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Caste Survey In Bihar: बिहार में जाति सर्वे: पूछे गए ये सवाल, किसी ने दिया हर सवाल का जवाब तो कोई बचता हुए आया नजर

Caste Survey In Bihar: बिहार में जातिगत जनगणना का काम अंतिम चरण में है। अगस्त के अंत तक यह सर्वे पूरा होने की बात कही जा रही है। सर्वे का कुछ लोग समर्थन तो कुछ लोग विरोध कर रहे हैं।

Ashish Pandey
Published on: 9 Aug 2023 7:30 PM IST (Updated on: 9 Aug 2023 9:48 PM IST)
Caste Survey In Bihar: बिहार में जाति सर्वे: पूछे गए ये सवाल, किसी ने दिया हर सवाल का जवाब तो कोई बचता हुए आया नजर
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बिहार में जाति सर्वे: Photo- Social Media

Caste Survey In Bihar: बिहार में जातीय जनगणना का कार्य अंतिम चरण में है। जहां इसका लोग समर्थन कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं। बिहार की राजधानी पटना के कंकड़बाग में रहने वाले अजीत प्रताप सिंह इस बात से खासे नाराज दिखे कि राज्य सरकार कास्ट सर्वे क्यों करा रही है। यही नहीं वे अपनी नौकरी, आरक्षण और बाकी सभी शिकायतों को लेकर जाति सर्वे करने वाली टीम से ही भिड़ गए।

जैसे ही सरकारी टीम उनके घर पहुंची उन्होंने घर का दरवाजा खोला और टीम पर ही बरस पड़े। उनका आरोप है कि नीतीश कुमार ने किसी ऊंची जाति को कभी नौकरी नहीं दी है।

वे कहते हैं, टीम के लोग पूछते हैं कि आपकी आर्थिक स्थिति क्या है? क्या ऊंची जातियों में गरीब लोग नहीं हैं? मेरे पास पटना में भी घर है और गांव में भी है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने जो किया है, अपनी जाति के लिए किया है।

सर्वे टीम द्वारा आंकड़े जुटाने के काम को जब जमीनी स्तर पर घर-घर जाकर करीब से देखा गया जो पाया गया कि सवर्ण जातियों के कई लोग जातीय जनगणना नहीं चाहते हैं। यही नहीं कुछ परिवारों ने तो सर्वे करने वाली टीम को अपने बारे में कोई भी जानकारी देना मुनासिब नहीं समझा। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है।

कमाई, संपत्ति और शिक्षा की जानकारी देने से बचते दिखे लोग-

जातीय जनगणना के दौरान देखा गया कि आमतौर पर लोगों को अपनी जाति से जुड़ी जानकारी देने में तो कोई परहेज नहीं हुई, लेकिन जब उनसे उनकी कमाई, संपत्ति और शिक्षा से जुड़ी जानकारी मांगी गई तो वे इसे बताने से परहेज करते नजर आए। सर्वे के दौरान जब यह जानने की कोशिश की गई कि किन सवालों को लेकर लोग असहज हुए और किन सवालों का जवाब देने में उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई।

जब सर्वे के सवालों को ही बता दिया गलत-

कंकड़बाग में ही एक कोठी के सामने सर्वे टीम जब पहुँची तो उन्होंने सीधा उन सवालों को ही गलत बता दिया जो जातिगत सर्वे के लिए तैयार किए गए हैं। इसी इलाके में एक परिवार ऐसा भी मिला जिसने अपनी कोई जानकारी सर्वे में साझा नहीं की, न ही। उन्होंने सीधा सरकार की मंशा और सर्वे को ही गलत ठहरा दिया। संयोग से ये सवर्ण जातियों के परिवार के सदस्य थे। वहीं कास्ट सर्वे करने वाली टीम का कहना था कि वो अपनी ड्यूटी कर रहे हैं और सवालों की जो सूची उन्हें दी गई है, वो बस उसी से जुड़ी जानकारी चाहते हैं।

पहले चरण में मकानों की सूची तैयार की गई थी-

दरअसल, इसी साल जनवरी में जातीय जनगणना के पहले चरण में राज्य भर के मकानों की सूची तैयार की गई थी। इसमें मकान के मुखिया का नाम दर्ज किया गया था और साथ में मकान या भवन को एक नंबर दिया गया था। करीब दो करोड़ 59 लाख परिवारों की सूची तैयार की गई थी। कास्ट सर्वे का दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू होकर 15 मई को खत्म होना था, लेकिन मई के पहले सप्ताह में पटना हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने यह रोक इसी महीने एक अगस्त को हटा दी और इस पर काम फिर से आगे बढ़ा है।

17 सवाल जिनसे पूरा होना है सर्वे-

इसके दूसरे चरण के लिए सरकार की तरफ से हर मकान में रहने वालों से जुड़े 17 सवाल तैयार किए गए थे और इन्हीं सवालों के जवाब के आधार पर कास्ट सर्वे पूरा होना है। राज्य भर में कास्ट सर्वे के लिए जमीनी स्तर पर आँकड़े जुटाने का काम पूरा हो गया है। अगर कोई कानूनी रोक न हो तो माना जा रहा है कि इन आँकड़ों को संकलित कर इसी अगस्त में कास्ट सर्वे की रिपोर्ट तैयार हो सकती है। हालांकि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार सात अगस्त को कहा है कि इससे जुड़ी सभी याचिकाओं की सुनवाई इसी महीने की 14 तारीख को होगी।

घर-घर जाकर जुटाई गई जानकारी-

सर्वे से उठते सवाल-

बिहार में कास्ट सर्वे के आँकड़े जुटाने में जो प्रमुख सवाल लोगों से पूछे गए हैं, वो हैं...

