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Chhath Puja 2020: क्यों भरते हैं कोसी, कैसे हुई थी छठ पूजा की शुरुआत, यहां जानें

कोसी पर दीया जलाया जाता है। उसके बाद कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरी सूप, डगरा, डलिया, मिट्टी के ढक्क्न व तांबे के पात्र को रखकर दीया जलाते हैं। अग्नि में धूप डालकर हवन करते हैं और छठी मइया के आगे माथा टेकते हैं।

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Published on: 17 Nov 2020 11:24 AM GMT
Chhath Puja 2020: क्यों भरते हैं कोसी, कैसे हुई थी छठ पूजा की शुरुआत, यहां जानें
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छठ पूजा करने वाले सभी लोग कोसी भरने की परम्परा से भलीभांति वाकिफ हैं। लम्बे अरसे से छठ पूजा में कोसी भरने की परंपरा चली आ रही है।

नई दिल्ली: छठ पूजा का त्योहार 20 नवंबर 2020 को मनाया जाएगा। बिहार के लोगों का यह सबसे बड़ा त्योहार होता है। छठ पूजा की शुरुआत बिहार से हुई थी लेकिन आज ये त्योहार यूपी से लेकर दिल्ली और महाराष्ट्र तक में फेमस हो चुका है। बिहार के बाहर भी लोग इसे काफी धूमधाम से मनाते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार छठ पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व की शुरूआत नहाय-खाय से होती है, जो कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है। ऐसे में आज हम आपको छठ पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं कि कैसे इस पर्व को मनाने की शुरुआत हुई थी। आइए जानते हैं।

chhath pooja क्यों भरते हैं कोसी, कैसे हुई थी छठ पूजा की शुरुआत, यहां जानें (फोटो:सोशल मीडिया)

कर्ण ने की थी छठ पूजा की शुरुआत

बता दें कि दानवीर कर्ण ने सबसे पहले छठ पूजा की शुरुआत की थी। उन्होंने सूर्य की उपासना की थी और मनोकामना में अपना राजपाट वापस मांगा था।

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महाभारत में है इसका उल्लेख

छठ पर्व के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरूआत महाभारत काल से ही हो गई थी। छठ का व्रत करने वाले लोगों की मानें तो महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने इस चार दिनों के व्रत को किया था। उसके बाद से पांडवों को अपना हारा हुआ राजपाट वापस मिला था।

रामायण में भी है उल्लेख

छठ का व्रत करने वाले लोगों की मानें तो रामायण काल में मां सीता ने भी इस व्रत को किया था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया।

इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। उनके आदेश पर माता सीता और भगवान राम उनके आश्रम गये थे।

क्यों भरी जाती है कोसी

छठ पूजा करने वाले सभी लोग कोसी भरने की परम्परा से भलीभांति वाकिफ हैं। लम्बे अरसे से छठ पूजा में कोसी भरने की परंपरा चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता और वह पूरी होती है तो उसे कोसी भरना पड़ता है। जोड़े में कोसी भरना शुभ माना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि सूर्यषष्ठी की संध्या में छठी मइया को अर्घ्य देने के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन फलदायक होता है। इसके लिए कम से कम चार या सात गन्ने की समूह का छत्र बनाया जाता है।

एक लाल रंग के कपड़े में ठेकुआ , फल अर्कपात, केराव रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है। उसके अंदर मिट्टी के बने हाथी को रखकर उस पर घड़ा रखा जाता है। उसकी पूजा की जाती है।

Chhath Puja 2020 क्यों भरते हैं कोसी, कैसे हुई थी छठ पूजा की शुरुआत, यहां जानें (फोटो:सोशल मीडिया)

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ऐसे भरी जाती है कोसी

कोसी भरते समय हमें कुछ खास बातों का ध्यान रखना पड़ता है। सबसे पहले पूजा करते समय मिट्टी के हाथी को सिन्दूर लगाकर घड़े में मौसमी फल व ठेकुआ, अदरक, सुथनी, आदि सामग्री रखी जाती है।

कोसी पर दीया जलाया जाता है। उसके बाद कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरी सूप, डगरा, डलिया, मिट्टी के ढक्क्न व तांबे के पात्र को रखकर दीया जलाते हैं।

अग्नि में धूप डालकर हवन करते हैं और छठी मइया के आगे माथा टेकते हैं। यही प्रक्रिया सुबह नदी घाट पर दोहरायी जाती है। इस दौरान महिलाएं गीत गाकर मन्नत पूरी होने की खुशी व आभार व्यक्त करती हैं। यही छठ पूजा की विधि भी है।

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