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कृषि बिल ने डाला आग में घी, अकाली दल की नाराजगी के और भी कारण

। भाजपा के सबसे विश्वसनीय सहयोगी माने जाने वाले अकाली दल के इस फैसले पर लोगों को हैरानी भले हुई हो मगर सच्चाई यह है कि अकाली दल केंद्र सरकार में अपनी उपेक्षा से काफी दिनों से नाराज चल रहा था।

Shivani
Published on: 28 Sep 2020 5:34 AM GMT
कृषि बिल ने डाला आग में घी, अकाली दल की नाराजगी के और भी कारण
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। कृषि बिल पर विरोध जताते हुए अकाली दल ने मोदी कैबिनेट छोड़ने के साथ ही एनडीए छोड़ने का बड़ा फैसला कर लिया। भाजपा के सबसे विश्वसनीय सहयोगी माने जाने वाले अकाली दल के इस फैसले पर लोगों को हैरानी भले हुई हो मगर सच्चाई यह है कि अकाली दल केंद्र सरकार में अपनी उपेक्षा से काफी दिनों से नाराज चल रहा था। किसानों के मुद्दे पर उसे खुलकर अपनी बात रखने का मौका मिला और फिर पार्टी ने एनडीए छोड़ने का बड़ा फैसला कर लिया।

कभी नहीं ली गई बादल की सलाह

जानकार सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ समय के राजनीतिक घटनाक्रम को देखा जाए तो कई मौके ऐसे आए जब अकाली दल को भाजपा की ओर से अपेक्षित प्रतिक्रिया नहीं मिली। इस कारण पार्टी की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही थी और आखिरकार उसने किसानों के मुद्दे पर बड़ा फैसला ले लिया।

अकाली दल का कहना है कि देश में किसानों के सबसे बड़े नेता प्रकाश सिंह बादल हैं, लेकिन किसानों के मुद्दे पर कभी सरकार की ओर से उनकी सलाह नहीं ली गई।

पंजाबी नहीं बनी आधिकारिक भाषा

पार्टी की नाराजगी का एक बड़ा कारण कश्मीर में पंजाबी भाषा को आधिकारिक भाषा न बनाने का भी था। पिछले महीने केंद्र सरकार ने कश्मीरी, डोगरी तथा हिंदी को कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं में शामिल किया। अकाली दल की ओर से केंद्र सरकार के सामने दलील दी गई थी कि कश्मीर में पंजाबी बोलने वाले काफी लोग हैं तथा यह राज्य की पुरानी भाषा है।

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बादल की ओर से इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को चिट्ठी भी लिखी गई थी मगर अकाली दल की यह मांग नहीं पूरी की गई। कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं में पंजाबी को शामिल नहीं किया गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता नरेश गुजराल का कहना है कि यह सहयोगी दल की बहुत छोटी और तर्कसंगत मांग थी, लेकिन इसे भी सरकार की ओर से मंजूरी नहीं मिली।

विरोध के बावजूद विधेयक पारित

पिछले साल मानसून सत्र के दौरान अकाली दल ने अंतर राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक का विरोध किया था। अकाली दल के विरोध की अनदेखी करते हुए इस विधेयक लोकसभा से पारित करा लिया गया। इस विधेयक में जल विवादों का तय समय के भीतर निपटारे का प्रावधान का किया गया है।

BJP-Akali Dal

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अकाली दल की दलील थी कि इस विधेयक के पारित होने से पंजाब के हिस्से का पानी अन्य राज्यों को जा सकता है। हालांकि दूसरे कारणों के कारण यह विधेयक अभी राज्यसभा से पारित नहीं हुआ है मगर लोकसभा में इसे पारित कराने से भी अकाली दल नाराज था।

अकाली दल का विधायक भाजपा में शामिल

हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान अकाली दल का एक प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब हुआ था। पिछले दिनों अकाली दल के इस विधायक को भाजपा में शामिल कर लिया गया।

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शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा के इस फैसले पर नाराजगी जताई थी और इसे गठबंधन धर्म का उल्लंघन बताया था। अकाली दल का कहना था कि जब वह भाजपा का सहयोगी दल है तो उसके विधायक को इस तरह तोड़ना उचित नहीं है।

Akali Dal

सीटों के बंटवारे पर हुआ था विवाद

लोकसभा चुनाव के दौरान भी अकाली दल और भाजपा के बीच सीटों को लेकर विवाद पैदा हुआ था। अकाली दल की ओर से भाजपा के सामने प्रस्ताव रखा गया था कि भाजपा लुधियाना और जालंधर लोकसभा सीट ले ले और उसके बदले में अमृतसर और होशियारपुर सीट अकाली दल को दे दे मगर भाजपा इसके लिए तैयार नहीं हुई। भाजपा की ओर से इस प्रस्ताव को मानने से साफ इनकार कर दिया गया।

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एनडीए की बैठक अहम मुद्दों पर चर्चा नहीं

हाल के दिनों में एनडीए की कोई बैठक आयोजित न किए जाने से भी अकाली दल नाराज था। पार्टी के नेताओं की शिकायत है कि अहम मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एनडीए की कोई बैठक नहीं आयोजित की जाती। सिर्फ कोरम पूरा करने के लिए संसद सत्र से पहले या सत्र के दौरान एनडीए की बैठक आयोजित की जाती है, लेकिन उसमें भी अहम मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं की जाती।

BJP-Akali Dal

जानकारों का कहना है कि अकाली दल की काफी दिनों से भाजपा से नाराजगी चल रही थी किसानों से जुड़े विधायक ने आग में घी डालने का काम किया और इसी कारण अकाली दल ने एनडीए से अलग होने का बड़ा फैसला कर डाला।

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