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बकरीद 2019: नहीं आता बकरा तो हो जाता बेटा कुरबान, ऐतिहासिक है ये पर्व

इस्लाम धर्म का पवित्र त्योहार बकरीद या ईद-उल-अजहा 12 अगस्त को है। लेकिन हम आपको बताते है, इस त्योहार का इतिहास और महत्व। आइए आपको बताते हैं कि क्यों मनाते है बकरीद।

Roshni Khan
Published on: 11 Aug 2019 9:54 AM GMT
बकरीद 2019: नहीं आता बकरा तो हो जाता बेटा कुरबान, ऐतिहासिक है ये पर्व
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लखनऊ: इस्लाम धर्म का पवित्र त्योहार बकरीद या ईद-उल-अजहा 12 अगस्त को है। लेकिन हम आपको बताते है, इस त्योहार का इतिहास और महत्व। आइए आपको बताते हैं कि क्यों मनाते है बकरीद।

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इस्लाम धर्म के पवित्र पुस्तक कुरान में बकरीद का स्पष्ट वर्णन मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि अल्लाहताला ने एक दिन हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे अजीज़ चीज की कुर्बानी मांगी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया।

अल्लाहताला का हुकुम मानते हुए हजरत इब्राहिम जैसे ही अपने बेटे की गर्दन पर वार करने गए, अल्लाहताला ने उसे बचाकर एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। तभी से इस्लाम धर्म में बकरीद मनाने का रिवाज़ शुरू हो गया।

ईद-उल-जुहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हुए थे।

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बकरीद का पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज को भी मान्यता देता है। बकरीद के दिन मुस्लिम बकरा, भेड़, ऊंट जैसे किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं। बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए।

इस पर्व पर इस्लाम धर्म के लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं। नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू होती है।

Roshni Khan

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