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भागवत झा के नाम के साथ ऐसे जुड़ा आजाद शब्द, जानिए दिलचस्प किस्सा
बिहार के जिन नेताओं का नाम सियासत में आदर व सम्मान के साथ लिया जाता है, उनमें भागवत झा आजाद का नाम उल्लेखनीय है। लंबे सियासी जीवन के बावजूद उन पर भ्रष्टाचार का दाग कभी नहीं लगा।
लखनऊ: बिहार में कांग्रेस के जिन बड़े नेताओं के नाम की चर्चा होती है, उनमें एक नाम भागवत झा आजाद का भी है। बिहार के मुख्यमंत्री रहे आजाद ने केंद्रीय राजनीति में भी बड़ी भूमिका निभाई। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे आजाद ने केंद्र में भी कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाला।
1922 में आज ही के दिन पैदा होने वाले आजाद ने भागलपुर संसदीय सीट से छह बार लोकसभा का चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की। 1983 का विश्व कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रहे पूर्व सांसद कीर्ति आजाद भागवत झा आजाद के पुत्र हैं। उनके नाम के साथ आजाद शब्द जोड़ने का एक दिलचस्प किस्सा है।
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बिहार की सियासत में महत्वपूर्ण स्थान
बिहार के जिन नेताओं का नाम सियासत में आदर व सम्मान के साथ लिया जाता है, उनमें भागवत झा आजाद का नाम उल्लेखनीय है। लंबे सियासी जीवन के बावजूद उन पर भ्रष्टाचार का दाग कभी नहीं लगा। उनका जन्म 28 नवंबर 1922 को गोड्डा जिले के कस्बा गांव में हुआ था। उस समय यह जिला बिहार में ही शामिल था मगर अब यह जिला झारखंड में चला गया है।
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स्वाधीनता आंदोलन में लिया था हिस्सा
उन्होंने भागलपुर के टीएनबी कॉलेज और पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। आजाद ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था। खासतौर पर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका को खास तौर पर याद किया जाता है। इस दौरान उनके पैर में एक गोली भी लगी थी। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें कई बार गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था।
नाम में आजाद शब्द जोड़ने का दिलचस्प किस्सा
उनका मूल नाम भागवत झा था मगर उनके नाम के साथ आजाद शब्द जोड़ने का एक दिलचस्प किस्सा है। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भागलपुर के सुल्तानगंज इलाके के कुछ नौजवानों ने दिल्ली से कोलकाता जाने वाली असलहों से लदी एक ट्रेन को लूटने की योजना बनाई। ब्रिटिश पुलिस भी काफी सतर्क थी और उसे इस योजना की जानकारी पहले ही मिल गई। पुलिस ने मौके पर दबिश देने के साथ वहां मौजूद लड़कों पर फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान कई नौजवान घायल हो गए।
भागवत झा की भी जांघ में गोली लगी और वे बेहोश होकर गिर गए। आसपास उनके मरने की खबर फैल गई। ब्रिटिश पुलिस घायल नौजवानों को गिरफ्तार करके अस्पताल ले जा रही थी। तय किया गया कि जिन नौजवानों की मौत हो गई है, उन्हें बाद में उठाया जाएगा। लेकिन इसी बीच भागवत को होश आ गया और वे कुछ लोगों की मदद से वहां से रफूचक्कर हो गए। बाकी सभी लोग गिरफ्तार कर लिए गए मगर वे आजाद हो गए और यहीं से उनके नाम के आगे आजाद शब्द जुड़ गया।
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नेहरू ने दी थी यह सलाह
बाद में जब उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से भेंट की तो उन्हें यह किस्सा सुनाया। किस्सा सुनने के बाद पंडित नेहरू ने भागवत झा को सलाह दी कि अब अपने नाम से आजाद शब्द कभी मत हटाना।
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सीएम के साथ केंद्र में भी रहे मंत्री
देश की आजादी के बाद वे बिहार में कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में उभरे। उन्होंने भागलपुर सीट से छह बार लोकसभा का चुनाव जीता। वह तीसरी, चौथी, पांचवीं, सातवीं और आठवीं लोकसभा के सदस्य रहे। उन्होंने 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में भी काम किया।
उन्होंने कृषि, शिक्षा, श्रम एवं रोजगार, नागरिक उड्डयन और खाद्य व नागरिक आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार भी संभाला। देश की सियासत में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले आजाद का 4 अक्टूबर 2011 को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। बिहार में कांग्रेस के बड़े नेताओं में उनका नाम आज भी काफी आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।
अंशुमान तिवारी