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पंजाब में राम सिंह के नाम से रहता है ये दुर्दांत डकैत, बेची थी कोठी

माधो सिंह के बारे में कहा जाता था कि पुलिस को जो हथियार 1971 के बाद मिले वो पहले से ही माधो सिंह के पास थे। 13 मार्च 1971 की इस मुठभेड़ में पुलिस ने माधो सिंह के गैंग के सबसे भरोसे के आदमी कल्याण उर्फ कल्ला, गर सिंह , चिंतामण, बाबू, और विशंबर सिंह जैसे 13 डकैतों को ठिकाने लगा दिया। यह अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ थी।

Rahul Joy
Published on: 16 Jun 2020 11:17 AM GMT
पंजाब में राम सिंह के नाम से रहता है ये दुर्दांत डकैत, बेची थी कोठी
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अमृतसर: तीन राज्‍यों की सरहद से लगा चंबल का पानी और बीहड़ डाकुओं के इतिहास से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि डाकुओं के किस्‍से कहीं से शुरू हों पर आकर चंबल से जुड़ जाते हैं। इन्‍हीं चंबल के बीहड़ों में एक ऐसा डाकू होता था जिसकी कहानी पांच दशक बाद भी लोगों के जेहन में आज भी ताजा है।

यह कोई और नहीं बल्‍की डाकू माधो सिंह था। जिसके आतंक से उत्‍तर प्रदेश, मध्‍य प्रदेश और राजस्‍थान की पुलिस कांपती थी। माधो सिंह के बारे में कहा जाता है कि यह एक ऐसा डाकू था जिसकी उंगलियां एसएलआर या राईफल पर जितनी तेजी से चलती थी उससे भी तेज चलता था उसका दिमाग।

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राम सिंह के नाम से 1973 तक अमृतसर में रहा माधो सिंह

क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम क्‍वींस रोड अमृतसर के सेक्रेटरी राम सूरत यादव कहते हैं डाकू माधो सिंह 1973 तक अमृतसर में राम सिंह के नाम रहता था। उनके अनुसार यहां के लोगों यह पता नहीं था कि लोग जिसे राम सिंह के नाम से जानते हैं । दर असल वह चंबल का दुर्दांत डाकू माधो सिंह है। वे कहते हैं कि माधो सिंह की कोठी आज भी है।

इस कोठी में वह अपनी पत्‍नी राम कटोरी देवी के साथ रहता था। माधो सिंह के समपर्ण करने के बाद लोगों को पता चला कि उन लोगों के बीच रहने वाला व्‍यक्ति राम सिंह नहीं बल्कि उत्‍तर प्रदेश के आगरा का रहने वाला डाकू माधो सिंह था। हलांकि रामसूरत कहते हैं कि यह पक्‍के तौर पर नहीं कहा जता सकता कि यह कोठी डाकू माधो सिंह की ही थी। क्‍यों कि यह इससे पहले दो हाथों में बिक चुकी थी।

1974 में गांधी आश्रम ने खरीदी कोठी

गांधी आश्रम के सेवानिवृत्‍त ऑडिटर त्रिभुवन प्रसाद आचार्य कहते हैं कि अमृतसर के वेरका में स्थित माधो सिंह की कोठी को गांधी आश्रम में 1973-74 में खरीदा था। वे कहते हैं माधो सिंह के आत्‍म सर्मपण के बाद जय प्रकाश नारायण ने श्री गांधी आश्रम लखनऊ के तत्‍कालीन जनरल सेक्रेटरी विचित्र नारायण शर्मा को पत्र लिखे थे। इसमें उन्‍होंने लिखा था कि माधो सिंह ने मध्‍य प्रदेश पुलिस को आत्‍मसमपर्ण कर दिया है। इस लिए उसकी पत्‍नी रामकटोरी देवी अपनी कोठी बेचना चाहती हैं।

इस पर गांधी आश्रम अमृतसर के तत्‍कालीन सेक्रेटरी महेश चंद्र तिवारी ने वेरका स्थित माधो सिंह की कोठी को 20 हजार रुपये में खरीदा था। आचार्या कहते हैं कि कोठी बिकने बाद कुछ साल तक माधो सिंह की पत्‍नी राम कटोरी देवी अपनी बेटी के साथ गांधी आश्रम में ही रहीं। इसके बाद वह कहां चली गईं किसी को कुछ पता नहीं।

