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टूट गई 50 साल पुरानी परंपरा, श्मशान में नहीं जला एक भी शव, फिर हुआ कुछ ऐसा

लॉकडाउन के बीच गया में 50 साल पुरानी परंपरा टूट गई है। दरअसल, गया में श्मशान घाट पर बीते 24 घंटे में एक भी शव जलने के लिए नहीं पहुंचा है। इसी के चलते गया में चली आ रही सालों पुरानी परंपरा टूट गई।

Shreya
Published on: 21 May 2020 11:04 AM IST
टूट गई 50 साल पुरानी परंपरा, श्मशान में नहीं जला एक भी शव, फिर हुआ कुछ ऐसा
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गया: देश भर में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लागू है। लॉकडाउन के दौरान कई तरह की सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। अब लॉकडाउन के बीच गया में 50 साल पुरानी परंपरा टूट गई है। दरअसल, गया में श्मशान घाट पर बीते 24 घंटे में एक भी शव जलने के लिए नहीं पहुंचा है। इसी के चलते गया में चली आ रही सालों पुरानी परंपरा टूट गई।

क्या है यहां की मान्यता?

दरअसल, देश की सनातन परंपरा में गया मोक्षदायिनी नगरी के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी वजह है, यहां पर होने वाला धार्मिक कर्मकांड है। गयाजी में वर्षों से एक परपंरा रही है कि यहां पर हर दिन एक पिंड और एक मुंड देना आवश्यक होता है। माना जाता है कि ऐसा ना करने पर कुछ बुरा घटित होने की आशंका बढ़ जाती है।

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पहली बार इतिहास में एक भी शव नहीं जला

विष्णुपद के पंडा समाज और श्मशान घाट पर शव को जलाने वाले डोमराजा के मुताबिक, सालों से इस तरह की मान्यता चली आ रही है। लेकिन इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि बीते 24 घंटे में श्मशान घाट पर एक भी शव जलने के लिए नहीं पहुंचा। किसी भी तरह की अनहोनी को टालने के लिए और परंपरा को जीवित रखने के लिए पंडा समाज के एक सदस्य और डोम राजा ने एक पुतले का विधि-विधान के साथ शवदाह किया।

लॉकडाउन की वजह से आई कमी

कोरोना के चलते लॉकडाउन में वाहनों के ना चलने के कारण लोग जिले के दूर - दूर से गया के विष्णु मसान घाट पर शवों के अंतिम संस्कार के लिए नहीं पहुंच पा रहे हैं। इसी वजह से गया के श्मशान घाट पर पहुंचने वाले शवों की संख्या काफी कम हो गई है।

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बुधवार को नहीं जला एक भी शव, फिर...

डोमराजा हीराराम और स्थानीय दुकानदार ने बताया कि बुधवार को इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि विष्णु मसान श्मशान घाट पर एक भी शव नहीं जली है। जबकि लोग यहां सुबह से देर शाम तक इसका इंतजार करते रहे। उसके बाद परंपरा के मुताबिक, पंडे के साथ मिलकर पुतला बनाया गया और उसका पूरे विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

राक्षस के नाम पर रखा गया नाम

स्थानीय लोगों के मुताबिक, गया का नाम एक गयासुर नाम के राक्षस के नाम पर रखा गया है। यहां के श्मशान घाट में गयासुर को खुश करने के लिए रोजाना एक पिंड और एक मुंड दिया जाया है। मान्यता है कि जिस दिन एक पिंड या एक मुंड नहीं गया तो बहुत बड़ी अनहोनी हो सकती है।

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प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक...

प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक, गयासुर राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं जैसा हो जाए और उसके दर्शन से लोग पाप से मुक्ति पाएं। लेकिन इस वरदान के बाद स्वर्ग में पापियों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ने लगी। जिसके देखते हुए देवताओं ने एक यज्ञ किया। इसके लिए देवताओं ने गयासुर से एक पवित्र जगह मांगी।

जिसके बाद गयासुर ने अपना शरीर यज्ञ के लिए अर्पित कर दिया। जब गयासुर जमीन पर लेटा तो उसका पूरा शरीर पांच कोस में फैल गया। गयासुर ने देवताओं से वरदान मांगा था कि इस जगह पर उसे एक पिंड और एक मुंड हर दिन दिया जाए।

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