×

Atal Bihari Vajpayee: वाजपेयी साहब तो पाक में भी जीत सकते हैं चुनाव, जानिए नवाज शरीफ ने क्यों दिया था यह बयान

Atal Bihari Vajpayee Birth Centenary: अटल की लाहौर बस यात्रा को भारत और पाक के रिश्ते को मजबूत बनाने की दिशा में बड़ा प्रयास माना गया था। हालांकि पाकिस्तान इसके बाद भी शरारत से बाज नहीं आया और कारगिल युद्ध से दोनों देशों के रिश्ते एक बार फिर तनावपूर्ण हो गए।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 25 Dec 2024 8:23 AM IST (Updated on: 25 Dec 2024 2:33 PM IST)
Atal Bihari Vajpayee
X

Atal Bihari Vajpayee   (photo: social media )

Atal Bihari Vajpayee Birth Centenary: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के उन बिरले राजनीतिज्ञों में रहे हैं जिन्हें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों के नेता पूरा सम्मान दिया करते थे। संसद से लेकर सड़क तक उनके भाषणों का हर कोई दीवाना रहा है। भारतीय जनता पार्टी को मजबूत बनाने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। जनप्रिय नेता वाजपेयी का जन्म 1924 में आज ही के दिन हुआ था और पूरे देश में आज उनकी जन्मशती धूमधाम से मनाई जा रही है। अपने राजनीतिक जीवन के दौरान उन्होंने तीन बार देश के प्रधानमंत्री पद की बागडोर संभाली।

Atal Bihari Vajpayee: जब अटल जी ने कहा था, राजीव गांधी के कारण मैं जिंदा हूं, बताई थी अपनी दोस्ती की कहानी

अपने प्रधानमंत्रित्व काल में वाजपेयी ने लाहौर की बस यात्रा की थी और पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की बड़ी पहल की थी। उस दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे और उन्होंने अटल जी का जोरदार स्वागत किया था। स्वागत करते हुए नवाज शरीफ ने यहां तक कह डाला था कि वाजपेयी साहब,अब तो आप पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं। अटल की लाहौर बस यात्रा को भारत और पाक के रिश्ते को मजबूत बनाने की दिशा में बड़ा प्रयास माना गया था। हालांकि पाकिस्तान इसके बाद भी शरारत से बाज नहीं आया और कारगिल युद्ध से दोनों देशों के रिश्ते एक बार फिर तनावपूर्ण हो गए।

लाहौर की ऐतिहासिक बस यात्रा

प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी ने 1999 में लाहौर की बस यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच रिश्तों के तनाव को खत्म करने के साथ ही शांति स्थापित करने की जोरदार अपील की थी। उनका कहना था कि दोनों देशों को आपसी कटुता भुलाकर शांतिपूर्ण रिश्तों की पहल करनी चाहिए और एक-दूसरे के विकास के लिए कदम आगे बढ़ाना चाहिए।

लाहौर बस यात्रा के दौरान वाजपेयी का काफी गर्मजोशी के साथ स्वागत और अभिनंदन किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी वाजपेयी के मुरीद हो गए थे और उन्होंने यहां तक कह डाला था कि वाजपेयी साहब अब पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं।

इस यात्रा के दौरान वाजपेयी को लेकर पाकिस्तान की जनता ने गजब का उत्साह दिखाया था। हालांकि यह भी सच्चाई है कि वहां के कुछ कट्टरपंथी संगठनों और पार्टियों ने वाजपेयी की लाहौर यात्रा को लेकर प्रदर्शन किया था। अपनी इस यात्रा के दौरान अटल मीनार-ए-पाकिस्तान स्मारक भी गए थे जिसकी स्थापना 1947 में की गई थी।


अटल की पहल के बावजूद पाक की दगाबाजी

वैसे वाजपेयी की ओर से की गई इस पहल के बावजूद पाकिस्तान बाद में दगाबाजी और शरारत से बाज नहीं आया। कुछ समय बाद ही कारगिल युद्ध के जरिए उसने एक बार फिर वाजपेयी की पहल को छिन्न-भिन्न कर दिया और भारत की पीठ में छुरा घोंपने की कोशिश की। दूसरी ओर भारतीय सेना भी देश की सुरक्षा के लिए पूरी मुस्तैद थी। कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देते हुए धूल चटा दी थी।

इस साल अपनी पार्टी की एक बैठक के दौरान नवाज़ शरीफ़ ने वाजपेयी के साथ किए गए वादे को तोड़ने के लिए पाकिस्तान की गलती मानी थी। उनका कहना था कि यह हमारा कसूर था कि हमने उनके साथ वादाखिलाफी की।