-परिवार के सदस्यों के नाम

-हर सदस्य की उम्र, लिंग, धर्म और जाति

-परिवार के किस सदस्य ने कहाँ तक शिक्षा हासिल की है

-परिवार के लोग क्या करते हैं? जैसे व्यवसाय, नौकरी या पढ़ाई इत्यादि

-किन-किन के नाम से शहर में कोई मकान या जमीन है

-उनके पास खेती की जमीन है या नहीं

-अगर जमीन या मकान है तो उसकी पूरी जानकारी

-परिवार के सदस्यों के पास लैपलॉप या कंप्यूटर है या नहीं

-परिवार के पास दो पहिया, तीन पहिया या चार पहिया वाहन है या नहीं

-परिवार के प्रत्येक सदस्य की सभी स्रोतों से मिलाकर कुल कितनी आमदनी है

दरअसल, इस तरह के सवालों के जरिए सरकार केवल जातिगत जानकारी जुटाना चाहती है।

सरकार का दावा-

नीतीश सरकार का दावा है कि आर्थिक, शैक्षणिक और बाकी जानकारी मिलने से सरकार को कोई भी नीति बनाने में मदद मिलेगी। सरकार की ओर से यह भी दावा किया गया है कि सर्वे से राज्य की आबादी की पूरी जानकारी होने पर सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुँचाने में मदद मिलेगी।

हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि बिहार की मौजूदा नीतीश और तेजस्वी की सरकार इन आँकड़ों का इस्तेमाल जाति आधारित लामबंदी के लिए करेगी। बिहार की चुनावी राजनीति में जातिगत पहचान अब भी काफी मजबूत है। चुनाव में जाति का मुद्दा बड़ा मुद्दा होता है। सरकार जिन सवालों को अपनी योजनाओं के लिए जरूरी मानती है, उनमें से कुछ सवाल लोगों को सहज दिखे। कई बार लोगों से जानकारी जुटा पाना आसान नहीं दिखा।

कुछ सवालों से असहज-

सर्वे के दौरान पाया गया कि किसी परिवार के पास कितनी संपत्ति है या उनकी आय कितनी है, इस तरह की जानकारी कुछ लोग देना ही नहीं चाह रहे थे। इसके अलावा कई मौकों पर लोग अपनी शिक्षा से जुड़ी जानकारी भी साझा नहीं करना चाह रहे थे। वहीं पटना के ही चंद्र प्रकाश तिवारी की शिकायत है कि कास्ट सर्वे में इतने सारे सवाल क्यों हैं? चंद्र प्रकाश पटना में एक बड़े मकान में रहते हैं। सर्वे टीम जब उनके घर पहुंची तो वे पहले तो बात करने से कतराते रहे, लेकिन जब टीम ने उन्हें समझाया और उनके रोजगार या व्यवसाय के बारे में पूछा तो इस सवाल से वे काफी असहज दिखे। चंद्र प्रकाश के पास घर के किराए से भी कुछ इनकम होती है। हालाँकि यह साफ दिख रहा था कि इससे जुड़े सवाल सुनकर वो सहज नहीं हैं और जवाब सुनने के बाद आंकड़े जुटाने आई टीम संतुष्ट हो पा रही है। इसके अलावा शैक्षिणक योग्यता से जुड़े सवालों पर वो थोड़े असहज दिखे। उनको ऐसा महसूस हो रहा था कि जब जाति की जानकारी जुटाने के लिए सर्वे हो रहा है तो उनमें बाकी सवालों की क्या जरूरत है।

बड़े तबके का समर्थन-

कास्ट सर्वे से अधिकतर लोग खुश हैं। पटना की नीलम कुमारी के घर भी सर्वे टीम पहुंची। यह टीम एक दिन पहले भी उनके घर आई थी, लेकिन घर के सभी लोग नौकरी या कामकाज के सिलसिले में बाहर गए थे, इसलिए टीम के दोबारा आने पर वो काफी खुश नजर आईं। उन्होंने सर्वे करने वाले कर्मियों को घर के अंदर बुलाया और बैठाकर हर सवाल का बारीकी से जवाब दिया है। दरअसल, उनके पति भी नौकरी करते हैं और वो खुद भी नौकरी में हैं, इसलिए उनकी आय भी छिपी नहीं है। वो कहती हैं, “हमें किसी सवाल से कोई परेशानी नहीं है। जो सवाल पूछे जा रहे हैं, सब वाजिब हैं और जाति के बारे में भी जानकारी देने में हमें कोई परेशानी नहीं है। हम जो हैं वो सभी जानते ही हैं।

जातिगत जनगणना के दूसरे चरण में कुल 17 सवाल-

पटना के ही अमन कुमार सिंह भी सरकार की जातीय जनगणना और उनमें पूछे गए सवालों का समर्थन करते हैं। उनका कहना है, किसी सवाल से उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। यह जानना बहुत जरूरी है कि देश में कौन सी जाति की आबादी कितनी है। उनका कहना है कि उनसे घर, परिवार, नौकरी या आमदनी के बारे में जो भी पूछा गया, उन्होंने सबका जवाब दिया है। वहीं जातिगत जनगणना के सर्वे में लगे एक कर्मचारी ने बताया कि अगर कोई स्वेच्छा से ही सही, अपनी और अपने परिवार की जानकारी नहीं देना चाहता है या तो इसमें नुकसान उनका है। उनका कहना है सरकार के पास किसी वर्ग या जाति के समुचित आंकड़े नहीं होंगे तो सरकार को उनके लिए योजना बनाने में परेशानी होगी। बिहार में जातीय जनगणना जल्द ही पूरी होने की उम्मीद है। इसके बाद इसे सरकार सार्वजनिक करेगी।

Ashish Pandey

Ashish Pandey

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