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Mission 2024: पटना की बैठक से पहले कई राज्यों में विपक्ष में बढ़ा टकराव,2024 में PM मोदी से भिड़ना आसान नहीं
Mission 2024 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए को 2024 में कड़ी टक्कर देने के लिए पटना में 23 जून को विपक्ष के नेताओं की बड़ी बैठक होने वाली है। इस बैठक को विपक्ष की एकजुटता के लिए काफी अहम माना जा रहा है मगर इस बैठक से पूर्व ही विपक्षी कुनबे में घमासान तेज होता दिख रहा है।
Mission 2024 : नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए को 2024 में कड़ी टक्कर देने के लिए पटना में 23 जून को विपक्ष के नेताओं की बड़ी बैठक होने वाली है। इस बैठक को विपक्ष की एकजुटता के लिए काफी अहम माना जा रहा है मगर इस बैठक से पूर्व ही विपक्षी कुनबे में घमासान तेज होता दिख रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर यह महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है मगर बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन में ही खींचतान तेज होती दिख रही है।
बिहार में जीतन राम मांझी की पार्टी हम ने महागठबंधन से अलग होने का रास्ता चुन लिया है जबकि दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में टकराव तेज हो गया है। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव को लेकर कांग्रेस और ममता बनर्जी की टीएमसी के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गया है तो यूपी में सपा मुखिया अखिलेश यादव राज्य की सभी 80 सीटों पर जीत हासिल करने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि इस खींचतान और टकराव के बीच विपक्ष 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने में कहां तक कामयाब हो पाएगा। विपक्ष पीएम मोदी के मुकाबले अभी तक दमदार चेहरा भी नहीं पेश कर पाया है।
बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस में घमासान
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। राज्य की मुख्यमंत्री और टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी ने क्षेत्रीय दलों को ज्यादा महत्व देने की वकालत शुरू कर दी है। ममता का साफ तौर पर कहना है कि विपक्षी एकजुटता की कवायद में विभिन्न राज्यों में मजबूत क्षेत्रीय दलों को प्रमुखता दी जानी चाहिए। पश्चिम बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस के बीच घमासान छिड़ा हुआ है और दोनों दलों की ओर से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी पंचायत चुनावों को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हैं। उन्होंने पिछले दिनों ममता की पुलिस को कठघरे में खड़ा करते हुए राज्य में केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग की थी। पिछले दिनों टीएमसी ने कांग्रेस के एकमात्र विधायक को तोड़ लिया था जिसे लेकर भी कांग्रेस काफी नाराज है।
दूसरी ओर टीएमसी का कहना है कि कांग्रेस और भाजपा के पास पंचायत चुनाव के लिए मजबूत उम्मीदवार नहीं हैं। इस कारण टीएनसी पर अनर्गल आरोप लगाए जा रहे हैं। ममता बनर्जी भी राज्य की लोकसभा सीटों पर अपनी पार्टी की दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं दिख रही हैं।
आप और कांग्रेस में खींचतान हुई तेज
दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और इन दोनों राज्यों में कांग्रेस भी मजबूती से चुनाव लड़ती रही है। दोनों राज्यों में कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व आप से चुनावी समझौता करने के मूड में नहीं दिख रहा है। पंजाब में लोकसभा की 13 और दिल्ली में 7 सीटें हैं। ऐसे में इन 20 सीटों के लिए दोनों दलों के बीच किसी भी प्रकार के सुलह-समझौते की गुंजाइश नहीं दिख रही है। दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के संबंध में मोदी सरकार की ओर से लाए गए अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस के रुख से आप नेता काफी नाराज बताए जा रहे हैं। ऐसे में दोनों दलों के बीच तालमेल की कोई संभावना नहीं दिख रही है।
दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से आप को घेरने की भी कोशिश की जा रही है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि गुजरात में विधानसभा चुनाव के दौरान आप ने कांग्रेस को बड़ा सियासी नुकसान पहुंचाया और भाजपा बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रही। गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं और कांग्रेस इन सीटों पर किसी दूसरे दल के लिए दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं है।
अखिलेश कांग्रेस को नहीं दे रहे अहमियत
पूर्व के चुनावों की तरह 2024 में भी उत्तर प्रदेश दिल्ली की सत्ता का फैसला करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाएगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करते हुए विपक्ष को बैकफुट पर धकेल दिया था। 2019 में तो सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन के बावजूद भाजपा अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रही थी। उत्तर प्रदेश में बसपा अकेला चलो की राह पर चल रही है जबकि कांग्रेस के कमजोर जनाधार के कारण सपा मुखिया अखिलेश यादव उसे ज्यादा महत्व देने के मूड में नहीं दिख रहे हैं।
हाल के दिनों में अखिलेश यादव कई मौकों पर राज्य की सभी 80 सीटों पर जीत हासिल करने का बड़ा दावा कर चुके हैं। ममता की तरह अखिलेश यादव की क्षेत्रीय दलों को अहमियत देने की वकालत कर रहे हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में भी विपक्ष की एकजुटता और सीटों को लेकर तालमेल बहुत मुश्किल माना जा रहा है।
बिहार में भी बढ़ा टकराव
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि ममता बनर्जी के सुझाव पर पटना में विपक्ष की बड़ी बैठक होने जा रही है मगर इस बैठक से पूर्व महागठबंधन में ही टकराव बढ़ गया है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन मांझी के नीतीश कैबिनेट से इस्तीफे के बाद मांझी और नीतीश कुमार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। मांझी महागठबंधन से अलग रास्ते पर बढ़ चले हैं और उनका एनडीए में जाना तय माना जा रहा है।
सियासी नजरिए से बिहार का भी काफी महत्व है क्योंकि यहां पर लोकसभा की 40 सीटें हैं। एनडीए की ओर से बिहार में विपक्षी एकता में सेंध लगाने की कोशिश की जा रही है। महागठबंधन में सीटों का बंटवारा भी काफी मुश्किल माना जा रहा है। दिलचस्प बात तो यह है कि नीतीश कुमार खुद विपक्षी एकजुटता की पैरोकारी में जुटे हैं और उनके राज्य में ही विपक्ष में टकराव बढ़ता हुआ दिख रहा है। हालांकि कुछ सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि मांझी के अलग होने से महागठबंधन को ज्यादा नुकसान नहीं होगा क्योंकि मांझी जमीनी स्तर पर ज्यादा मजबूत नहीं दिख रहे हैं।
पीएम मोदी के सामने कौन होगा चेहरा
2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए का सबसे मजबूत पक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सशक्त चेहरा होना है। अभी तक विपक्ष के पास पीएम मोदी के मुकाबले कोई दमदार चेहरा नहीं दिख रहा है। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी का नाम आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है मगर नीतीश कुमार और शरद पवार सरीखे विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री पद का फैसला चुनाव के बाद करने पर जोर दे रहे हैं। विपक्ष की एकजुटता में पीएम पद के चेहरे को सबसे बड़ी बाधा माना जा रहा है और इसीलिए विपक्ष के कई वरिष्ठ नेता अभी इस मुद्दे को टालने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
दूसरी ओर भाजपा की ओर से यह सवाल पूरी दमदारी से उठाया जा रहा है कि आखिर पीएम मोदी के मुकाबले विपक्ष का चेहरा है कौन?
ऐसे में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देना विपक्ष के लिए आसान साबित नहीं होगा। अब सबकी निगाहें 23 जून को पटना में होने वाले विपक्ष की बड़ी बैठक पर टिकी हैं। इस बैठक से निकला संदेश 2024 के लोकसभा चुनाव पर काफी असर डालने वाला साबित होगा।