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इस गांव के हर छोरे है बाउंसर, फिटनेस में बड़े-बड़ों को देते हैं मात

जो मांसाहारी हैं, उनके लिए भी अलग डाइट प्लान है। उनके डाइट में एक 3 किलो का उबला चिकन, 10 अंडे की जर्दी (पीला वाला हिस्सा), दर्जन भर केले और दिन में कम से कम 10 लीटर दूध शामिल है।

Aditya Mishra
Published on: 29 Aug 2019 9:36 AM GMT
इस गांव के हर छोरे है बाउंसर, फिटनेस में बड़े-बड़ों को देते हैं मात
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लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ‘फिट इंडिया मूवमेंट’ की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि आज देश की जरूरत है कि फिट इंडिया को जन आंदोलन बनाया जाए।

स्पोर्ट्स में आज कई युवा खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रहे हैं। इस मूवमेंट के जरिये उनका भी हौसला बढ़ेगा। इस ख़ास मौके पर आज हम आपको दिल्ली के पास स्थित दो गांवों के बारे में बता रहे है।

जहां के लोग देश भर में अपनी फिटनेस को लेकर जाने जाते हैं और यहां के लड़के नामी गिरामी कम्पनियों और बिजनेस फ़र्मों में बाउंसर्स के तौर पर काम रहे है। तो आइये जानते है कैसे इस गांव में बाउंसर्स बनने की परम्परा की शुरुआत हुई?

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डाइट में लेते है 3 किलो चिकन और 10 लीटर दूध

दिल्ली के पास स्थित असोला और फतेहपुर बेरी नाम के गांव के बारे में, जहां का हर दूसरा लड़का पहलवान बनता है। गांव में कुश्ती से पहलवान के तौर पर करियर की शुरूआत करने वाले ये लड़के बाद में होटलों और पब में बाउंसर्स का काम करते हैं।

इन लड़कों की वजह से यह गांव बाउंसर्स के गांव के रूप में मशहूर हो गया है। यहां के कई-कई बाउंसर्स की डाइट 3KG चिकन और 10 लीटर दूध है।

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ट्रेनिंग के दौरान शराब-सिगरेट पर पाबंदी

गांव में पहलवानी और बॉडी बिल्डिंग की ट्रेनिंग के दौरान इन लड़कों की डाइट पर खास ध्यान दिया जाता है। लड़कों को बीड़ी-सिगरेट और शराब पीने पर पाबंदी रहती है।

हर बाउंसर रोज अपने खाने पर करीब 300 रु. खर्च करता है। डाइट में एक बाउंसर को कम से कम 3 से 4 लीटर दूध पीना होता है।

दर्जन भर केले और करीबन आधा किलो फल। लंच में 1.5 से 2 किलो दही, वो भी 3-4 फ्लैटब्रेड के साथ। शाम को, फ्लैटब्रेड के 2 पीस और एक से 1.5 किलोग्राम बादाम मिला दूध पीना होता है।

जो मांसाहारी हैं, उनके लिए भी अलग डाइट प्लान है। उनके डाइट में एक 3 किलो का उबला चिकन, 10 अंडे की जर्दी (पीला वाला हिस्सा), दर्जन भर केले और दिन में कम से कम 10 लीटर दूध शामिल है।

गुर्जरों का गांव, ऐसे शुरू हुई बाउंसर्स की परंपरा

यह दोनों गांव गुर्जर बहुल हैं। असोला में धीरे-धीरे हर घर में एक बाउंसर हो गया है। यह कहना मुश्किल है कि इन गांवों तक बाउंसर्स की परंपरा कैसे शुरू हुई।

लेकिन यहां के एक पहलवान विजय बताते हैं , '15 साल पहले मैं एक सुबह नजदीक के आखरा गांव में अपने अखाड़े में कसरत कर रहा था।

तभी वहां एक पब मालिक ने उनसे कॉन्टैक्ट किया और मेरी तरह के 5 लड़के 10 हजार में उपलब्ध कराने की बात की, ताकि दिल्ली की एक शादी में बतौर गार्ड रखे जा सकें।

यह रकम उस समय गांव के किसी भी युवक के लिए बहुत ज्यादा थी और इसलिए मैं इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था।" मेरी तरह दूसरे लड़के भी मजबूत कद-काठी के कारण ऐसे मौके पाते गए।

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Aditya Mishra

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