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लॉकडाउन में सारे मुद्दों पर लगा लॉक, चर्चा से हुए ये गायब बचा सिर्फ एक

शाहीनबाग और देश के विभिन्न स्थानों पर चल रहे धरने से भी माहौल पूरी तरह गरमाया हुआ था और सोशल मीडिया पर ये धरने सबके बीच चर्चा का विषय बने हुए थे। लेकिन कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने इन सारे मुद्दों को पूरी तरह लॉक कर दिया है।

राम केवी
Published on: 27 March 2020 9:44 AM GMT
लॉकडाउन में सारे मुद्दों पर लगा लॉक, चर्चा से हुए ये गायब बचा सिर्फ एक
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। कोरोना वायरस के कहर के सामने बड़े-बड़े सियासी मुद्दे भी ठंडे हो गए हैं। इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए 21 दिनों के लॉकडाउन ने देश को गरमाने वाले बड़े-बड़े राजनीतिक मुद्दों पर भी लॉक लगा दिया है। हाल के दिनों में देश की सियासत में जिन बड़े मुद्दों की चर्चाएं हो रही थीं वे मुद्दे अब चर्चा से पूरी तरह गायब हो गए हैं। हालत यह हो गई है कि इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाकर राजनीतिक पारा गरम करने वाली पार्टियों की सियासी जुबान पर भी ताला लग गया है।

अभी कुछ दिनों पहले ही देश की सियासत में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी की चर्चा जोर-शोर से हो रही थी। एनपीआर को लेकर खड़ा हुआ विवाद भी मीडिया में सुर्खियां बना हुआ था। मध्यप्रदेश में हार्स ट्रेडिंग की चर्चाएं भी काफी जोर-शोर से हो रही थीं और इसे लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा था। शाहीनबाग और देश के विभिन्न स्थानों पर चल रहे धरने से भी माहौल पूरी तरह गरमाया हुआ था और सोशल मीडिया पर ये धरने सबके बीच चर्चा का विषय बने हुए थे। लेकिन कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने इन सारे मुद्दों को पूरी तरह लॉक कर दिया है।

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ऐसा सियासी ब्रेक तो कभी नहीं लगा

सियासत के पुराने जानकारों का कहना है कि देश के सियासी इतिहास में ऐसा गंभीर ब्रेक तो शायद कभी नहीं लगा था। यहां तक कि इमरजेंसी के दौर में भी। उस समय विपक्षी नेताओं को जेल की सीखचों के पीछे भेज दिया गया था, लेकिन तब भी विपक्षी पार्टियों के कई नेता गुपचुप अपनी गतिविधियों में जुटे रहते थे। पुराने सियासी जानकारों को भी वह दौर नहीं याद आ रहा है जब सियासत की मुख्य धुरी बने मुद्दे इस तरह नेपथ्य में चले गए हों।

सीएए और एनआरसी का मुद्दा नेपथ्य में

कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल पिछले कई महीनों से नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी व एनपीआर को लेकर मोदी सरकार से बड़ी सियासी जंग लड़ रहे थे मगर कोरोना वायरस के संकट से पैदा हुई स्थितियों के कारण ये सब मुद्दे चर्चा से पूरी तरह बाहर हो गए हैं। इस वायरस के संक्रमण के कारण ही मोदी सरकार ने एनपीआर को अनिश्चितकाल के लिए खुद ही स्थगित कर दिया है।

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बिना बवाल के खत्म हुआ शाहीनबाग का धरना

इस बाबत सबसे बड़ा उदाहरण तो शाहीनबाग का दिया जा सकता है। दिल्ली में दंगा भड़कने के बाद पुलिस ने काफी कड़ी कार्रवाई की थी, लेकिन उन दिनों में भी पुलिस ने शाहीनबाग के धरने को खत्म कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के बाद पुलिस ने आसानी से यहां धरने पर बैठे लोगों को हटाने में कामयाबी हासिल कर ली। यह कोरोना के कहर का ही नतीजा था कि पुलिस को ज्यादा विरोध का भी सामना नहीं करना पड़ा। इस धरने को हटाने के विरोध में छिटपुट स्वर ही सुनाई दिए।

खरीद फरोख्त के आरोपों पर लगा विराम

राज्यसभा चुनाव के कारण पिछले कुछ दिनों से देश के कई राज्यों में सियासी जोड़-तोड़ का दौर चल रहा था। इसे लेकर भाजपा और कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप के दौर चल रहे थे। कांग्रेस भाजपा पर विधायकों को तोड़ने के लिए खरीद-फरोख्त का आरोप लगा रही थी मगर यह मुद्दा भी पूरी तरह दब गया है और अब मीडिया में यह कहीं भी चर्चा का विषय नहीं है। हालांकि चुनाव आयोग ने कोरोना के कारण पैदा हुए संकट की वजह से राज्यसभा चुनाव स्थगित करने की घोषणा कर दी है।

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मध्य प्रदेश का मामला भी बड़ा ठंडा

मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत के बाद यह मुद्दा काफी गरमाया हुआ था। कमलनाथ की सरकार को लेकर राज्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच में सियासी जंग चल रही थी। कोरोना संकट के बीच ही कमलनाथ की सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान की फिर मध्यप्रदेश में ताजपोशी भी हो गई। सिंधिया के साथ इस्तीफा देने वाले 22 विधायकों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है, लेकिन अब यह मुद्दा भी लोगों के बीच चर्चा का विषय नहीं है।

संसद का सत्र भी हुआ स्थगित

कोरोना संकट के कारण देश की सियासी गतिविधियों पर भी पूरी तरह विराम लग गया है। सांसदों के कोरोना की चपेट में आ जाने की आशंकाओं के बीच संसद का सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया जा चुका है। विभिन्न राजनीतिक दलों का सदस्यता अभियान भी पूरी तरीके से ठप पड़ा है। कुल मिलाकर कोरोना से पैदा हुए संकट ने सियासी गतिविधियों को पूरी तरह लॉकडाउन कर दिया है।

राम केवी

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