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उपचुनाव में होगी कमलनाथ सरकार की परीक्षा

seema
Published on: 3 Jan 2020 6:26 AM GMT
उपचुनाव में होगी कमलनाथ सरकार की परीक्षा
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भोपाल। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार का एक साल पूरा हो चुका है। वर्ष 2020 में कमलनाथ सरकार की पहली चुनावी परीक्षा चंबल क्षेत्र की की जौरा विधानसभा सीट पर होगी जहां मौजूदा कांग्रेस विधायक बनवारीलाल शर्मा के निधन के कारण उपचुनाव होना है। जौरा सीट रिक्त होने के बाद कांग्रेस विधानसभा में वापस 114 के आंकड़े पर आ गई है। अपने बूते विधानसभा में बहुमत बनाए रखने के लिए कांग्रेस को यह सीट जीतना आवश्यक है। हालांकि बसपा, सपा एवं निर्दलीयों के समर्थन के चलते प्रदेश की कांग्रेस सरकार मजबूत स्थिति में है लेकिन खुदमुख्तार बने रहने के लिए कांग्रेस यह सीट जीतने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ेगी। केंद्र में मंत्री पद संभाल रहे स्थानीय सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर एवं यहां के कांग्रेस छत्रप ज्योतिरादित्य सिंधिया पर अपने दलों को जिताने का दारोमदार रहेगा।

मुरैना की सभी सीटें कांग्रेस के पास

चंबल अंचल के सबसे बड़े जिले मुरैना में 6 विधानसभा सीटें हैं, पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इन सभी सीटों पर जीती थी। ग्वालियर-चंबल अंचल की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में यहां की कुल 34 सीटों में से 26 सीटें हासिल कर कांग्रेस ने अपना दबदबा साबित किया था जबकि भाजपा सिर्फ सात सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस के समक्ष जौरा विधानसभा सीट पर जल्द होने जा रहे उपचुनाव में इसी तरह के प्रदर्शन को दोहराने का दवाब है।

सहानुभूति का सहारा

कांग्रेस जौरा सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए सहानुभूति वोटों का फायदा लेने का जतन करेगी और इसके लिए दिवंगत विधायक बनवारीलाल के परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट दिया जा सकता है. 2008 में पराजित होने वाले वृन्दावनसिंह एक बार फिर टिकट पर दावा ठोक सकते हैं. पिछली बार भाजपा ने यहां से सूबेदारसिंह रजौधा को मैदान में उतारा था जो पराजित हो गए थे, रजौधा पहले भी विधायक रह चुके हैं, लिहाजा वे अपनी पार्टी में टिकट के स्वाभाविक दावेदार हैं. सुमावली से विधायक रह चुके सत्यपाल सिंह सिकरवार का भी दावा है।

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फिर गर्मा गया शुगर मिल का मुद्दा

चूंकि जौरा सीट का निर्माण मुरैना जिले की जौरा एवं कैलारस तहसीलों को मिलाकर किया गया है लिहाजा इस उपचुनाव में कैलारस शुगर मिल का मामला एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है. कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही दल इस चुनावी मुद्दे को भुनाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देंगे. कैलारस शुगर मिल लम्बे समय से बंद पड़ा है. तत्कालीन भाजपा सरकार 15 वर्ष तक यही वादा करती रह कि इस मिल को फिर से चालू किया जाएगा लेकिन कोई न कोई अवरोध आते रहे। कांग्रेस ने भी हालिया विधानसभा चुनाव में इस शुगर मिल को चालू करने का वादा किया था लेकिन अभी तक नहीं हो सका. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को इसी महीने पत्र लिखकर कैलारस शुगर मिल को फिर से चालू कराने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने का आग्रह किया था लेकिन अभी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है. जौरा को जिला बनाने की मांग उपचुनाव आते ही एक बार फिर से गर्माने लगी है. जनता के मिजाज को भांपते हुए अब इस मांग के प्रति दोनों ही प्रमुख दल संवेदनशील रूख अपना रहे हैं. इलाके के पिछड़ापन से जुड़ी समस्याएं तो इस उपचुनाव में उठेंगी हीं।

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भू-माफियाओं की फेहरिश्त में चौंकाने वाले नाम

अंचल में इन दिनों भू-माफियाओं के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चल रही है. ग्वालियर में कई नामचीन चेहरे इस कार्रवाई की चपेट में आ चुके हैं. इनमें राजू कुकरेजा जैसे कारोबारी से लेकर कांग्रेस नेता साहबसिंह गुर्जर, भाजपा नेता प्रीतमसिंह लोधी के साथ ग्वालियर जिला पंचायत के अध्यक्ष भी शामिल हैं. प्रशासन कार्रवाई को पूरी तरह निष्पक्ष व पारदर्शी बता रहा है लेकिन भाजपा इस पूरे अभियान को दुराग्रहपूर्ण बता रही है।

अचंभे की बात है कि श्योपुर में पंजाब एवं हरियाणा के भू-माफिया भी पकड़ में आए हैं. इन दीगर राज्यों के भूमाफियाओं से करीब दस करोड़ कीमत की 262 बीघा सरकारी जमीन मुक्त कराई गई है. पंजाब के इन भूमाफियाओं ने यहां आलीशान फार्महाउस तामीर कर रखे थे जिन्हें प्रशासन ने जमींदोज कर दिया. कार्रवाई ज्यों-ज्यों रफ्तार पकड़ रही है वैसे ही कुछ एैसे बड़े नाम भी सामने आ रहे हैं जिनके खिलाफ कार्रवाई करने से पहले एंटी माफिया सैल को काफी सोच-विचार करना पड़ रहा है।

बसपा भी है एक बड़ा फैक्टर

एक ओर कांग्रेस और भाजपा ने अभी से इस सीट को कब्जाने के लिए व्यूहरचना शुरू कर दी है वहीं बसपा भी यहां एक बड़ा फैक्टर है. बसपा की ताकत का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पार्टी का तीन दफा यहां कब्जा रहा है. 93, 98 एवं 2008 में यहां बसपा के क्रमश: सोनेराम कुशवाह़ एवं मनीराम धाकड़ विधायक रह चुके हैं. एक दफा बसपा यहां दूसरे नंबर पर भी रह चुकी है. यह बात अलग है कि सरकार के सहयोगी दल के नाते कांग्रेस के रणनीतिकार इस बार बसपा को अपना प्रत्याशी खड़ा न करने के लिए मना लें।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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