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जब नेता विपक्ष रहते हुए अरुण जेटली ने मनमोहन सरकार को संकट से उबारा था

चह्वाण कहते हैं कि अरुण जेटली बेहतर कानूनी समझ वाले नेता थे, उनकी विधायी कानून की जानकारी शानदार थी जिसके सभी लोग कायल थे। और जेटली का विराट कद उस समय सामने आया जब उन्होंने पार्टी लाइन से परे हटकर राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार के लिए परमाणु बिल मसौदे को बेहतर रूप देने में जरा भी गुरेज नहीं किया।

SK Gautam
Published on: 25 Aug 2019 12:02 PM GMT
जब नेता विपक्ष रहते हुए अरुण जेटली ने मनमोहन सरकार को संकट से उबारा था
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लखनऊ : अरुण जेटली आज हमारे बीच नहीं हैं। सिर्फ और सिर्फ उनकी यादें शेष हैं। अरुण जेटली राजनीति के मैदान के माहिर खिलाड़ी तो थे ही साथ ही बेहतर कानूनी समझ वाले नेता भी थे, जेटली की विधायी कानून की जानकारी शानदार थी। और जेटली की इस समझ के सभी दल कायल थे।

इस बात को भी सभी जानते थे कि जेटली के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है। तभी तो एक समय ऐसा आया जब मनमोहन सिंह की सरकार थी और परमाणु विधेयक पर मदद की जरूरत पड़ी तो जेटली पीछे नहीं हटे।

अरुण जेटली बेहतर कानूनी समझ वाले नेता थे: चह्वाण

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महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने वरिष्ठ बीजेपी नेता अरुण जेटली को याद करते हुए बताया कि उन्होंने अपनी पार्टी के सख्त रुख से खुद को दूर रखते हुए राष्ट्रीय हित में मनमोहन सरकार की मदद की थी।

चह्वाण कहते हैं कि अरुण जेटली बेहतर कानूनी समझ वाले नेता थे, उनकी विधायी कानून की जानकारी शानदार थी जिसके सभी लोग कायल थे। और जेटली का विराट कद उस समय सामने आया जब उन्होंने पार्टी लाइन से परे हटकर राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार के लिए परमाणु बिल मसौदे को बेहतर रूप देने में जरा भी गुरेज नहीं किया।

पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं कि ये बात तब की है जब तत्कालीन यूपीए सरकार भारत-अमेरिका परमाणु करार के तहत न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल को मंजूरी दिलाने के लिए जूझ रही थी।

राष्ट्रीय हित में सरकार की मदद के लिए अपनी पार्टी में कुछ लोगों द्वारा कड़े रुख से खुद को दूर रखा

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण उन दिनों पीएमओ में राज्यमंत्री के रूप में इस परमाणु विधेयक का जिम्मा संभाल रहे थे। उन्होंने अरुण जेटली को याद करते हुए बताया कि जेटली ने विपक्ष में होते हुए भी राष्ट्रीय हित में सरकार की मदद के लिए इस मुद्दे पर अपनी पार्टी में कुछ लोगों द्वारा कड़े रुख से खुद को दूर रखा।

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द संडे एक्सप्रेस ने चव्हाण के हवाले से बताया, 'जब सरकार परमाणु दायित्व विधेयक को संसद से पास कराने के लिए जूझ रही थी। उस वक्त वामपंथी पार्टियां इस बिल के खिलाफ थीं। ऐसे में सरकार के पास इस विधेयक को पास कराने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं थी। मैंने भाजपा से संपर्क किया।

मैं अरुण जेटली के पास गया और उनसे कहा कि ये देश के लिए महत्वपूर्ण है। हमने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। उन्होंने मसौदे को देखा और इसे सभी पार्टियों को स्वीकार्य बनाने के लिए कुछ बदलाव किए। हमने विधेयक को संशोधित किया। भाजपा ने इसका समर्थन कर दिया। बिल पास हो गया।

जेटली ने 91वां संविधान संशोधन विधेयक पारित किया था, जिसने दलबदल विरोधी कानून को बदलने का मार्ग प्रशस्त किया

सरकार की ओर से कलाउज 17 (बी) से परमाणु क्षति और ऐसे कार्य करने के इरादे से किए गए शब्दों को हटाने के बाद विधेयक पारित किया गया था। चव्हाण ने यह भी बताया कि जेटली ने 91वां संविधान संशोधन विधेयक पारित किया था। जिसने वर्ष 2003 में दलबदल विरोधी कानून को बदलने का मार्ग प्रशस्त किया। 91वां संशोधन राजनीतिक दलों को बदलने वाले नेताओं के लिए अनिवार्य बनाता है।

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2011 में लोकपाल बिल पर चल रहे आंदोलन के दौरान जेटली ने विपक्ष का नेतृत्व किया

चव्हाण ने कहा, 'यह एक छोटा संशोधन था, लेकिन इसका एक बड़ा प्रभाव था। ये गोवा और कर्नाटक में हालिया राजनीतिक स्थितियों में लागू हुआ, जहां दोषी विधायक तुरंत सरकार में शामिल नहीं हो सकते थे।

सरकार लोकपाल को मारना चाहती है, जबकि ये अभी भी गर्भ में है: जेटली

2011 में लोकपाल बिल पर चल रहे आंदोलन के दौरान जेटली ने विपक्ष का नेतृत्व किया। उन्होंने विधेयक के बारे में कहा था, 'सरकार लोकपाल को मारना चाहती है, जबकि ये अभी भी गर्भ में है।

राज्यसभा ने जेटली और अभिषेक सिंघवी के बीच संवैधानिक वैधता और प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के निहितार्थ को लेकर एक जोरदार बहस देखी गई। विपक्ष के नेता होने के बावजूद जेटली को 2010 में सर्वश्रेष्ठ सांसद चुना गया था। वो समिति के सदस्य बनें और सरकार ने जन लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने में मदद की।

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