राजपूताना राईफल्‍स की मेडिकल कोर में कंपाउंडर थे

टीपी आर्चाय के मुताबिक 11साल के बीहड़ों के जीवन में दर्ज सैकड़ों मुकदमें माधो सिंह और उसके गैंग पर दर्ज हुए। पुलिस मुठभेड़ों से बार-बार बच निकलने वाले माधो सिंह ने जब समर्पण किया तो अकेले नहीं 550 बागियों ने उसके साथ बंदूकें रख दी थीं। माधो सिंह किसान परिवार में पैदा हुआ। माधो सिंह के परिवार के पास थोड़ी बहुत खेती की जमीन थी।

कहते हैं बचपन से ही माधो सिंह को कोई बड़ा काम करने की धुन थी। स्‍कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद माधो सिंह राजपूताना राईफल्स की मेडिकल कोर में भर्ती हो गया। लेकिन गांव में हुई दुश्‍मनी ने उसे बागी बना दिया। समय बीतने के साथ ही चंबल में माधो सिंह का सिक्का चलने लगा। डाकू माधो सिंह के आतंक से परेशान तीन राज्‍यों की पुलिस ने उसे जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए उस जमाने में डेढ़ लाख का ईनाम रखा था।

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मुठभेड़ में मारे गए थे माधो सिंह के 13 साथी

गांधी आश्रम के पूर्व ऑडिटर टीपी आचार्य कहते हैं कि माधो सिंह के बारे में कहा जाता था कि पुलिस को जो हथियार 1971 के बाद मिले वो पहले से ही माधो सिंह के पास थे। 13 मार्च 1971 की इस मुठभेड़ में पुलिस ने माधो सिंह के गैंग के सबसे भरोसे के आदमी कल्याण उर्फ कल्ला, गर सिंह , चिंतामण, बाबू, और विशंबर सिंह जैसे 13 डकैतों को ठिकाने लगा दिया। यह अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ थी।

आत्‍मसमर्पण से पहले संत विनोबा भावे से मिला था माधो सिंह

गांधी आश्रम अमृतसर के पूर्व कैशियर रामकुंवर चौहान और टीपी आचार्य कहते हैं कि माधों सिह की पत्‍नी रामकटोरी देवी के कहे अनुसार माधो सिंह को याद था कि संत विनोबा भावे चंबल में डाकुओं को समर्पण करा चुके थे। मानसिंह के गैंग के लोकमन दीक्षित सहित कई अन्‍य डामुओं ने विनोबा जी के सामने हथियार डाले थे और वो अपनी सामान्य जिंदगी जी रहे थे। यही देख कर एक दिन संत विनोबा भावे के सामने राम सिंह बन कर माधो सिंह पहुंचा और कहा कि चंबल के खूंखार डाकू बंदूकें रखना चाहते है। बिनोबा जी ने कहा कि मै तो जा नहीं आपउंगा, पर एक खत जे पी (जय प्रकाश नारायण ) को लिख देता हूं वह चाहे तो वो वहां जासकते है।

जब माधो सिंह का नाम सुनकर चौंक गए थे जपी

राम कुंवर चौहान ने बताया कि रामसिंह बना माधो सिंह बिनोबा जी का खत लेकर जय प्रकाश नारायण के पास पटना जा पहुंचा। यहां जेपी ने जब पूछा कि आप कौन हैं और आपका डाकुओं के क्या रिश्ता है। माधो सिंह ने बताया कि वही कुख्यात डाकू माधों सिंह है। यह सुनते ही जयप्रकाश नारायण चौक पड़े थे। जे पी इस पर तैयार हो गए। लेकिन शर्त रख दी कि ज्यादा से ज्यादा समर्पण हो सिर्फ माधौं सिंह का गैंग नहीं। इस नामुमकिन से काम को भी माधौं सिंह ने अपने हाथ में ले लिया।

डाकू मोहर सिंह के साथ मुरैना में किया समर्पण

गांध आश्रम के ही सेवा निवृत्‍त आडिटर विश्‍वभंर राम कहते हैं कि डाकू माधो सिंह ने मध्‍य प्रदेश मुरैना में पगारा डैम पर समर्पण किया। माधो सिंह के साथ डाकू मोहर सिंह सहित 550 डाकुओं ने हथियार डाले थे। डाकुओं के लिए शर्तों मनवाने के बाद माधो सिंह ने डाकुओं के शिकार लोगो के लिए भी मुआवजे और मदद की मांग की थी जिसने उसके खिलाफ ज्यादातर लोगों की नफरत खत्म हो गई।

माधौं सिंह को जेल हुई और उसने मुंगावली खुली जेल में अपनी सजा काटी। सजा पूरी होने के बाद वह लोगों को जादूगरी का खेल दिखाने लगा था। 1991 में माधों सिंह की मौत हो गई।

रिपोर्टर- दुर्गेश पार्थ सारथी, अमृतसर

पंजाब में राम सिंह के नाम से रहता है ये दुर्दांत डकैत, बेची थी कोठी

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