TRENDING TAGS :
अयोध्या से कोसों दूर है ये शहर, यहां आज भी मिलते हैं भगवान राम के जीवंत प्रमाण
बिहार राज्य का पौराणिक एवं अध्यात्मिक जिला बक्सर भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गंगा किनारे बसे रामायण काल के इस शहर में भगवान श्री राम से जुड़े साक्ष्य जगह-जगह मिलते हैं। बस जरूरत है उन्हें सहेजने की।
दुर्गेश पार्थसारथी
बिहार राज्य का पौराणिक एवं अध्यात्मिक जिला बक्सर भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गंगा किनारे बसे रामायण काल के इस शहर में भगवान श्री राम से जुड़े साक्ष्य जगह-जगह मिलते हैं। बस जरूरत है उन्हें सहेजने की।
रामायण काल के पुरातन शहर में एक मंदिर है नौलखा मंदिर। इस मंदिर को बैकुंठनाथ मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर और घाट तो यहां बहुतेरे हैं, लेकिन नौलखा मंदिर का आकर्षण और यहां की पूजा पद्यति अन्य मंदिरों से भिन्न है।
ये भी पढ़ें...आनंदी माता मंदिर: पाठा की देवी के अतिप्राचीन मन्दिर का कब होगा कायाकल्प…
मीनाक्षी मंदिर की तरह लगता है बैकुंठनाथ मंदिर
आधुनिक बक्सर का मुख्य आकर्षण बैकुंठनाथ मंदिर है। मदुरै स्थित मीनाक्षी मंदिर की तरह दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर को स्थानीय लोग नौलखा मंदिर के नाम से भी जानते हैं।
करीब पांच फुटे ऊंचे आधार वाले चबूतरे पर बना यह मंदिर एक एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस मंदिर को निर्माण की दृष्टि से तीन भागों में (गोपुरम, यज्ञमंडप और गर्भगृह) में बांट सकते हैं। लगभग 25 फुटे ऊंचे इस मंदिर के शिखर को यक्षों, गंधर्वों और अन्य कलाकृतियों से नवाजा गया है।
बैकुंठनाथ मंदिर के ठीक सामने 30 फुट ऊंचा स्वर्णिम आभा लिए कमलयुक्त आधार पर वेलनाकार गरुण ध्वज स्तंभ स्थापित है। स्तंभ के आधार के चारों तरफ वैष्णव तिलक आदि अंकित हैं। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति गरुण ध्वज स्तंभ की परिक्रमा कर लेता है उसे भी उतना ही पुण्य मिलता है जितना कि मंदिर में स्थापित भगवान के विग्रह की पूजा से।
दक्षिण भारतीय परंपरा से होती है भगवान विष्णु की पूजा
मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मुख्य मंदिर के बाहरी दीवारों पर विभिन्न मुद्राओं में अनगिनत देवी देवताओं की मूर्तियां, गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर जय-विजय नामक द्वारपालों की मूर्तियां स्थापित हैं।
मंदिर में होने वाले राग-भोग का विधान भी पूर्णरूपेण दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुरूप ही होता है। शास्त्रों में विष्णु-पूजा के दो विधान बताये गए हैं। पंचरात्रमम् और वैधानाशम् सरल होने के कारण भारत के अधिकांश मंदिरों में वैधानाशम् पूजा पद्धति से पूजा-अर्चना की जाती है।
चावल और मूंग की दाल की खिचड़ी का लगता है भोग
अपने आप में अनोखे इस मंदिर के विधानानुसार प्रात:काल में भगवान बैकुंठनाथ को दूध और मिश्री का भोग लगता है। प्रात: काल 7:30 से 8 बजे पूजा के बाद चावल और मूंग की दाल की खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
भगवान बैकुंठनाथ की सवारी निकाली जाती है और इस दौरान नवग्रहों को बलि दी जाती है। सवारी निकाले जाने के समय भगवान के मुकुट को मंदिर में उपस्थित सभी भक्तगणों के माथे से लगाया जाता है।
जानिए क्यों कमलनाथ के मंत्री इस मंदिर में कर रहे पूजा, इंदिरा भी टेक चुकी हैं माथा
राजभोग में चावल-दाल और सब्जियां की जाती हैं शामिल
भगवान विष्णु को राजभोग के समय सुबह 11 बजे चावल-दाल और किस्म-किस्म की सब्जियों का भोग लगाया जाता है। सांयकालीन भोग में कुछ बदलाव किया जाता है।
मंदिर में की जाने वाली पूजा-अर्चना के समय पढ़े जाने वाले वैदिक मंत्र, सुगंधित वनस्पतियों से उठनेवाली सुगंध एवं विशुद्ध दक्षिण भारतीय शैली में मृदंग साहित बजाये जाने वाले वाद्य-यंत्रों से उठने वाली स्वर लहरियां एक अलग सुखद अनुभूति कराती हैं।