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यहां दलितों के बाल नहीं काटते नाई, ये है बड़ी वजह, लोगों ने की सरकार से ये मांग
मामला कोप्पल और धारवाड़ जिले का है। जहां पर कुछ ग्रामीण इलाकों में जातिगत भेदभाव के मामले सामने आए हैं। बता दें कि कर्नाटक के इन जिलों में सैलून में जातिगत भेदभाव के तहत निम्न कोटि वर्गों का बाल काटने की मनाही है। यहां के नाई दलित वर्ग के लोगों का बाल काटने, शेविंग करने जैसी सेवा देने से इंकार कर देते हैं।
कर्नाटक: वैसे तो भारत के संविधान में भेदभाव छुआछूत जैसे सामाजिक बुराइयों 1950 में ही खत्म कर दिया गया था, लेकिन ये बुराइयां आज तक समाज में खत्म नहीं हुई है। कहीं स्वर्णों द्वारा कुएं से पानी नहीं लेने दिया जाता है, तो कभी उन्हें मंदिर में नहीं जाने की इजाजत मिलती है। आश्चर्य की बात है कि आज के जमाने भी समाज में जातिगत भेदभाव व्याप्त है। जाति के नाम पर भेदभाव का कुछ ऐसा ही मामला कर्नाटक के कोप्पल और धारवाड़ जिलें से सामने आया है, जहां पर नाई दलित वर्ग के लोगों का बाल काटने से मना कर देते हैं। जिले में इस तरह के जातिगत भेदभाव को देखते हुए समाज कल्याण विभाग ने सरकार से सरकारी सैलून खोलने की सिफारिश की है।
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इन इलाकों के नाई दलितों का बाल काटने से करते है मना
मामला कोप्पल और धारवाड़ जिले का है। जहां पर कुछ ग्रामीण इलाकों में जातिगत भेदभाव के मामले सामने आए हैं। बता दें कि कर्नाटक के इन जिलों में सैलून में जातिगत भेदभाव के तहत निम्न कोटि वर्गों का बाल काटने की मनाही है। यहां के नाई दलित वर्ग के लोगों का बाल काटने, शेविंग करने जैसी सेवा देने से इंकार कर देते हैं। राज्य में इस भेदभाव को खत्म करने के लिए समाज कल्याण विभाग ने सरकार से सरकारी नाई की दुकान चलाने की सिफारिश की है। मिली जानकारी के अनुसार, इस तरह के तमाम गांव के दलित वर्ग को नाइयों की सेवाओं से वंचित किया जाता है। जातिगत भेदभाव के इस अत्याचार के कई मामले सामने आए हैं। इसलिए सभी ग्राम पंचायतों ने स्थानीय निकाय द्वारा संचालित नाई की दुकान खोलना उचित समझा है। दुकान खोलने के लिए समाज कल्याण विभाग आवश्यक धनराशि को मंजूरी दे सकता है।"
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राज्य की बीएस सरकार का था अहम एजेंडा
वही कुछ समय पहले ही राज्य की बीएस सरकार द्वारा समीक्षा बैठक में 'एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम' के तहत यह प्रस्ताव रखा गया था, जो सरकार के एजेंडे का अहम हिस्सा हुआ करता था। सवाल किया है कि आज के जमाने में भी या जातिगत भेदभाव क्यों है? यह खुलेआम संविधान का उल्लंघन है। जब तक समाज में इस तरह की जाति व्यवस्था हैं तब तक इस तरह के भेदभाव समाज में होते रहेंगे।
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