूसरी तरफ संजय गांधी और ओम मेहता उन नेताओं की सूची तैयार कर रहे थे जिन्हें सुबह गिरफ्तार किया जाना था। इन सभी नेताओं को सुबह मीसा(मेंनटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) के तहत गिरफ्तार किया जाना था।

यह भी देखें... ओडिशा में 12 जुलाई से 8 अगस्त तक चलेगा विधानसभा का मानसून सत्र

खास बात ये है कि ये लिस्ट इमरजेंसी लागू करने के फैसले से पहले ही तैयार की जा रही थी। संजय गांधी ने 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के बाद ही ये तैयारी करनी शुरू कर दी थी जिसमें इंदिरा गांधी के खिलाफ निर्णय आया था। विपक्ष उस समय इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने की मांग कर रहा था। देर रात तक देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई। इंदिरा गांधी सोने चली गईं और पुलिस देश के कोने-कोने में विपक्ष के नेताओं और प्रदर्शनकारियों को जगाकर उन्हें गिरफ्तार करना शुरू कर दी। जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और राज नारायण जैसे लोगों को उसी रात गिरफ्तार किया गया।

उसी रात दिल्ली के अखबारों के प्रिट्रिंग प्रेस की लाइने काट दी गईं। अगले दिन सुबह में सिर्फ स्टेट्समैन और हिंदुस्तान टाइम्स अखबार ही बाजारों में दिखाई दे रहे थे क्योंकि इन अखबारों के प्रिंटिंग प्रेस में बिजली नई दिल्ली से आती थी, दिल्ली नगरनिगम से नहीं।



\
Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

Next Story