तीखे विरोध के बावजूद नेहरू थे मुरीद

एक राजनेता के तौर पर जितनी प्रसिद्धि अटल बिहारी वाजपेयी को मिली, उतनी कम ही लोगों को नसीब होती है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और वाजपेयी में एक बात यह सामान थी कि दोनों अपनी-अपनी पार्टी के पहले ऐसे नेता थे जो देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। जिस समय नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे, उस समय वाजपेयी नेहरू की नीतियों का विरोध करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते थे। खासतौर पर कश्मीर को लेकर नेहरू की नीतियों का वाजपेयी ने जमकर विरोध किया था।

वाजपेयी ने कई मुद्दों पर भले ही नेहरू का तीखा विरोध किया मगर दोनों के संबंधों को यूं समझ जा सकता है कि एक बार पंडित नेहरू ने वाजपेयी के बारे में बड़ी भविष्यवाणी कर दी थी। पंडित नेहरू ने 1957 में ही इस बात का ऐलान कर दिया था कि वाजपेयी एक न एक दिन जरूर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। आखिरकार नेहरू की बात सच साबित हुई और वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुए।


तीन बार संभाली देश की कमान

अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996 में पहली बार देश की सत्ता संभाली थी। हालांकि उस समय बहुमत न होने के कारण वाजपेयी सिर्फ 13 दिनों तक ही प्रधानमंत्री के पद पर रह सके। 1998 में उन्होंने एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री का दायित्व संभाला, लेकिन इस बार भी वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 13 महीने बाद ही उनकी सरकार एक बार फिर गिर गई। उस समय अटल जी की सरकार सिर्फ एक वोट से गिरी थी और अटल चाहते तो सरकार को आसानी से बचाया जा सकता था मगर अटल ने सिद्धांतों से समझौता करने की जगह इस्तीफा देना बेहतर समझा था।

Atal Bihari Vajpayee News: भारत के इतिहास के पहले नेता जिनका था विपक्ष भी कायल

1999 में अटल की अगुवाई में 13 दलों की गठबंधन सरकार ने केंद्र की बागडोर संभाली और इस बार वाजपेयी ने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। वाजपेयी के बारे में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वे पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। इस कार्यकाल के दौरान वाजपेयी ने सहयोगी दलों के साथ बेहतर सामंजस्य बनाए रखा।

अटल ने विवादित मुद्दों से दूर रहते हुए सहयोगी दलों को पूरी मजबूती के संग अपने साथ बांधे रखा। देश की सियासत में वाजपेयी अकेले ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष में भी समान रूप से सम्मान हासिल था। वे जब संसद में बोला करते थे तो सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष के लोग भी पूरे सम्मान के साथ उनकी बातों को सुना करते थे।


सशक्त नेतृत्व से भाजपा को बनाया मजबूत

भारतीय जनता पार्टी को आज देश में सबसे मजबूत राजनीतिक दल माना जाता है मगर भाजपा को इतना सशक्त बनाने में अटल जी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। भाजपा का गठन 1980 में हुआ था मगर 1984 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने सहानुभूति लहर के सहारे 400 से अधिक सीटें जीत ली थी।

इस चुनाव में भाजपा को करारा झटका लगा था और पार्टी सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई थी। उस समय अटल पार्टी के अध्यक्ष थे और इस हार ने उन्हें शर्मसार कर दिया था। वे ग्वालियर से खुद भी पराजित हो गए थे। 1984 की हार के बाद उन्होंने ग्वालियर से कभी चुनाव नहीं लड़ा।

Atal Bihari Vajpayee News: 25 दिसंबर को शुरू हुई थी अटल जी की यह महती योजन, देखें बीते 24 साल में क्या क्या हुआ ?

1991 के चुनाव में उन्होंने मध्य प्रदेश की विदिशा सीट और लखनऊ सीट से किस्मत आजमाई थी और उन्हें दोनों सीटों पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि बाद में उन्होंने विदिशा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद वे लगातार पांच बार लखनऊ संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे।

1984 में दो सीट जीतने वाली भाजपा 1989 के चुनाव में 85 और 1991 के चुनाव में 120 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 161 और 1998 के चुनाव में 182 सीटों पर पहुंच गई।

भाजपा को मजबूत बनाने में अटल और लालकृष्ण आडवाणी की बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। भाजपा के मजबूत होने के बाद कांग्रेस का दायरा लगातार सिमटता जा रहा है। 2014 से देश में भाजपा की अगुवाई में लगातार तीसरी बार एनडीए की सरकार सत्तारूढ़ है। 2014 से लगातार प्रधानमंत्री पद पर आसीन नरेंद्र मोदी भी इस बात को बेहिचक स्वीकार करते हैं कि अटल और आडवाणी ने भाजपा को बुलंदी पर पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

Next Story